Gandhi Jayanti: पूरे विश्व के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार प्रकाश पुंज की तरह हैं. महात्मा गांधी के मन-मस्तिष्क में इन विचारों के बीज उनकी मां पुतलीबाई के व्यक्तित्व ने बोये, जो नैतिकता और करुणा भाव की प्रतिमूर्ति थीं. वहीं पत्नी कस्तूरबा से ‘उपवास’ का वह शस्त्र मिला, जो आगे सत्याग्रह आंदोलन में अचूक हथियार बना. गौर करें, तो गांधीजी ने अपनी मां और पत्नी को ही नहीं, हर खास और आम महिलाओं को भी अपना प्रेरणा-पुंज बनाया. इस गांधी जयंती हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उन विचारों को करीब से जानते हैं, जिन्होंने एक खुदमुख्तार मुल्क में कई महिलाओं के लिए खुदमुख्तारी के बीज बो दिये!
महात्मा गांधी के विचार उनसे जुड़ने वाली भद्र महिलाओं से ही नहीं, न जाने कितनी आम महिलाओं से प्रभावित होकर प्रेरणा-पुंज बन गये, जिसने आजादी के आंदोलन में महिलाओं को जोड़ने का काम किया. महिलाओं को लेकर गांधीजी के विचार में ठहराव नहीं, निरंतर गतिशीलता दिखी. यही वजह रही कि पत्नी कस्तूरबा को लेकर उनके विचार बदलते रहे और बा के प्रति उनके मन में सम्मान बढ़ता गया.
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औपनिवेशिक दौर में आम भारतीय महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में आत्मसम्मान और आत्मबल से परिचित कराने के लिए सार्वजनिक सभाओं में उनके कहे और अखबारों में लिखे विचार बताते हैं कि गांधी भारतीय महिलाओं के विकास को समग्रता में देख ही नहीं रहे थे, एक समतल जमीन बनाने की कोशिश भी कर रहे थे.
1936 में ‘हरिजन’ पत्रिका में गांधी जी ने लिखा कि स्त्री का सबसे बड़ा अस्त्र उसकी अहिंसा, पीड़ा सहने की क्षमता, उसका त्याग और सेवा भाव है. उनकी सहनशक्ति पुरुषों से अधिक है. तमाम हिंसाओं की पीड़ा झेलती हुई भारतीय महिलाएं जिस प्रेम और त्याग से परिवार में अपनी भूमिका निभा रही है, यह सिद्ध करता है कि वह कमजोर तो कतई नहीं है. जो यह समझते हैं धार्मिक और सामजिक पाबंदियां थोपकर उनको असहाय बनाया जा सकता है, तो वह समझते ही नहीं कि अहिंसा, पीड़ा सहने की उनकी क्षमता, महिलाओं को चट्टान-सा मजबूत बना देता है और उनके लिए हर चुनौती आसान बन जाती है. अगर अहिंसा हमारे अस्तित्व का नियम है, तो भविष्य महिलाओं के साथ है.
वर्ष 1929 में ‘यंग इंडिया’ में गांधीजी ने लिखा कि भारतीय महिलाएं सीता, सावत्री और द्रौपद्री जैसी महिलाओं को अपना आदर्श मानती हैं, जो साहसिक चरित्र की महिलाएं थीं. वे गलत के खिलाफ अवाज उठाती रहीं. क्या कोई पुरुष इस तरह का अत्याचार कभी स्वीकार्य कर पाता? गांधीजी ने यहां तक कहा कि अगर वह स्वयं महिला होते, तो पुरुषों द्वारा होने वाले इन अत्याचारों को कभी बर्दाश्त नहीं करते. उनके शब्दों में- इसलिए मैं कहता हूं कि महिलाओं को कमजोर कहना एक अपमान है, यह महिलाओं के साथ एक पुरुष का अन्याय है. अगर ताकत का मतलब नैतिकता से है, तो महिलाएं पुरुषों से श्रेष्ठ हैं, क्योंकि उनके पास पुरुषों से अधिक आत्मबल और नैतिक बल है.
गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत आये और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हो रहे थे. तब शिक्षा केवल दो फीसदी भद्र महिलाओं तक ही सीमित था. भारतीय समाज महिलाओं को मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर मानता था. शिक्षा के विस्तार को भद्र महिला से आम महिलाओं के बीच पहुंचाने के लिए महात्मा गांधी ने ‘यंग इंडिया’ में 1929 में लिखा- एक आदमी को पढ़ाओगे तो एक व्यक्ति शिक्षित होगा. एक स्त्री को पढ़ाओगे, तो एक पूरा परिवार शिक्षित होगा. स्त्री, पुरुष की साथी है, जिसके पास समान मानसिक क्षमता कुदरती तौर पर होती है, इसलिए दोनों में भेद करना सही नहीं है. यह कहकर कि महिलाओं के पास शिक्षित होने के लिए मानसिक क्षमता नहीं है, गलत है.
1936 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में महिलाओं के विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था- भारत की मुक्ति महिलाओं के बलिदान और ज्ञान पर निर्भर करती है. परंपरागत रूप से नारी को अबला (बिना ताकत के) कहा जाता है. यदि बल का तात्पर्य पाश्विक शक्ति से नहीं, बल्कि चरित्र के बल, दृढ़ता और धीरज से है, तो उन्हें सबला, बलवान कहा जाना चाहिए. महिलाओं को किसी भी स्थिति में खुद को पुरुषों से कमतर नहीं समझना चाहिए. जब महिला, जिसे हम अबला कहते हैं, सबला बन जाती है, तो सभी असहाय लोग शक्तिशाली हो जायेंगे.
एक आजाद देश में महिलाओं के स्वतंत्रता का लक्ष्य तय करते हुए महात्मा गांधी ने 1936 में हरिजन में लिखा- ‘‘जिस दिन भारतीय महिला रात में सड़कों पर स्वतंत्र रूप से चलने लगेगी, उस दिन हम कह सकते हैं कि भारत में महिलाओं ने स्वतंत्रता हासिल कर ली’’. गांधी जी के ये विचार संदेश देते हैं कि देश की उन्नति व एक सभ्य समाज के निर्माण में स्त्रियों की भागीदारी सर्वथा महत्वपूर्ण है और उनके साथ चल कर ही हम अपने लक्ष्य को हासिल कर पायेंगे.