Happy Diwali 2022: मिट्टी का दीपक, दिवाली और मान्यताएं

Happy Diwali 2022: मिट्टी को मंगल स्वरुप माना जाता है और तेल को शनि का प्रतीक. शनि न्याय और भाग्य के देवता हैं. इसलिए मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपादृष्टि मिलती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 23, 2022 6:14 PM

Happy Diwali 2022: दिवाली के अवसर पर घरों की चौखट और मुंडेर पर दीपक जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है. कई धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है. वनवास के बाद जब भगवान रामचंद्र अयोध्या लौटे थे, तब भी नगरवासियों ने घरों के बाहर दीपक जलाए थे. दरअसल, मिट्टी का दीपक पंचतत्वों का प्रतीक है. ये हैं जल, वायु, अग्नि, आकाश व भूमि. उसमें ये पांचों तत्व मौजूद होते हैं. मिट्टी को मंगल स्वरुप माना जाता है और तेल को शनि का प्रतीक. शनि न्याय और भाग्य के देवता हैं. इसलिए मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपादृष्टि मिलती है. यही कारण है कि दिवाली पर अंधकार मिटाने के लिए मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा है.

व्रत और त्यौहार हमें अपनी जड़ों से जुड़ने की सीख देते हैं

पर्व हमारी उत्सवी संस्कृति का अटूट हिस्सा हैं. यही हमारी जीवन शक्ति भी है. यूं तो हमारा देश विविधताओं से भरा है, जहां दुनियाभर की संस्कृति का बसेरा है. यहां हर ऋतु में उत्साह और त्यौहार की धूम रहती है. हमारे व्रत और त्यौहार हमें अपनी जड़ों से जुड़ने की सीख देते हैं. दीपावली का त्यौहार भी अपना धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है. प्रकाश का यह पर्व हमें सीख देता है कि केवल बाहरी चकाचौंध ही नहीं, अपने मन के भीतर भी प्रकाश उत्पन्न करना जरूरी है. लेकिन, ये प्रकाश उस दीये का होना चाहिए जिसका दिवाली के त्यौहार में धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. मिट्टी का यह छोटा सा दीया गहरे अंधकार में भी उजास की लौ जलाकर रखता है. उसी प्रकार जैसे हमारे त्यौहार रिश्तों की डोर को बांधकर रखते हैं.

मिट्टी से मानव का जन्म जन्मांतर का नाता

हमारी भारतीय संस्कृति में प्रकृति की छाप हर जगह देखने को मिलती है! हमारे व्रत त्यौहार हमें प्रकृति के करीब लेकर आते हैं. प्राचीन काल से ही हम प्रकृति के साथ जुड़े हुए हैं. इस जुड़ाव ने हमारे संस्कारों के साथ साथ विकास को भी एक नई रफ़्तार दी है. मिट्टी से हमारा जन्म जन्मांतर का नाता रहा है. इसकी झलक आज भी प्राचीन भारतीय संस्कृतियों एवं सभ्यताओं में धातु, मिट्टी के बर्तनों के अवशेषों में देखने को मिलती है. मिट्टी हमारे परिवेश का हिस्सा है लेकिन पर्यावरण की प्रतिकूलताओं का इस पर गहरा असर पड़ा है. वर्तमान दौर में मिट्टी का महत्व कम नहीं हुआ है. आज भी पूजा की सामग्री से लेकर बच्चों के खिलौनों के निर्माण में मिट्टी का उपयोग बख़ूबी हो रहा है.

संस्कृति की शुरुआत और मिट्टी का कल्पनाशील उपयोग

मिट्टी का कल्पनाशील उपयोग ही संस्कृति की शुरुआत है. आधुनिकता की चकाचौंध में भले हम अपनी मिट्टी से दूर हो रहे हैं. लेकिन, हमारे व्रत त्यौहार हमें अपनी जड़ों से जुड़ने की सीख दे रहे हैं. हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है. इसलिए कि मिट्टी को मंगल का प्रतीक माना जाता है. इसके अलावा तेल शनि का प्रतीक है. शनि न्याय और भाग्य के देवता हैं. मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है. दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाएं जाते हैं और अंधकार को मिटाया जाता है.

हर काल में प्रसिद्ध हुए मिट्टी से बनें मृदभांड

दुनिया के इतिहास को जानने में भी मिट्टी की अहम भूमिका है. कुम्हारों के बनाए मिट्टी के बर्तन हर युग में मौजूद रहे हैं. फिर चाहे बात हड़प्पा काल में चित्रित मृदभांड की हो या लोथल से मिले मृदभांड में प्यासे कव्वे की कहानी का चित्र. मिट्टी के बर्तन हर दौर में मौजूद थे जो आज अपने इतिहास की गाथा दुनिया के सामने सुनाते हैं. महाजन पदकाल के मृदभांड आज भी लोकप्रिय हैं. माना जाता है कि ग्लेज्ड पॉटरी की शुरूआत बारहवीं सदी से है और राजस्थान में इसका सबसे पहले प्रयोग हुआ. उत्तर प्रदेश में कौशाम्बी और राजघाट, मथुरा, हस्तिनापुर, अयोध्या, श्रावस्ती, वाराणसी और बिहार में वैशाली, राजगीर, पाटलिपुत्र और चंपा, मध्यप्रदेश में उज्जैन व विदिशा में खुदाई के दौरान मिट्टी के बर्तनों के प्रमाण मिले हैं. इससे जाहिर होता है, कि मिट्टी से हमारा सदियों पुराना और पीढ़ियों का नाता रहा है.

पंचतत्व का प्रतिनिधित्व करता है मिट्टी से बना दीया

जल, वायु, अग्नि, आकाश, भूमि और मिट्टी से मिलकर ही इस प्रकृति का निर्माण हुआ है. मिट्टी का दीया इन पांचो तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है. मिट्टी में ये पांचो तत्व मौजूद रहते हैं. इसलिए हमारे धर्म ग्रन्थ भी इसे पवित्र मानते हैं. भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला हो या माता पार्वती के जन्म की कहानी. मिट्टी का हर युग में वर्णन मिलता है. यही वजह है कि धार्मिक अनुष्ठानों में इसका उपयोग किया जाता है. कहते है दीप प्रज्वलन की प्रक्रिया तीनों लोकों और तीनों कालों का भी प्रतिनिधित्व करती है. इसमें मिट्टी का दीया हमे पृथ्वी लोक व वर्तमान को दिखाता है जबकि उसमें जलने वाला तेल और घी भूतकाल व पाताल लोक का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं जब इसमें रुई की बाती डालकर प्रज्जवलित किया जाता है तो यह लौ आकाश, स्वर्ग लोक व भविष्यकाल काल का प्रतिनिधित्व करती है. ग्रामीण भारत में आज भी मिट्टी के बर्तनों की परंपरा है, दुनिया के अन्य देश की तुलना में, भारत में सबसे अधिक कुम्हार रहते हैं. जो मिट्टी का बख़ूबी इस्तेमाल करते हैं. यहां तक कि हमारे आराध्य देवताओं की मूर्तियां भी मिट्टी की बनी हुई रहती है. मिट्टी को धरती मां कहा गया है, इसलिए बिना पकी हुई मिट्टी में बनाई गई छवियों को देवताओं को बनाने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है.

कुम्हार के शिल्प से जुड़ी पौराणिक किवदंती

भारत में कुम्हारों के शिल्प की कई पौराणिक किवदंतियां देखी जा सकती हैं. एक कहानी के अनुसार, तीन प्रमुख देवताओं में से एक, विनाश के देवता भगवान शिव, हिमालय की पुत्री पार्वती से शादी करना चाहते थे. लेकिन उनके पास कोई कुम्भ या मिट्टी का घड़ा नहीं था, इसके बिना विवाह नहीं हो सकता था. तब उन्हें एक ब्राह्मण व्यक्ति, कुललुक ने, अपनी सेवा प्रदान करने की पेशकश की. लेकिन, बर्तनों के निर्माण के लिए उन्हें औजारों की आवश्यकता थी. इसलिए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र कुम्हार के पहिये के रूप में दिया. शिव ने पहिया घुमाने के लिए अपना भांग घोटने का मूसल दिया. साथ ही उन्होंने पानी को पोंछने के लिए अपना लंगोट और बर्तन को काटने के लिए अपना जनेऊ या पवित्र धागा भी दिया. सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने अपने आदि-कुर्मा (कछुए) को एक खुरचनी के रूप में उपयोग करने के लिए दिया. माता पार्वती ने अपने शरीर से मिट्टी दी. इन उपकरणों से कुललुक ने बर्तन तैयार किए और इस प्रकार भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ. कुललुक के वंशजों को खुम्भर या ‘बर्तन बनाने वाला’ कहा जाता है.

मिट्टी के दीपक की चमक आज भी बरकरार है

आधुनिकता की चकाचौंध में हमारे प्राचीन रीति रिवाज पीछे छूट रहे हैं, पर मिट्टी के दीपक की चमक आज भी बरकरार है. दीवाली पर बड़ी मात्रा में दीपक खरीदे जाते हैं. दीपावली आते ही कुम्हारों के चेहरे खिल उठते हैं. मिट्टी के कलाकार बड़े ही उत्साह के साथ दीये तैयार करते हैं. दीपावली पर भले ही कितने भी इलेक्ट्रिक उपकरण खरीद लें, मगर मिट्टी के दीये का महत्व कभी कम नहीं हो सकता है. भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में मिट्टी के दीयों की मांग हर साल बढ़ जाती है. मिट्टी का छोटा सा दीया दुनिया को रोशन करने की क्षमता रखता है.

सोनम लववंशी sonaavilaad@gmail.com

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