इमोजी के दौर में मुरझा रहे संवेदनाओं के फूल, आप भी जानें फूलों की भाषा
फूलों की अपनी एक भाषा है और अपना एक संदेश है. जब कोई फूल भगवान को अर्पित किया जाता है, तो वह आस्था का प्रतीक बन जाता है. यही फूल जब प्रेमिका के हाथों में होता है, तो प्यार का राग बन जाता है.
फूलों की अपनी एक भाषा है और अपना एक संदेश है. जब कोई फूल भगवान को अर्पित किया जाता है, तो वह आस्था का प्रतीक बन जाता है. यही फूल जब प्रेमिका के हाथों में होता है, तो प्यार का राग बन जाता है. लेकिन, जब यही फूल किसी शहीद की चिता पर सजता है, तो विरह का दर्द भरा गीत बन जाता है. फूल एक है, पर उसकी संवेदना परिस्थितियों के अनुरूप बदल जाती है. अगर हम कहें कि फूलों की भाषा क्या है, तो वो महज शब्दों का ज्ञान होगा! उसे व्यक्त नहीं किया जा सकता.
फूलों का रंग क्या कहता है
कई बार जब हम शब्दों के जरिये अपने मन के भाव प्रकट नहीं कर पाते, तो फूल ही हमारा सहारा बनकर हमारी बातों को प्रकट करता है. हर फूल की अपनी एक अलग भाषा है, बल्कि हर फूल के रंग की भी! कहते हैं कि ‘तारीफ अपने आप की करना फिजूल है, खुशबू खुद बता देती है ये कौन-सा फूल है.’
फूलों की भाषा
फूलों की भाषा को ‘फ्लोरियोग्राफी’ नाम दिया गया है. यूरोप, एशिया और अफ्रीका की संस्कृति में वर्षों से फ्लोरियोग्राफी का प्रयोग होता आया है. 19वीं शताब्दी के दौरान विक्टोरियन इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका में फ्लोरियोग्राफी की लोकप्रियता बुलंदियों पर थी. फूलों का प्रयोग कोडिंग के लिए किया जाता था. इसमें गहरे राज छुपे होते थे. संदेश का जरिया फूल होते थे, जिन्हें ‘टस्सी-मुसी’ कहते थे. जब किसी व्यक्ति को अपना प्रेम जाहिर करना है, तो वह लाल गुलाब का फूल देता, बदले में उसे पीला गुलाब मिले, तो समझा जाता कि सामने वाले को आप में कोई लगाव नहीं. लेकिन, यदि बदले में लाल गुलाब मिले तो समझा जाता था कि उसने आपका अनुरोध स्वीकार कर लिया है!
फूल संचार का साधन
फूलों का प्रयोग क्रिस्टोलॉजिकल संचार का साधन है. यूं तो फूल भाषा की उत्पत्ति प्राचीन ग्रीक से मानी जाती है. पौराणिक कथाओं की मानें, तो गुलाब को प्रेम के देवता ने बनाया है. 19वीं शताब्दी में फूलों की भाषा का उदय फ्रांस में हुआ, फिर ब्रिटेन और अमेरिका में इसे लोकप्रियता मिली. इसे बनाया तो उपहार के लिए था, लेकिन उच्च वर्ग की महिलाओं के अवकाश के समय उपयोग किया जाने लगा.
फूलों को लेकर एक पौराणिक कहानी
फूलों को लेकर एक पौराणिक कहानी मशहूर है! एक खूबसूरत आदमी जब झील में अपना प्रतिबिंब देखता है, तो अपनी ही सुंदरता पर मोहित हो जाता है. वह रोज झील में खुद को निहारता है. लेकिन वक्त के साथ झील का पानी सूख जाता है और वहां खिल जाते हैं नर्सिसस (डेफोडिल) के फूल. आज यही फूल प्रेम का प्रतीक बन गये हैं. आधुनिकता के इस दौर में मानवीय संवेदनाएं कहीं गुम हो गयीं. अब फूलों की भाषा को कोई समझ नहीं पाता. इमोजी के दौर में मैसेज डिलीट होते ही मानो संवेदनाएं भी खत्म हो जाती हैं. गुजरे जमाने में प्रेमी फूल देकर ही प्यार का इजहार करता था, फिर यही फूल सालों तक याद बनकर किताब के पन्नों के बीच छिपा दिया जाता था. जब प्रेमिका को अपने प्रेमी की याद आती, तो इसी फूल को निकाल कर वह सुनहरे यादों में खो जाती. मगर आज ये बातें बेमानी लगती हैं.
साहित्य में पुष्प
जब साहित्य की बात हो और उनमें फूलों का जिक्र न हो, यह नामुमकिन-सा है. पं माखनलाल चर्तुवेदी से लेकर हजारी प्रसाद द्विवेदी तक ने फूलों पर अपनी कविताएं लिखी हैं. उनकी कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ में जहां एक पुष्प की चाहत को व्यक्त किया, तो द्विवेदी जी ने ‘शिरीष के फूल’ की रचना कर डाली. नरेश सक्सेना ने अपनी कविता की चंद लाइनों में लिखा ‘कितने फूलों से बनती है एक क्यारी, कितनी क्यारियों से एक बगीचा, और कितने बगीचों से बनती है एक शीशी इत्र की, यह बतायेंगे फूलों के व्यापारी, फूल कुछ नहीं बतायेंगे!’ शमशेर को कवियों का कवि कहा गया. उन्होंने अपनी एक कविता में लिखा है, ‘फूल से बिछुड़ी हुई पंखुड़ी, आ फिर फूल पर लग जा’ ये अपने आपमें एक जटिल बात है, फूल की जो पंखुड़ी उससे बिछुड़ गयी है, वो फिर फूल पर कैसे लग सकती है? लेकिन शमशेर संपूर्णता का आह्वान करते हैं. वो एक फूल को संपूर्ण बनाने के लिए पंखुड़ी को पुकारते हैं कि वो फिर से आकर फूल से जुड़ जाये! यह एक ऐसा अनुभव है, जिसे उन्होंने अपनी एक कविता में ‘जीवन की संपूर्णता’ लिखा है.’
भारत में प्राचीन काल से फ्लॉवर थेरेपी
भारत वनस्पतियों और जीवों का भंडार है. यही वजह है कि आयुर्वेद से जुड़े चिकित्सकों के लिए फ्लावर थेरेपी और प्रकृति प्रेमियों के लिए हमारा देश स्वर्ग की तरह है. भारत में फूलों से उपचार सदियों से चला आ रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में लोगों का मोह इस तरफ बढ़ा है. फूलों ने अपनी नाजुक पंखुड़ियों से भारतीय समाज के ताने-बाने को बुना था. ये परंपरा अनादि काल से चली आ रही है. माना जाता है कि जब भगवान बुद्ध, यात्रा के दौरान बीमार पड़ गये, तो कुछ जैन पुजारियों ने कमल की पंखुड़ी पर परोसे गये अमृत से उनका इलाज किया. पुष्प आयुर्वेद की एक शाखा है, जिसे जैन पुजारियों द्वारा विकसित किया गया था. पुष्प चिकित्सा से इनका गहरा लगाव था. फ्लॉवर थेरेपी प्राचीन भारत में मौजूद इस सदियों पुराने उपचार का आधुनिक संस्करण है. फूल से दुख-दर्द, अवसाद, भय, हिस्टीरिया, चिंता जैसे रोगों का उपचार किया जाता है. फूल का चिकित्सा में प्रयोग करने वाले पहले सफल अंग्रेज चिकित्सक डॉ एडवर्ड बाख थे, जिन्होंने 1930 में इन खूबसूरत कृतियों के उपचार ऊर्जा की खोज की.उनके उपचार विश्व प्रसिद्ध ‘बाख के उपचार’ किताब में आज भी लोकप्रिय हैं.
देवताओं के पसंदीदा फूल
सनातन धर्म में 33 कोटी देवों की मान्यता है. सभी देवों का अपना-अलग महत्व है. जिस प्रकार हर देवता का अलग अस्त्र अपना अलग वाहन होता है, उसी प्रकार हिंदू धर्म में फूलों का भी विशेष महत्व है. हर देवता को एक खास फूल समर्पित किया गया है. यूं तो किसी भी भगवान को कोई भी फूल चढ़ाया जा सकता है, लेकिन कुछ फूल देवताओं को बहुत प्रिय होते हैं. इन फूलों का वर्णन विभिन्न धर्म ग्रंथों में मिलता है. माना जाता है कि देवताओं को उनकी पसंद के फूल चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं.
किस देवता को चढ़ता है कौन सा फूल
भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय देवता माना जाता है. भगवान गणेश को दूर्वा सबसे अधिक प्रिय है, वहीं उनकी पूजा में तुलसी निषेध होती है. तुलसी को छोड़कर कोई भी फूल भगवान गणेश को चढ़ाया जा सकता है. भगवान शिव को धतूरे के फूल, हरसिंगार व नागकेसर के सफेद पुष्प, सूखे कमल गट्टे, कनेर, कुसुम, आक, कुश के फूल प्रिय होते हैं, पर उनकी पूजा में तुलसी और केवड़े का पुष्प नहीं चढ़ाया जाता. भगवान विष्णु को तुलसी सबसे अधिक प्रिय है! तुलसी के अलावा विष्णु भगवान को कमल, मौलसिरी, जूही, कदंब, केवड़ा, चमेली, अशोक, मालती, बसंती, चंपा, वैजयंती के पुष्प भी चढ़ाये जाते हैं, लेकिन विष्णु की पूजा में आक, धतूरा, शिरीष, सहजन, सेमल, कचनार और गूलर निषेध हैं. भगवान श्रीकृष्ण को कुमुद, करवरी, चणक, मालती, पलाश व वनमाला के फूल प्रिय होते हैं. गौरी देवी को बेला, सफेद कमल, पलाश, चंपा के फूल प्रिय होते हैं. भगवान शंकर को चढ़ने वाले सभी फूल इस देवी को भी अति प्रिय होते हैं. माता लक्ष्मी को कमल का फूल प्रिय है. उन्हें लाल गुलाब और पीले फूल भी पसंद होते हैं. हनुमानजी की पूजा में आप अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी फूल का इस्तेमाल कर सकते हैं. लाल फूल, गेंदा फूल हनुमानजी को प्रिय होते हैं. राम और सीता को अपनी पसंद का कोई भी फूल अर्पित किया जा सकता है. मां सरस्वती को सफेद और पीले रंग के फूल प्रिय हैं, पर उनकी पूजा में सफेद गुलाब नहीं चढ़ाया जाता.