आज दो अक्तूबर यानी रविवार को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती है. देश और दुनिया में सत्य और अहिंसा की नयी राह दिखानेवाले मोहनदास करमचंद गांधी सिर्फ नाम नहीं बल्कि विचार है. नके विचारों से न सिर्फ भारतीय ही प्रभावित थे, बल्कि कई जगहों पर अंग्रेज भी उनके विचारों का सम्मान करते थे. आज हम आपको गांधी जी के कुछ ऐसे ही विचारों के बारे में बताने जा रहे हैं. जिन्हें अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में उतार ले, तो उसका जीवन बदल सकता है.
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पाप से घृणा करो, पापी से प्रेम करो.
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श्रद्धा का अर्थ है आत्मविश्वास और आत्मविश्वास का अर्थ है ईश्वर में विश्वास.
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आप तब तक यह नहीं समझ पाते कि आपके लिए कौन महत्वपूर्ण है, जब तक आप उन्हें वास्तव में खो नहीं देते.
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हम जिसकी पूजा करते हैं, उसी के समान हो जाते हैं.
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व्यक्ति अपने विचारों से निर्मित एक प्राणी है, वह जो सोचता है वैसा ही बन जाता है.
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ऐसे जिएं कि जैसे आपको कल मरना है और सीखें ऐसे जैसे आपको हमेशा जीवित रहना है.
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क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है.
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हम जिसकी पूजा करते हैं, उसी के समान हो जाते हैं.
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धैर्य का एक छोटा सा हिस्सा भी, एक टन उपदेश से बेहतर है.
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जो भी चाहे अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन सकता है. वह सबके भीतर होती है.
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जब तक गलती करने की स्वतंत्रता न हो, तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है.
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काम की अधिकता नहीं, अनियमितता आदमी को मार डालती है.
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प्रेम की शक्ति दंड की शक्ति से हजार गुनी प्रभावशाली होती है.
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स्वयं को जानने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है स्वयं को औरों की सेवा में लगा देना होता है.
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आंख के बदले आंख पूरे विश्व को अंधा बना देगी.
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डर शरीर का रोग नहीं है, यह आत्मा को मारता है.
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गुलाब को उपदेश देने की आवश्यकता नहीं होती.वह तो केवल अपनी खुशबू बिखेरता है. उसकी खुशबू ही उसका संदेश है.
गांधी जयंती की सबसे खास बातों में से एक यह है कि इस दिन को पूरी दुनिया अहिंसा दिवस के रूप में मनाती है. 15 जून 2007 को यूनाइटेड नेशंस जेनरल असेंबली ने इस तारीख को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मानए जाने के लिए सर्वसहमति से वोट दिया था. कहा गया था कि – गांधी जी ने दुनिया को सिखाया है कि शांति का मार्ग अपनाकर भी आजादी पाई जा सकती है. उनका मानना था कि हिंसा का रास्ता चुनकर हम कभी अपने अधिकार नहीं पा सकते. अहिंसा की राह पर चलकर ही राष्ट्रपिता ने दक्षिण अफ्रीका में करीब 75 हजार भारतीयों को उनके अधिकार दिलाए थे.
1942 में भारत छोड़ों आंदोलन गांधी जी ने 1930 में 400 किमी दांडी नमक मार्च के साथ अंग्रेजों द्वारा लगाए गए नमक कर को चुनौती देने में भारतीयों का नेतृत्व किया और बाद में 1942 में अंग्रेजों को भारत छोड़ने का आह्वान किया, जिसके बाद 1942 से 47 के बीच देश की स्थिति में बड़े बदलाव आया और अंग्रेजी हुकूमत पूरी तरह से हिलने लगी. वहीं इस बीच देश के अंदर अशांति का माहौल फैल गया, जिसके बाद अंग्रेजों ने देश के दो टुकड़े करने का ऐलान कर दिया. 1947 में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के दौरान गांधीजी ने कई विस्थापित हिंदुओं, मुसलमानों और सिखों की मदद की, लेकिन इंसानियत के दुश्मन नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को बापू के सीने में तीन गोलियां दागकर उनकी हत्या कर दी.