Arjuna Award : कई महिला एथलीट्स अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का परचम लहरा चुकी हैं फिर भी घुड़सवारी में महिलाओं की स्थिति बेहद निराशाजनक रही है, मगर पिछले साल हुए एशियाई खेल में राजस्थान की बेटी दिव्यकृति सिंह ने स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच डाला. देश को एशियाई खेल में घुड़सवारी में 41 साल के लंबे अंतराल के बाद स्वर्ण पदक दिलाने वाली दिव्यकृति के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गयी है. वह घुड़सवारी में अर्जुन अवॉर्ड पाने वाली पहली भारतीय महिला बन गयी हैं. देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कारों की घोषणा के बाद मंगलवार को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सभी को राष्ट्रीय पुरस्कार दिये गए. खेल पुरस्कारों में इस बार एक नया इतिहास रचा गया दरअसल, इस बार अर्जुन पुरस्कार की सूची में देश को घुड़सवारी में 41 साल के लंबे अंतराल के बाद ऐतिहासिक स्वर्ण पदक दिलाने वालीं 24 वर्षीया दिव्यकृति सिंह का नाम भी शामिल है. इसके साथ ही अर्जुन पुरस्कार पाने वाली वह पहली भारतीय महिला घुड़सवार बन गयी हैं. मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस खानविलकर की अध्यक्षता में बनी समिति की ओर से आयोजित चयन प्रक्रिया के बाद दिव्यकृति विशिष्ट पुरस्कार विजेताओं की सूची में अपनी जगह बनाने में सफल रहीं. क्योंंकि, इस साल एशियन गेम्स में उन्होंने शानदार प्रदर्शन कर भारत का नाम रोशन किया था, इसलिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया हालांकि, इस मुकाम तक पहुंचने में दिव्यकृति को काफी संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ा है, जो दूसरी बेटियों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है.
महज पांच साल की उम्र में ही थाम ली घोड़ों की लगाम
सबसे कम उम्र में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित होने वालीं महिला घुड़सवार दिव्यकृति सिंह का जन्म 22, अक्तूबर 1999 को राजस्थान के जयपुर में एक समृद्ध परिवार में हुआ था. उनके पिता विक्रम सिंह राठौड़ सेना के रिटायर्ड अफसर हैं, जबकि मां अलका तेज सिंह गृहणी हैं. दिव्यकृति का परिवार मूलरूप से नागौर जिले के एक छोटे-से गांव पीह से संबंध रखता है. दिव्यकृति की पढ़ाई अजमेर के जाने-माने मेयो कॉलेज गर्ल्स स्कूल और द पैलेस स्कूल जयपुर से हुई. जब वह महज पांच साल की थीं, तब से ही उन्हें घोड़ों से काफी लगाव हो गया. सातवीं कक्षा में जाते-जाते उन्होंने घुड़सवारी शुरू कर दी. साथ ही स्कूल स्तर पर आयोजित घुड़सवारी प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगीं.
घर-परिवार व स्कूल में मिली घुड़सवारी की पहली सीख
देश की एक बेहतरीन घुड़सवार दिव्यकृति सिंह को यह साहसिक खेल विरासत में मिला है. उन्हें घर-परिवार और स्कूल में घुड़सवारी की पहली सीख मिली. उनका पूरा परिवार पोलो का शौकीन है. महज पांच वर्ष की उम्र से दिव्यकृति घोड़े की पीठ पर सवार हो गयी थीं.उनके पिता विक्रम सिंह राठौड़ भी इस खेल में खास पहचान रखते हैं. वह काफी समय से राजस्थान पोलो संघ से जुड़े रहे हैं. वह कई बार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. ऐसे में मेयो कॉलेज गर्ल्स स्कूल में पढ़ाई के दौरान जब स्पोर्ट्स एक्टिविटी में हिस्सा लेने की बारी आयी, तो दिव्यकृति ने घुड़सवारी को चुना. इसके बाद वह इसी खेल में मुकाम बनाने का संकल्प ले लिया. इस दौरान वह नेशनल जूनियर कंपटीशन में हिस्सा लेने लगीं. 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिव्यकृति आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गयीं. यहां उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के जीसस एंड मैरी कॉलेज से मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री हािसल की. इस दौरान वह कुछ समय के लिए घुड़सवारी से दूर रहीं, लेकिन बाद में उन्होंने प्रैक्टिस शुरू कर दी. दिव्यकृति की मानें, तो हर एथलीट की तरह उनका भी सपना एिशयन गेम्स में हिस्सा लेना था. काफी प्रैक्टिस करने के बाद भी साल 2022 में उनका एशियन गेम्स में चयन नहीं हो सका, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपनी प्रैक्टिस जारी रखी. आखिरकार, पिछले साल स्वर्ण पदक हासिल कर इतिहास रच डाला. उनकी यह उपलब्धि दूसरी बेटियों के लिए भी मिसाल बन गयी, जो घुड़सवारी के क्षेत्र में मुकाम हासिल करना चाहती हैं.
आज दिव्यकृति जिस मुकाम पर हैं, वहां तक पहुंचने में उन्हें काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा है. उन्हें कठिन प्रशिक्षण के दौर से गुजरना पड़ा है. अपने स्कूल और दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान अक्सर यूरोप में (नीदरलैंड, बेल्जियम, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, डेनमार्क) में ट्रेनिंग लेनी पड़ी. इतना ही नहीं, उन्होंने दुनिया में घुड़सवारी की राजधानी माने जाने वाले वेलिंगटन-फ्लोरिडा, संयुक्त राज्य अमेरिका में भी ट्रेनिंग ली. वहीं, पिछले तीन वर्षों में दिव्यकृति ने जर्मनी में अपने कौशल को निखारा. इसके बाद साल 2023 में उन्होंने चीन में एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली ड्रेस टीम में योगदान दिया. साथ ही कुछ महीने पहले सऊदी अरब की राजधानी रियाद में अंतरराष्ट्रीय ड्रेस प्रतियोगिता में एक व्यक्तिगत रजत और दो कांस्य पदक हासिल करने में सफल रहीं. मार्च 2023 तक इंटरनेशनल इक्वेस्ट्रियन एंड फेडरेशन द्वारा जारी ग्लोबल रिसर्च रैंकिंग में उन्हें एशिया में नंबर वन और विश्व में नंबर 14 का स्थान मिला.
19वें एशियाई खेल में स्वर्ण पदक जीतने से पहले महिला घुड़सवार दिव्यकृति कई उपलब्धियां हासिल कर चुकी हैं. वर्ष 2019-2020 में आयोजित जूनियर राष्ट्रीय घुड़सवारी चैंपियनशिप में रजत पदक, वर्ष 2018-2019 में जूनियर राष्ट्रीय घुड़सवारी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक, वर्ष 2016-2017 में आयोजित जूनियर राष्ट्रीय घुड़सवारी चैंपियनशिप (व्यक्तिगत) में रजत और (टीम) में कांस्य पदक हासिल कर देश का मान बढ़ाया था. वहीं, वर्ष 2017 व 2016 में आयोजित आइपीए जूनियर नेशनल पोलो चैंपियनशिप में विजेता रहीं. दिव्यकृति भारतीय पोलो खिलाड़ी रवि राठौड़ को अपना आदर्श मानती हैं. घोड़ों के अलावा उन्हें डॉग से काफी प्यार है.
कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व करने वालीं महिला घुड़सवार दिव्यकृति की शानदार उपलब्धियों को देखते हुए पिछले साल राजस्थान विधानसभा चुनाव में राज्य चुनाव आयोग, राजस्थान ने उन्हें अपना ‘स्टेट इलेक्शन आइकॉन’ बनाया था. इसके साथ ही उन्हें इंडिया टुडे वुमन अचीवर अवॉर्ड तथा सवाई जयपुर पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
दिव्यकृति सिंह प्रोफाइल
जन्म : 22 अक्तूबर, 1999 जयपुर, राजस्थान
माता-पिता : अलका तेज सिंह और विक्रम सिंह राठौड़
स्कूल : मेयो कॉलेज गर्ल्स स्कूल
कॉलेज : जीसस एंड मैरी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
उपलब्धियां
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वर्ष 2023 में 19वें एशियाई खेल में स्वर्ण पदक जीता
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वर्ष 2019-2020 में जूनियर राष्ट्रीय घुड़सवारी चैंपियनशिप में रजत पदक
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वर्ष 2018-2019 में जूनियर राष्ट्रीय घुड़सवारी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
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वर्ष 2016-2017 में जूनियर राष्ट्रीय घुड़सवारी चैंपियनशिप (व्यक्तिगत) में रजत व (टीम) में कांस्य पदक जीता
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वर्ष 2017 और 2016 में आइपीए जूनियर नेशनल पोलो चैंपियनशिप में विजेता रहीं
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