त्योहारों में स्वाद की सौगात, खानपान के साथ सेहत का भी रखें ख्याल

गांव, कस्बों और शहरों में हर कोई त्योहारों पर जायका बदलने के लिये कुछ करते हैं, ताकि खानपान की एकरसता टूटे और उल्लास का माहौल बन सके.

By पुष्पेश पंत | October 22, 2023 2:56 PM

भारतीय पंचांग, अर्थात पारंपरिक कैलेंडर में शरद ऋतु के आगमन के साथ पर्व और उत्सवों का मौसम शुरू होता है, जो उत्तरायण (अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मध्य जनवरी तक) लगभग निरंतर चलता है. दुर्गा पूजा, विजयादशमी, छोटी-बड़ी दिवाली, गोवर्धन पूजा के बाद थोड़ा अंतराल जरूर आता है पर इसे भी बड़ा दिन और अंग्रेजी नववर्ष पूरा कर देते हैं. गांव, कस्बों और शहरों में हर कोई त्योहारों पर जायका बदलने के लिये कुछ करते हैं, ताकि खानपान की एकरसता टूटे और उल्लास का माहौल बन सके. यह दस्तूर है कि ऐसे अवसरों पर पकवान और मिष्ठान्न तैयार किये जाएं.

पकवान, अर्थात गहरा तला भोजन जो ज्यादा दिन तक टिक सकता है, और मिल-बांट कर खाया जा सकता है. मिष्ठान्न, अर्थात मिठाई. दो पीढ़ी पहले तक हर त्योहार के अपने व्यंजन थे. पुए, रोट, शक्कर पारे, खीर और हलवे, लड्डू और बालूशाही जैसे मिष्ठान्न लोकप्रिय थे. पिछले कुछ वर्षों से त्योहारों के जायके बदलने लगे हैं. दिवाली के अवसर पर मित्रों, संबंधियों के साथ जिस डलिया का आदान-प्रदान होने लगा है, उसमें चॉकलेट, चिप्स, भुजिया और फ्रूट जूस ही सारी जगह घेर लेते हैं. बचे-खुचे स्थान में कुछ फल और मेवे दिख जाते हैं. कुल मिलाकर सजावट पर जोर रहता है, जायकों पर कम.

यह संतोष का विषय है कि नयी पीढ़ी इस नये चलन से बहुत ज्यादा उकता गयी है. वह अपनी जड़ों की तलाश में दिलचस्पी लेने लगी है. इसी कारण कुछ खानपान से जुड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों ने भी त्योहारों-पर्वों के भूले-बिसरे जायकों की तरफ लौटना शुरू कर दिया है. गोलाकार आयातित चॉकलेटों की तरह ही, लगभग पारदर्शी कागज की नन्ही सी कटोरी में सजे तरह-तरह के लड्डू अचानक प्रकट होने लगे हैं- काले और सफेद तिल के, मेथी और गोंद के और मेवे या सूखे फलों के. जो गुजिया कभी सिर्फ होली में खायी-खिलायी जाती थी, अब बारहमास त्योहारों पर मिलती है. नमक पारे, निमकी और शक्कर पारे चिप्स को कुछ दिनों के लिये विस्थापित करते नजर आते हैं. जाड़े में फलों के जूस या शरबत की तुलना में गरमा-गरम काढ़ा, केसरिया इलायची मसाले वाला दूध या मसालेदार कड़क चाय अधिक सोहती है. आप बहुत आसानी से यह पेय घर पर तैयार कर सकते हैं. उपहारों की डलिया में दूध और चाय का मसाला या कश्मीरी कहवे की डिबिया एक सुखद अनुभव है.

यह तो हुई घर पहुंची सौगातों के पिटारे की बात. हमारा मानना है कि आप बहुत आसानी से बदलते मौसम के साथ घर पर बने व्यंजनों के जायके बदल सकते हैं और स्वास्थ्यप्रद नाश्ता-भोजन कर सकते हैं. मसलन, हल्दी की तासीर गर्म होती है और स्वाद और सुवास अद्भुत. जरूरी नहीं कि हर चीज में आप महंगे केसर की ही तलाश करें. दूध को घंटों काढ़ने का धीरज ना हो तो परेशान ना हों, सोंठ की तासीर भी गर्म होती है और शुद्ध हल्दी के पाउडर और सोंठ के मिश्रण से जो सुनहरा पेय बनता है, वह किसी भी चाय को मात देता है. लेशमात्र चिकनाई और शक्कर का प्रयोग कर आप शकरकंद, काली गाजर या चना अथवा मूंग दाल के हलवे तैयार कर सकते हैं. बंगाल में बनने वाले भापा दोई या बुंदेलखंडी फर्रे को आजमा कर तो देखें. ओडिशा के पीठे और महाराष्ट्र के मोदक बहुत आसानी से किसी भी त्योहार का आनंद दोगुना कर सकते हैं. जरूरी नहीं कि इनकी याद हमें बस गणेश चतुर्थी पर ही आये.

Also Read: Hair Fall Remedies: टूटते-झड़ते बालों ने बढ़ाई है चिंता, तो सूखे मेवे का जानिए मैजिक

Next Article

Exit mobile version