World Grand Parents Day: अनुभवों का खजाना ही नहीं, मस्ती का बहाना भी हैं ग्रैंड पैरेंट्स
अंग्रेजी में कहें तो ग्रैंड पैरेंट्स (Grand Parents) और हिंदी में दादाजी-दादी मां या फिर नानाजी-नानी मां... ये रिश्ते किसी भी परिवार के लिए बरगद के उस पेड़ की तरह होते हैं. तो आइए चलते हैं फिर से दादी-नानी के साथ उनकी कहानियों की दुनिया में... ताकि फिर से आपके बचपन के साथ उनका बचपन भी गुलजार हो उठे!
रचना प्रियदर्शिनी
World Grand Parents Day: अंग्रेजी में कहें तो ग्रैंड पैरेंट्स और हिंदी में दादाजी-दादी मां या फिर नानाजी-नानी मां… ये रिश्ते किसी भी परिवार के लिए बरगद के उस पेड़ की तरह होते हैं, जिनके स्नेह, अनुभव व मार्गदर्शन के छांव तले परिवार के हर सदस्य का जीवन पल्लवित व पुष्पित होता है. अपने पोते-पोतियों या नाती-नातिनों के लिए तो उनके ग्रैंड पैरेंट्स न सिर्फ मजेदार किस्से-कहानियों का पिटारा होते हैं, बल्कि उन्हें मम्मी-पापा की डांट-मार से भी बचाते हैं. यही वजह है कि कई बार बच्चे जो बात अपने पैरेंट्स को बताने से डरते या झिझकते हैं, उसे वे अपने ग्रैंड पैरेंट्स को बता देते हैं. बाल मनोवैज्ञानिकों का भी मानना है कि बच्चों के स्वस्थ व्यक्तित्व विकास में उनके ग्रैंड पैरेंट्स की भूमिका बेहद खास होती है.
वो कांपती आवाज सिर्फ आदेश नहीं देती, बल्कि लोरियां व कहानियां भी सुनाती है… वो थरथराते हाथ हमेशा मांगने के लिए नहीं उठते, बल्कि माथे पर स्नेह तथा आशीष की छाया भी देते हैं…. उनकी बातें हमेशा बोरिंग नहीं होतीं, बल्कि उनमें जीवन के अनुभवों के खजाने छिपे होते हैं और वो उम्मीदों से भरी नजर हर पल इस इंतजार में रहती है कि कब उनके बच्चे (पोते-पोतियां / नाती-नातिनें) उनके पास आकर बैठें और उनसे अपने दिन-भर की उठा-पटक और मस्ती को साझा करें. जिम्मेदारियों का बोझ तो अब तक बहुत उठा चुके हैं ये कंधे, अब तो उन्हें फिर से अपने बचपन को जीने की तमन्ना है. परिवार-बच्चों के साथ बैठ कर गप्पे लड़ाना, उनसे देश-दुनिया के बारे में नयी-नयी जानकारी हासिल करना, मोबाइल फोन या टैबलेट को चलाना सीखना, पिज्जा-बर्गर वाले जमाने की नयी-नयी डिशेज ट्राइ करना, अपने बेटे-बहू से छिप कर पोते-पोतियों संग मिठाई या नमकीन के चटखारे लेना….आदि कितना कुछ करना चाहते हैं हमारे ग्रैंड पैरेंट्स अपने ग्रैंड चिल्ड्रेन के साथ. जरूरत तो बस इस ‘जरूरत’ को महसूस करने की है.
हर समस्या का हल होता है इनके पास
आज की भागती-दौड़ती जिंदगी में कई लोगों को घर के बुजुर्ग एक बोझ या समस्या की तरह लगते हैं. उनकी ढलती उम्र, कमजोर होती नजरों, कांपते हाथ व बढ़ती बीमारियों के लिस्ट की जिम्मेदारी शायद हर कोई उठाना नहीं चाहता, लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट की प्रैक्टिशनर एडवोकेट नाज सिंह कहती हैं- ”पैरंट्स और बच्चों के बीच प्यार के साथ-साथ अनुशासन वाला रिलेशन भी होता है, जबकि ग्रैंड पैरेंट्स के साथ एक अलग ही लेवल का इमोशनल अटैचमेंट होता है. वे न सिर्फ आपको प्यार करते हैं, बल्कि कई बार पैरेंट्स के गुस्से को कंट्रोल करने और उनको डांट खिलाने में भी मदद करते हैं. उनके पास अनुभवों का खजाना होता है, इसलिए वे किसी भी तरह की समस्या का कैसे भी करके समाधान बता देते हैं, वो भी ऐसा, जो सबके हित में हो.”
कांपते हाथों व झुकते कंधों की ये ख्वाहिश
दिन-ब-दिन व्यस्त होती दिनचर्या में लोग अपने मां-बाप को भी अपने साथ रखने से कतराने लगे हैं.ऐसे में उनके मां-बाप यानी दादा-दादी या नाना-नानी को कौन पूछे! हांलाकि, ऐसा करते समय वे यह भूल जाते हैं कि भविष्य में उन्हें भी उम्र के इस दौर का सामना करना पड़ेगा. उस वक्त अगर वे अपने बच्चों से ऐसी कोई उम्मीद रखते हैं, तो यह कहां से संभव हो पायेगा. जरा सोचिए कि आपके घर के बुजुर्ग आपसे क्या चाहते हैं- बस दो वक्त की रोटी और आपकी थोड़ी-सी देखभाल. जीवन की डूबती बेला में जब उनकी इंद्रियां उनका साथ छोड़ने लगती हैं, तो उस वक्त उनके झुकते कंधों को एक सहारे की जरूरत है, जिन पर सिर टिका कर वे सुकून की नींद सो सकें. वे चाहते हैं कि उनकी कांपती हाथों को थाम लें उनके नन्हे-मुन्ने, जो अब डंडा थाम कर सड़क पार करने से भी स्वत: घबरा जाते हैं.
ऐसे शुरू हुई इस दिवस को मनाने की परंपरा
अमेरिका में मैरियन मैकुडे नाम की एक दादी थीं, जिनके 43 ग्रैंड चिल्ड्रेन थे. वह चाहती थीं कि ग्रैंड पैरेंट्स और ग्रैंड चिल्ड्रेन के बीच संबंध अच्छे हों. वे एक-दूसरे के साथ समय बिताएं. इसी उद्देश्य से उन्होंने 1970 में एक अभियान की शुरुआत करते हुए हुए इस दिन को नेशनल हॉलीडे मनाने की मुहिम छेड़ी. करीब नौ वर्षों बाद अमेरिका के तत्कालीन प्रेसिडेंट जिमी कार्टर ने 1979 को 1 अक्तूबर के दिन ‘ग्रैंड पैरेंट्स डे’ घोषित किया. सबसे पहले एज यूके नाम की एक चैरिटी ने 1990 में ग्रैंड पैरेंट्स डे मनाया था.