अंजीर हो या मुन्नका सदाबहार हैं ये सूखे जायके, स्वाद के साथ भरी है सेहत
Evergreen Dry Fruits Flavors : बात खान-पान की हो तो क्या हर सूखी हुई चीजें खराब होती हैं ? ऐसा नहीं हैं क्योंकि सूखे मेवे एक सदाबहार जायका है ये आपके मुंह का जायका बढ़ाने के साथ आपके खाने में डालने पर उसके जायके को भी खास बना देेते हैं.
Evergreen Dry Fruits Flavors : अधिकतर मेवों की पिटारी सूखे हुए फलों से ही समृद्ध होती है. सुखाये हुए अंगूर ही किशमिश का रूप धारण करते हैं और इन्हीं की एक प्रजाति मुनक्का बनती है. आम धारणा है कि खाने-पीने की चीजें अगर सूखी हों, तो फीकी या खराब स्वाद वाली ही होती हैं. रूखा-सूखा खाना गरीब इंसान की जिंदगी का ही अभिशाप है- रूखी-सूखी खाये के ठंडा पानी पीव! वैज्ञानिकों ने भी अपने प्रयोगों से यह पुष्टि की है कि हमारी जुबान तभी किसी जायके को महसूस करती है, जब उसमें कुछ नमी हो. हमारे मुंह के अंदर थूक यही काम करता है, पानी, तेल-घी आदि में ही यह गुण होता है कि वह किसी खाद्य पदार्थ के वाष्पशील सुवासित या स्वादिष्ट तत्वों को रूखी-सूखी बेड़ियों की जकड़न से मुक्त करें. मगर ऐसा नहीं है कि सूखी चीजों में अपने विशिष्ट जायके नहीं होते.
संभवत: मीठे और नमकीन व्यंजनों को अपने जायके से अलौकिक बनाने वाला केसर सूखा ही बरता जाता है और संसार की सबसे महंगी ‘सब्जी’ गुच्ची (वह भी कश्मीर में ही जंगलों में पायी जाती है) सूखी अवस्था में ही ग्राहक तक पहुंचती है. अधिकतर मेवों की पिटारी सूखे हुए फलों से ही समृद्ध होती है. सुखाये हुए अंगूर ही किशमिश का रूप धारण करते हैं और इन्हीं की एक प्रजाति मुनक्का बनती है. यह गर्मियों के बनारसी पेय ठंडाई का अभिन्न अंग है और जाने कितनी मिठाइयों की शान इससे बढ़ता है.
यही हाल खूबानी का है, जो सूखने पर जड़दालू कहलाती है. मध्य एशिया से कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड पहुंची खूबानी से दक्खिन में हैदराबाद में नायाब खूबानी का मीठा तैयार किया जाता है. सुखाये हुए अंजीर स्वास्थ्यवर्धक समझे जाते हैं और आजकल इनका उपयोग मधुमेह से पीड़ित लोगों का मुंह मीठा करने के लिए बनायी जाने वाली मिठाई अंजीर की बर्फी में किया जाता है. एक और फल, जिसे कई लोग फलों की सूची में शामिल नहीं करते, खजूर है. खजूर का सूखा रूप छुवारा कम स्वादिष्ट या उपयोगी नहीं होता. इसे असाधारण रूप से पौष्टिक समझा जाता है और रमजान में रोजा रखने वाले खजूर से ही रोजा खोलते हैं. खजूर से हलवा भी बनता है और आजकल इन्हें काजू, अखरोट भर कर चॉकलेट की तरह भी पेश किया जाता है. तीखी खटास वाला आलू बुखारा (अंग्रेजी में प्लम) भी ताजे की तुलना में सूखा ही अधिक इस्तेमाल किया जाता है. मीठा रसभरा आलू बुखारा पश्चिम में सूखाने के बाद प्रून कहलाता है. पोषण वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें (खजूर की तरह) अपचनशील रेशा होता है, जो पाचन प्रणाली को दोषमुक्त रखता है और इसकी मिठास गुड़ या चीनी की तुलना में सेहत के लिए कम जोखिम पैदा करती है. हमारे देश में आम को भी सूखाकर आम पापड़ या अमचूर की तरह काम लाते हैं. पश्चिम में तटवर्ती इलाके में सूखे कोकम के फल की हल्की कसैली खटास को कई जगह इमली के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
हिमालय के देहाती इलाके के गांव हो या फिर राजस्थान में फैला हुआ अपार मरूस्थल, इन इलाकों में ताजी सब्जियां हाल तक दुर्लभ रही हैं. यहां के भोजन को अपने विविध जायकों से संपन्न करती हैं सूखी सब्जियां और बेरियां, कैर सागरी, मेथी, मूली आदि. तिब्बती सीमांत के साथ जुड़े सीमांत में लद्दाख, हिमाचल प्रदेश से लेकर उत्तराखंड, सिक्किम और अरूणाचल तक सूखे मांस (धूप में सुखाये धुवार दिये) मांस और याक के दूध से बनी पनीर (चुरबी) को बहुत चाव से खाया जाता है. समुद्री इलाके में सूखे झींगे और छोटी मछलियां गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु में अपने जायके बिखेरते हैं.
पुष्पेश पंत
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