National Epilepsy Day on November 17: मिर्गी कोई मानसिक समस्या नहीं, बल्कि एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर यानी तंत्रिका तंत्र संबंधी बीमारी है. इसमें मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका की गतिविधि बाधित हो जाती है, जिसकी वजह से दौरे पड़ते हैं. कभी-कभी इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति बेहोश भी हो जाता है. इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 17 नवंबर को राष्ट्रीय मिर्गी दिवस मनाया जाता है. जानिए क्यों सही समय पर इसका उपचार कराना जरूरी है.
मान्यतौर पर दिमाग की कोशिकाएं निरंतर एक-दूसरे से संपर्क कायम रखते हैं और उनमें विद्युत तरंगें पैदा होती हैं. इन कोशिकाओं की क्रियाशीलता ही व्यक्ति के कार्यक्षमता को नियंत्रित करती है, लेकिन जब किसी कारणवश मस्तिष्क की कोशिकाओं में विद्युत तरंगों का संचार अचानक अनियंत्रित होने लगता है, तो व्यक्ति को मिर्गी के दौरे पड़ने लगते हैं. दौरा पड़ने पर प्रभावित व्यक्ति का दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है, शरीर में झटके लगने लगते हैं और शरीर लड़खड़ाने लगता है.
अपने प्रति समाज का नजरिया बदलने के डर से मरीज दूसरों को अपनी बीमारी के बारे में बताना पसंद नहीं करते और सही समय पर इसका उपचार नहीं कराते. इससे समस्या और बढ़ती ही जाती है. मिर्गी से पीड़ित लगभग 80 प्रतिशत लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं. भारत में लगभग 10 मिलियन लोग मिर्गी बीमारी से पीड़ित हैं. समुचित उपचार मिलने पर मरीज नॉर्मल जिंदगी जी सकता है. मिर्गी का इलाज उपलब्ध होने के बावजूद कई विकासशील देशों में तीन-चौथाई प्रभावित मरीज इससे वंचित रह जाते हैं, जिसकी वजह से मरीज की समय से पहले मौत का खतरा सामान्य आबादी की तुलना में तीन गुना अधिक हो जाता है.
Also Read: कुत्ता अगर काट ले तो सबसे पहले क्या करें, कब लगाना चाहिए इंजेक्शन? जानें जरूरी बातें
मिर्गी के दौरों को लेकर आमलोगों के मन में कई तरह की भ्रांतियां हैं. कुछ लोग इसे मानसिक बीमारी, अभिशाप, पूर्व जन्म या इस जन्म में किये बुरे कर्मों का फल, भूत-प्रेत आदि से जुड़ी बीमारी मानते हैं और झाड़-फूंक की जाती है. दौरा पड़ने पर लोग जूता सुंघाने, प्याज सुंघाने, मुंह में चम्मच या अपनी उंगली डालकर नियंत्रित करने की बात करते हैं. वास्तव में मिर्गी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है, जिसका समय पर उपचार होने पर व्यक्ति लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जी सकता है.
कई लोग इसे किसी बीमारी की वजह से पड़ने वाला सामान्य दौरा मान लेते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि मिर्गी दिमाग की अंदरूनी बीमारी है, जिसमें मरीज को दौरे के साथ कई दूसरी तकलीफें भी झेलनी पड़ती हैं. हालांकि, रोगी के कुछ मिनटों में सहज हो जाने के कारण मिर्गी के दौरे को सामान्य दौरा मानकर नजरअंदाज कर दिया जाता है. सामान्यत: 100 में से 10 लोगों को अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी सामान्य दौरे पड़ते हैं. जबकि मिर्गी का दौरा पड़ने के मरीज 100 में से 2-3 होते हैं.
मरीज की स्थिति के हिसाब से 3-5 वर्ष तक एंटी-सीजर दवाइयां या नेजल स्प्रे दिये जाते हैं, जिससे बिना किसी साइड इफेक्ट के मिर्गी के दौरे नियंत्रित हो जाते हैं. तकरीबन 70-80 प्रतिशत मरीज दवा से ठीक हो जाते हैं और उनको दी जाने वाली दवादयां 3 से 4 साल में बंद हो जाती हैं. केवल 15-20 प्रतिशत मरीजों को दवाइयां देने के बावजूद दौरे नियंत्रित नहीं हो पाते हैं, तो ब्रेन सर्जरी करनी पड़ती है. डॉक्टर मरीज के दौरे को वीडियो इजीजी टेस्ट से रिकार्ड करके देखते हैं कि दौरा मस्तिष्क के किस प्वाइंट से आ रहा है. सर्जरी करके उस प्वाइंट को हटा दिया जाता है.
कुछ बातों का ध्यान रखकर मिर्गी की वजह से होने वाले जोखिमों को कम किया जा सकता है.
मिर्गी की समस्या होने पर नियमित रूप से दवाई लें. डॉक्टर के परामर्श के बिना अपनेआप काई दूसरी दवा न लें और न मिर्गी की दवा बंद करें.
मरीज आग, पानी और ऊंचाई पर जाने से बचें, ताकि इस दौरान मिर्गी का दौरा आने पर स्थिति गंभीर हो सकती है.
मिर्गी का दौरा आने के बाद कम-से-कम 5-6 महीने तक ड्राइविंग नहीं करें.
स्कूबा डाइविंग, स्विमिंग जैसी हाइ रिस्क एक्टिविटीज न करें.
माइनिंग, कारखानों में भारी मशीनों के पास काम करने वाले मरीज हो सकें, तो नौकरी बदल लें.
पौषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार लें. उपवास रखने से बचें.
दिन में 6-8 घंटे की नींद जरूर लें.
मिर्गी से जूझ रही और प्रेग्नेंसी प्लान कर रही युवा-महिलाएं विशेष ध्यान रखें.
कम-से-कम एक साल पहले न्यूरोसर्जन को कंसल्ट करें और उनके निर्देशों को फॉलो करें.
अनियंत्रित दौरे वाले मरीज बाहर जाते समय अपने साथ आइकार्ड जरूर रखें, जिसमें फर्स्ट एड निर्देश, घर का पता और डॉक्टर का फोन नंबर जरूर होने चाहिए, ताकि इमरजेंसी की स्थिति में दूसरे लोग उसकी मदद कर सकें.
आप नशीले पदार्थों और अल्कोहल के सेवन से परहेज करें.
इसके होने के कई कारण हैं, जैसे- दिमाग में चोट लगना, ब्रेन हैमरेज, ब्रेन स्ट्रोक या ब्रेन ट्यूमर के कारण मस्तिष्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति ठीक तरह न होने से विकार आना, दिमागी बुखार, टेपवर्म आदि.
बच्चों में यह समस्या प्रीमैच्योर डिलिवरी, जिनका दिमाग पूरी तरह विकसित न हुआ हो या एंजियोफलाइटिस जैसे संक्रमण के कारण गर्भावस्था में शिशु के मस्तिष्क को चोट पहुंचा हो, प्रसव के दौरान या प्रसवोपरांत चोट के कारण मस्तिष्क को नुकसान हुआ हो, जन्म के दौरान कम ऑक्सीजन की कमी हो तो बच्चे को मिर्गी की समस्या हो सकती है.
इसके अलावा शरीर में नमक की कमी होना, किसी नशीले पदार्थ या अल्कोहल के सेवन से रिएक्ट होना, जैसे- सिम्टोमैटिक दौरे पड़ने के कारणों की वजह से भी मरीज को मिर्गी के दौरे पड़ सकते हैं.
मिर्गी का खतरा बढ़ाने वाले कारक
मिर्गी की बीमारी आनुवंशिक होने के कारण छोटे-बड़े किसी को भी हो सकती है. दो से पांच प्रतिशत लोगों को मिर्गी के दौरे बचपन से ही शुरू हो जाते हैं. कई बच्चों में पैदा होने के तुरंत बाद शुरू हो जाते हैं, जिन्हें नियोनेटल दौरे भी कहा जाता है. ये दौरे बच्चे में कैल्शियम की कमी से, प्री-मैच्योर होने के कारण अविकसित दिमाग की वजह से होते हैं. 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में तेज बुखार की वजह से फ्रेबाइल दौरे पड़ते हैं. हालांकि, ये दौरे खतरनाक नहीं होते, लेकिन नजरअंदाज करने पर आगे चलकर मिर्गी का रूप ले लेते हैं. मासिक धर्म के बाद कई महिलाओं में एस्ट्रोजन हॉर्मोन्स की बढ़ोतरी मिर्गी के दौरों की प्रवृत्ति को बढ़ाती है. इसे कैटामेनियल मिर्गी कहा जाता है. ऐसी महिलाओं के 3 से 5 प्रतिशत बच्चों में आनुवंशिक रूप से मिर्गी बीमारी होने की संभावना रहती है. कुछ महिलाओं को इसकी वजह से इंफर्लिटी की समस्या का भी सामना करना पड़ता है.
आमतौर पर मिर्गी के दौरे 1-2 मिनट के लिए ही आते हैं, लेकिन सांस रुकने की वजह से यह मरीज के लिए काफी खतरनाक होता है और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है. मरीज के परिवार के सदस्य या अन्य लोग समुचित जानकारी के अभाव में मरीज की फर्स्ट एड नहीं कर पाते, जिससे उसे नुकसान पहुंचता है. ऐसे में आप कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें.
-
सबसे पहले तो मिर्गी का दौरा आने पर आप घबराएं नहीं. कोशिश करें कि मरीज को दायीं या बायीं करवट लेटा दें, ताकि मुंह से निकलने वाली झाग या थूक अंदर न जा पाये. थूक सांस की नली में जा सकती है, जिससे उसे सांस लेने में दिक्कत हो सकती है.
-
चोट से बचाने के लिए सिर के नीचे मुलायम तकिया या कपड़ा रखें. घबराहट कम करने के लिए मरीज के कपड़े ढीले कर दें.
-
झटके रोकने के लिए हाथ-पैर को न पकड़ें, इससे मरीज को स्लिप डिस्क होने का खतरा रहता है.
-
आसपास कोई नुकीली चीज हो, तो हटा दें, ताकि उसे किसी तरह की चोट न लगे.
-
मरीज की जीभ कटने से बचाने के लिए उसके मुंह में चम्मच, कपड़ा या कोई चीज न डालें, क्योंकि इससे सांस रुक सकती है.
-
पानी वगैरह तभी पिलाएं, जब मरीज को पूरी तरह से होश आ जाये, जिससे पानी फेफड़ों में जाने का खतरा न हो.
कुछ समय पहले तक यह माना जाता था कि किसी व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर यदि अकारण 2 दौरे पड़ जाएं, तो ही उस व्यक्ति को मिर्गी की बीमारी मानी जाती थी, लेकिन वर्तमान में इंटरनेशनल लीग अगेंस्ट एपिलेप्सी (आइएलए) के अनुसार, जरूरी नहीं है कि मरीज में मिर्गी का दौरा पड़ने की प्रवृत्ति बहुत ज्यादा हो. मरीज को दूसरा दौरा 1-2 साल बाद या किसी भी समय आ सकता है. जरूरी है कि किसी मरीज को जब कभी मिर्गी का पहला दौरा आये, तो फिजिशियन या न्यूरोलॉजिस्ट को तुरंत दिखाना चाहिए. डॉक्टर मरीज की केस हिस्ट्री जानकर और एमआरआइ, सिटी स्कैन, इइजी जैसे- ब्रेन परीक्षण करके मरीज में दौरे की स्थिति का पता लगाते हैं. अगर मरीज को आराम नहीं आता है, तो स्पेशल एपिलेप्सी सेंटर से अपना उपचार करा सकते हैं.
मिर्गी के दौरे कई तरह के होते हैं, जिन्हें मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है.
सामान्य मिर्गी के दौरे : इसमें दिमाग के दोनों भाग प्रभावित होते हैं, जिससे मरीज के हाथ-पैर में ऐंठन आना, मुंह से झाग आना, आंखें ऊपर की तरफ चढ़ना, हाथ-पैर में कंपन होना, दांतों तले दबने पर जीभ कटना, सांस लेने में परेशानी होना, पेशाब निकल जाना, बेहोशी आना जैसे लक्षण देखे जाते हैं. मिर्गी के ये लक्षण सामान्य हैं.
आंशिक मिर्गी के दौरे : इसमें मरीज के दिमाग का एक विशेष हिस्सा ही प्रभावित होता है. ऐसे मरीज को मिर्गी के छोटे-छोटे दौरे भी पड़ते हैं, जैसे-
एब्सेन्स दौरे : इसमें मरीज अचानक गुमसुम हो जाता है, स्टेच्यू की तरह हो जाना, एकटक शून्य में देखने लगता है. दूसरे व्यक्ति की बात समझ नहीं आती और उनका कोई रिएक्शन नहीं देता. आंखें झपकाते रहना, मुंह या हाथ चलाते रहना.
कॉम्प्लेक्स पॉर्शियल दौरे : इनमें मरीज को शरीर के एक तरफ झटके आते हैं, भ्रम की स्थिति पैदा होना. सोचने-समझने की क्षमता खत्म होना, लंबे समय तक भी गुमसुम हो जाता है.
अर्ली मॉर्निंग अवेकनिंग जर्क्स : कुछ मरीजों को सुबह उठने पर झटके आते हैं, जिसकी वजह से उसके हाथ से चीजें छूट भी सकती हैं.
औरा दौरे : इस तरह की स्थिति में मरीज को दौरा पड़ने से पहले ही अहसास रहता है कि उसके साथ कुछ गड़बड हो रहा है और दौरा आ सकता है. उसे डर लगने लगता है, वह चिल्लाता है, उसे आवाजें सुनाई देती हैं, आखों के आगे झिलमिलाहट होने लगती है, स्पष्ट दिखाई नहीं देता.