Museum Day: सड़क पर मोम के पुतलों की प्रदर्शनी लगाते-लगाते पड़ी मैडम तुसाद म्यूजियम की नींव

म्यूजियम के महत्व को बताने व इसके प्रति लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 1983 में 18 मई को म्यूजियम डे के रूप में मनाने का निर्णय लिया. तबसे हर वर्ष 18 मई को म्यूजियम डे के रूप में मनाया जाता है. इस मौके पर जानिए हू-ब-हू इनसान जैसे दिखनेवाले मोम के पुतलों के अनोखे म्यूजियम मैडम तुसाद से जुड़ी रोचक बातें.

By Vivekanand Singh | May 17, 2024 6:52 PM

Museum Day: म्यूजियम की इस अनोखी दुनिया में एक खास नाम मैडम तुसाद म्यूजियम का है. इस म्यूजियम में दुनिया की महान हस्तियों के मोम से बने पुतले लगे हैं, जो हू-ब-हू इनसान की तरह दिखते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि वे कभी भी बोल पड़ेंगे. पुतले के साथ अगर असली व्यक्ति खड़ा हो, तो एक बार के लिए आपकी आंखें भी धोखा खा जायेंगी. लंदन में स्थित मैडम तुसाद म्यूजियम 400 से ज्यादा मोम की मूर्तियां लगी हैं तथा इसकी शाखा कई अन्य देशों में भी स्थित है. इसकी एक शाखा भारत के नयी दिल्ली में भी है.

क्यों बेहद खास होते हैं म्यूजियम

म्यूजियम में आनेवाली पीढ़ी के लिए ऐतिहासिक यादें संजो कर रखी जाती हैं, जो उन्हें कई तरह के संदेश देती हैं. इसमें लोग पूर्वजों की पांडुलिपियां, रत्न, पेंटिंग, रॉकआर्ट, किताबें आदि रखी जाती हैं, लेकिन मैडम तुसाद म्यूजियम की बात ही कुछ और है. यहां उन लोगों के मोम से बने पुतले लगे हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में महान हैं. इस म्यूजियम का ऐसा क्रेज है कि अब यहां किसी व्यक्ति का पुतला लगना उसके ग्लोबल होने की निशानी बन चुका है.

इंसानी कारीगरी का अद्भुत नमूना

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आपको जानकर आश्चर्य हो रहा होगा कि मोम की बनी मूर्तियां आखिर इंसान जैसी जीवंत कैसे हो सकती हैं. दरअसल, यह मनुष्य की कारीगरी का अद्भुत नमूना है, जिसे देख कर बड़े-बड़े लोग हैरान रह जाते हैं. यहां पुतले बनाने के दौरान छोटी-से-छोटी बारिकियों का ध्यान रखा जाता है. दुनिया की शायद ही कोई हस्ती हो, जिनकी इच्छा मैडम तुसाद का हिस्सा बनने की न हो. मैडम तुसाद की मैनेंजमेंट टीम किसी भी व्यक्ति के पुतले लगाने से पहले उसकी पॉपुलरिटी का इंटरनल सर्वे भी करती है. फिर संबंधित व्यक्ति को प्रस्ताव आवेदन भी भेजा जाता है और उनकी अनुमति के बाद पुतले लगाये जाते हैं.

ऐसे बनती हैं मोम की जीवंत मूर्तियां

इन मूर्तियों को ढालने की प्रक्रिया में 150 किलोग्राम मिट्टी का इस्तेमाल सांचे के लिए होता है. मैडम तुसाद से जुड़े प्रसिद्ध कारीगर उनके सैकड़ों माप लेते हैं, जिनकी मूर्ति बननी होती है या फिर वे लोग संबंधित हस्ती के लाइब्रेरी शॉट का अध्ययन करते हैं. मूर्ति की आंखे बनाने में कारीगरों को लगभग 10 घंटे लगते हैं, इस दौरान आंखों की पुतलियों तक के रंग को मैच किया जाता है. उस व्यक्ति की हेयरस्टाइल की नकल करने और सिर पर एक-एक बाल लगाने में कारीगरों को लगभग छह हफ्ते तक लग जाते हैं. एक पुतले को गढ़ने, ढालने और पूरी तरह तैयार करने में लगभग चार महीने लग जाते हैं. इन पुतलों को बनाने में करीब 20 रंगों का इस्तेमाल किये जाते हैं, ताकि पुतले की त्वचा का रंग असल हस्ती से मिलता जुलता हो. चेहरे की हर सिलवट, हर तिल, डिंपल, झुर्री को ज्यों का त्यों उतारा जाता है. तब जाकर मोम की जीवंत मूर्तियां बन पाती हैं.

दुनिया के कई देशों में इसकी शाखा

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क्या आपने कभी सुना है कि एक ही म्यूजियम दुनिया के अलग-अलग देशों में बनी हो. दरअसल, पूरी दुनिया से इस म्यूजियम के विजिटर्स की संख्या इतनी ज्यादा हो गयी कि लंदन स्थित म्यूजियम को देखने के लिए कई दिन पहले से लाइन लगाने पड़ने लगे थे. इसकी लोकप्रियता को देखते हुए दिल्ली समेत दुनिया के कई प्रमुख शहरों में इसकी शाखा खोली गयी. अभी यह म्यूजियम दक्षिण अमेरिका के लॉन्स एंजिल्स, लॉस वेगास, वॉशिंगटन डीसी और न्यूयार्क में स्थित है. वहीं यूरोप में लंदन के अलावा एमस्टर्डम, बर्लिन, वियना और ब्लैकपूल तथा एशिया में बैंकॉक, हॉन्गकॉन्ग और शंघाई में इसकी शाखा है.

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बने हैं कई भारतीय हस्तियों के पुतले

मैडम तुसाद म्यूजियम की शोभा बढ़ाने में कई भारतीय हस्तियों की भी भूमिका है. सबसे पहले इस म्यूजियम में जगह बनायी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसके बाद इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सचिन तेंदुलकर की मूर्तियां यहां लगी. फिर फिल्मस्टार अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, ऐश्वर्या राय, शाहरुख खान, ऋतिक रोशन, करीना कपूर, सलमान खान, कैटरीना कैफ, माधुरी दीक्षित आदि इस म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही हैं. बॉलीवुड की ओर से मैडम तुसाद म्यूजियम में सबसे पहले सुपर स्टार अमिताभ बच्चन पहुंचे. उनका पुतला साल 2000 में लंदन के म्यूजियम में लगा. सचिन तेंदुलकर इस संग्रहालय में मोम के सांचे में समा जानेवाले खेल की दुनिया के पहली भारतीय हस्ती हैं. देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मोम की मूर्ति को भी मैडम तुसाद म्यूजियम में जगह दी गयी है.

मैडम तुसाद म्यूजियम की स्थापना

वर्ष 1835 में मैडम तुसाद म्यूजियम की नीव ‘मैडम मेरी तुसाद’ द्वारा रखी गयी थी. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मैडम मेरी तुसाद पहले लंदन में बेकर स्ट्रीट बाजार में सड़क के किनारे मोम की मूर्तियों की प्रदर्शनी लगायी थी. इसी प्रदर्शनी ने आगे चल कर एक म्यूजियम का रूप धारण कर लिया. दरअसल, मोम के पुतले बनाने की कला मैडम मेरी ने स्विटजरलैंड के डॉक्टर फिलिप कर्टियस से सीखी थी. डॉक्टर फिलिप मोम के अंगों को चिकित्सा जगत में इस्तेमाल करने के लिए बनाते थे. 1761 में फ्रांस के स्ट्रासबर्ग शहर में जन्मी मैडम मेरी तुसाद की मां डॉक्टर फिलिप के यहां नौकरी करती थीं और यहीं से मैरी को मोम के पुतले बनाना सीखा. पहली बार मैडम मेरी तुसाद ने 1777 में महान विचारक वॉल्टेयर के मोम का पुतला बनाया. उन्होंने मशहूर ज्यां जेक्स, रूसो और बेंजामिन फ्रैंकलिन के मोम के पुतले भी बनाये, ये सभी साल 1789 की क्रांति से पहले बने थे.

जेल जाने की वजह से मिला मौका

मैडम मेरी तुसाद को शाही परिवार का हमदर्द माना जाता था, विद्रोह के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. वर्ष 1789 में हुए फ्रांसिसी क्रांति में मैडम मेरी को जेल जाना पड़ा, इस दौरान उन्होंने नेपोलियन बोनापार्ट की पत्नी के साथ जेल का कमरा शेयर किया. 1794 में जब वे जेल से बाहर आयीं, तो वे लंदन में फंसी रह गयीं और इस दौरान उन्होंने फ्रांसिस तुसाद से शादी की. वहीं मैडम मेरी ने फ्रांसिसी क्रांति से जुड़े लोगों के मोम की मूर्तियां बनायीं. इन्हीं कलाकृतियों के संग्रह की वजह से इस म्यूजियम की नींव पड़ी.

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