Guru Gobind Singh Jayanti 2022: नानकशाही कैलेंडर के अनुसार हर साल पौष महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती मनाई जाती है. इस शुभ अवसर पर गुरुद्वारों में कीर्तन और लंगर आयोजित किए जाते हैं. आप भी इस बार गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती की खुशी सबसे बांटें. आज हम आपको गुरु गोबिंद सिंह के जीवन से जुड़ी 10 बड़ी बातें बताने वाले हैं.
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गुरु गोबिंद सिंह का जन्म सिख धर्म के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के घर तख्त श्री पटना साहिब में हुआ था.
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अपने पिता गुरु तेग बहादुर की शहादत के बाद मात्र 9 साल की उम्र में गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु की जिम्मेदारी ली. धनुष- बाण, तलवार, भाला आदि चलाने की कला भी सीखी और फिर अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में गुजार दिया.
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गुरु गोविंद सिंह ने पंच प्यारे और 5 ककार शुरु किए थे. खालसा पंथ में ही गुरु ने जीवन के पांच सिद्धांत बताए थे, इन्हीं को पांच ककार कहा जाता है – केश, कृपाण, कंघा, कड़ा और कच्छा. कहते हैं कि हर खालसा सिख को इसका पालन करना जरूरी है.
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गुरु गोविंद सिंह जी ने ही खालसा वाणी, ‘वाहे गुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह’ दिया था. गुरु की गरिमा बनाए रखने के लिए इन्होंने कई भाषाएं सीखी थी, जिन्में संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी शामिल है.
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गुरु गोबिंद सिंह दक्षिण सिरमुर, हिमाचल प्रदेश में यमुना नदी के किनारे एक शहर पांवटा गए थे. यहां पर उन्होंने पांवटा साहिब गुरुद्वारा की स्थापना की और सिख सिद्धांतों के बारे में प्रचार किया. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पांवटा साहिब आज भी सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. गुरु गोबिंद सिंह ने यहां 3 साल बिताए थे. इस दौरान उन्होंने कई ग्रंथ लिखे और अपने अनुयायियों की पर्याप्त संख्या भी एकत्र की.
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सितंबर 1688 में गुरु गोबिंद सिंह ने भीम चंद, गढ़वाल के राजा फतेह खान और शिवालिक पहाड़ियों के अन्य स्थानीय राजाओं की एक संयुक्त सेना के खिलाफ भंगानी की लड़ाई लड़ी थी. उस समय उनकी उम्र सिर्फ 19 साल थी. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लड़ाई एक दिन तक चली और हजारों लोगों की जान इस दौरान चली गई. एक और अहम बात आपको बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह ने संयुक्त सेना को मात दी.
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बिलासपुर की रानी के निमंत्रण पर गुरु गोबिंद सिंह नवंबर 1688 में आनंदपुर लौट आए थे, जो फिर बाद में चक नानकी के नाम से जाना जाने लगा.
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गुरु गोबिंद सिंह ने 30 मार्च 1699 को अपने अनुयायियों को आनंदपुर में अपने घर पर इकट्ठा किया. उन्होंने एक स्वयंसेवक से अपने भाइयों के लिए अपना सिर बलिदान करने के लिए कहा. ये सुनकर एक अनुयायी जिनका नाम दया राम था फौरन इसके लिए तैयार हो गए. गुरु उन्हें एक तंबू के अंदर लेकर गए और एक खूनी तलवार के साथ बाहर निकले. उन्होंने फिर से एक स्वयंसेवक को बुलाया और फिर ऐसा ही किया. 5 बार ऐसा करने के बाद, आखिर में गुरु 5 स्वयंसेवकों के साथ तम्बू से निकले और तम्बू में 5 सिर कटी बकरियां मिलीं. इन 5 सिख स्वयंसेवकों को गुरु ने ‘पंज प्यारे’ या ‘पांच प्यारे’ के रूप में नामित किया.
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साल 1699 की सभा में गुरु गोबिंद सिंह ने ‘खालसा वाणी’ की स्थापना की – “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह”. उन्होंने अपने सभी अनुयायियों का नाम ‘सिंह’ रख दिया जिसका मतलब है शेर. उन्होंने खालसा के ‘5 ककार’ या सिद्धांतों की भी स्थापना की. ये हैं- केश, कंघा, कच्छा, कड़ा, कृपाण.
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आपको मालूम हो कि गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा और सिखों के धार्मिक ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को ही सिखों के अगले गुरु के रूप में नामित किया था. बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह ने 07 अक्टूबर 1708 को अपना शरीर छोड़ दिया था.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Prabhatkhabar.com इसकी पुष्टि नहीं करता है.)