Happy Valentine’s Day 2021 : आज का दिन प्रेमरूपी उस शय को समर्पित है, जिसके जिंदगी में आगमन होते ही जिंदगी जीने के मायने की बदल जाते हैं. अपने आसपास की हर चीज खूबसूरत नजर आने लगती है. जिंदगी से बेजार हुए लोग भी अचानक से जिंदगी को प्यार करने लग जाते हैं.
लेकिन प्यार की राहें हमेशा आसान और खूबसूरत नहीं होतीं. इसमें कई तरह की बाधाएं भी आती हैं. खास कर तब जबकि दो लोगों के बीच सांस्कृतिक, सामाजिक और वैचारिक भिन्नताएं हों. ऐसी स्थिति में प्यार करना और अंतत: उस प्यार को पा लेना किसी संघर्ष से कम नहीं. आज वैलेंटाइन डे के अवसर पर पेश है ऐसी ही कुछ रियल लाइफ प्रेम कहानियां, जिन्होंने आपसी प्यार और विश्वास के बूते इन तमाम संघर्षों के खिलाफ एक मिसाल कायम की है.
राहुल मेरे पार्टनर है पति नहीं : अंशु
मूल रूप से पटना की रहनेवाली अंशु की मुलाकात वर्ष 2013 में लखनऊ निवासी राहुल से केरल में हुई थी. AISF से जुड़े होने के कारण वे दोनों वहां एक वुमेन कॉन्फ्रेंस अंटेड करने गये थे. शुरू से ही छात्र राजनीति में सक्रिय रहने के कारण अंशु उस वक्त किसी परिचय की मोहताज नहीं थी. राहुल उनकी राजनीतिक सोच और स्पष्टवादिता से बेहद प्रभावित हुए. फिर करीब सात साल रिलेशनशिप में रहने के बाद पिछले साल उन्होंने शादी करने का निर्णय लिया. अंशु कहती हैं- ”सबसे पहले तो मैं यह बता दूं कि राहुल मेरे पार्टनर है पति नहीं. पति मतलब मालिक जैसे करोड़पति, लखपति, पत्नी पति.”
हम दोनों शुरू से ही अपनी बातों और विचारों को लेकर बहुत स्पष्ट रहे. दिक्कतें बहुत आयीं, लेकिन हमने उन दिक्कतों को दिक्कतों के रूप में ही लिया. हमें पता था कि ये सब होगा. हालांकि जो हुआ, वो उम्मीद से कहीं ज्यादा था, फिर भी हम तैयार थे. हमने उन दिक्कतों से भागने या पीछा छुड़ाने की कोशिश नहीं की, बल्कि लगातार उन्हें सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं.
वामपंथी विचारधारा से प्रभावित मेरे परिवारवाले राहुल को पहले से ही अच्छी तरह जानते-समझते थे. फिर भी छोटी जाति में शादी करने का दुःख मेरे उच्च जातीय परिवार के कुछ लोगों में गंभीर रूप से था. उनके अनुसार ‘लड़की को इतना पढ़ाया ही क्यों? क्यों नहीं बचपन में ही इसकी शादी करवा दी? इसीलिए लड़की को ज्यादा नहीं पढ़ाना चाहिए,’ वगैरह-वगैरह. यकीन मानिए मुझे भी तब जाकर यह एहसास हुआ कि लोग लड़कियों को किन-किन कारणों से नहीं पढ़ाना चाहते. राहुल के घरवाले भी यही सोचते थे कि दिल्ली भेज कर बहुत बड़ी गलती कर दी. वैसे ऐसे नातेदारों-रिश्तेदारों का मुंह बंद करने में हमारी शादी का कार्ड भी बहुत काम आया. हालांकि हमदोनों जाति-धर्म जैसी चीजों में यकीन नहीं रखते, फिर भी हमने आपसी सहमति से कार्ड में अपना सरनेम मेंशन किया. इसने बहुत सारे गॉसिप को अपने आप ही खत्म कर दिया. वे सोचते हैं कि मैं उनके बेटे को ‘फंसा कर’ शादी की है. मैं सोशली-पॉलिटिकली एक्टिव हूं. इस वजह से भी परिवार में मेरी स्वीकृति को लेकर संघर्ष है. उनके द्वारा मुझे स्वीकार करने का मतलब होगा, सब कुछ स्वीकार कर लेना, इसलिए कुछ लोग मुझे बर्दाश्त करते हैं, तो कुछ लोग ही प्यार कर पाते हैं.”
वहीं राहुल का कहना है कि ”अंशु अपनी बातों और विचारों को लेकर काफी स्पष्ट है. हम दोनों एक ही उद्देश्य के लिए काम कर रहे हैं, तो शुरुआत में मुझे लगा कि अगर समान विचारधारा के देा लोग साथ मिल कर रहेंगे और काम करेंगे, तो ज्यादा बेहतर कर सकेंगे. बाद में जब हमारी बातचीत शुरू हुई, तो फिर महसूस किया कि अंशु भी मेरी तरह ओपन एंडेड रिलेशनशिप में यकीन करती हैं. हमने अपने रिश्ते को लेकर पहले से कोई मानक तय नहीं किया है. न ही हम किसी तरह की सामाजिक बाध्यता को ढोने में यकीन करते हैं. इसी वजह से हमारे बीच कई बार मत भिन्नता होते हुए भी मन भिन्नता नहीं हो पाती.”
अस्पताल बना शादी का मंडप
प्रयागराज के प्रतापगढ़ जिले के कुंडा इलाके की रहनेवाली आरती मौर्य की शादी नजदीक के ही गांव के अवधेश के साथ तय हुई थी. गत 8 दिसंबर को बारात आनी थी. दोनों ही घरों में शहनाइयां बज रही थीं. परिवार के सदस्य और दूसरे मेहमान तैयार हो रहे थे, तभी दोपहर एक बजे के करीब एक छोटे बच्चे को बचाने के चक्कर में दूल्हन आरती का पैर फिसल गया और वो छत से नीचे गिर गयी. उसकी रीढ़ की हड्डी पूरी तरह टूट गई. कमर और पैर समेत शरीर के दूसरे हिस्सों में भी चोट आयी. पड़ोस के अस्पतालों ने इलाज से हाथ खड़े कर दिये, तो घर के लोग उसे प्रयागराज के एक निजी अस्पताल में ले आये. हादसे के बाद शादीवाले घर में कोहराम मच गया. सबको एक ही बात की चिंता सता रही थी कि अब लड़की का क्या होगा? उसकी तो जिंदगी बर्बाद हो गयी. ऐसे में अवधेश के निर्णय ने सबको चौंका दिया. उसने कहा कि इस हालत में भी वह न सिर्फ आरती को पत्नी के तौर पर अपनायेगा, बल्कि शादी भी उसी दिन तय वक्त पर ही होगी. भले ही इसके लिए उसे अस्पताल के बेड पर जाकर ऑक्सीजन सपोर्ट सिस्टम के सहारे इलाज करा रही आरती की मांग भरनी पड़े, लेकिन शादी नहीं टलेगी. वह अपनी पत्नी की सेवा करते हुए उसका सहारा और साथी बन कर उसके दर्द को बांटना चाहता है.
अवधेश की जिद पर डाक्टरों की टीम से परमिशन लेकर आरती को दो घंटे बाद एम्बुलेंस से वापस घर लाया गया. उसे स्ट्रेचर पर लिटा कर शादी की रस्में अदा की गयीं. ऑक्सीजन और ड्रिप लगी हुई आरती की मांग भरी गयी. आम दुल्हनों की तरह आरती की भी विदाई हुई. ये अलग बात है कि ससुराल जाने के बजाय वो वापस अस्पताल लायी गयी. अगले दिन होनेवाले ऑपरेशन के फार्म पर खुद अवधेश ने पति के तौर पर दस्तखत किये. इस तरह अवधेश और आरती की यह शादी हर किसी के लिए मिसाल बन गयी.
अक्षत मुझसे कहीं ज्यादा फेमिनिस्ट हैं : स्वाति
दरभंगा, बिहार की रहनेवाली स्वाति चंडीगढ़ स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा में जॉब कर रही थीं .वही वर्ष 2017 में उनकी मुलाकात चंडीगढ़ के मूल निवासी अक्षित से हुई. वहीं उनकी मुलाकात अक्षित से हुई. दोनों के बीच कनेक्टिंग फैक्टर रहा- दोनों का कला के प्रति रुझान और पितृसत्ता के प्रति विरोधी नजरिया. इसके अलावा एक और चीज थी, जो उन दोनों को एक-दूसरे के करीब लाने में सहायक रही. वह थी- सही को सही और गलत को गलत कहने की उनकी आदत.
स्वाति कहती हैं- ”मेरी पढ़ाई डीयू और जेएनयू से हुई है. मैं आज जो और जैसी भी हूं, उसमें इन दोनों ही संस्थानों का बहुत बड़ा योगदान है. वहां पढ़ने के दौरान मैंने सीखा कि समानता और स्वतंत्रता के सही मायने क्या है. अक्षत भी इन चीजों में यकीन रखते हैं. सच कहूं कि वो मुझसे कहीं ज्यादा फेमिनिस्ट हैं. इसी कारण हम एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हुए. फिलहाल अक्षित एक म्यूजिक टीचर के तौर पर काम कर रहे हैं और हर दिन खुद को नये तरीके से एक्सप्लोर करने में लगे हैं. दो साल पहले उन्होंने अपनी बैंक जॉब से वीआरएस ले लिया है और उनके इस साहसी निर्णय ने भी मुझे बेहद प्रभावित किया. जिस उम्र में लोग अपना कैरियर बनाने के लिए नौकरी, प्रमोशन, सैलरी, इंक्रीमेंट जैसी चीजों पर फोकस करते हैं, उस उम्र में अक्षित का यह निर्णय निश्चित ही अपने आपमें एक मिसाल है.”
अपनी शादी के बारे में बताते हुए स्वाति कहती हैं- ”हमने तय किया था कि हम शादी के बाद अपना सरनेम यूज नहीं करेंगे. न ही शादी में किसी तरह का धार्मिक अनुष्ठान या सामाजिक तामझाम करेंगे. इसी कारण हमने कोर्ट मैरिज की और शादी में आये मेहमानों को किसी तरह का गिफ्ट लाने से मना कर दिया था. उल्टे सरप्राइज रिटर्न गिफ्ट के तौर पर उनके पसंद की किताबें गिफ्ट कीं, जिसे सबने काफी एप्रीशियेट किया.”
वहीं अक्षित का कहना है- ”मेरी पैदाइश भले पंजाब में हुई है, लेकिन सात वर्ष की उम्र में ही मैं चेन्नई चला गया था, तो बाकी की पूरी परवरिश मेरी वहीं हुई है. इसी कारण मेरे विचारों पर भी वहां के सामाजिक-राजनीतिक परिवेश का प्रभाव रहा. जहां तक स्वाति की बात है, तो उसकी ईमानदारी मेरे दिल को छू गयी. जो वह सोचती है, वही करती भी है. हालांकि हम दोनों में कल्चरल डिफरेंस होने की वजह से हमारे रिश्ते को पारिवारिक स्वीकृति मिलने में थोड़ा वक्त लग गया, पर हमारी फैमिली भी इस बात को समझती है कि हमने कुछ गलत नहीं किया है. जो किया है, सही किया है. इसलिए हमें उम्मीद है कि जल्द ही सब ठीक हो जायेगा.
मदद के लिए बढ़ाये हाथ से मिल गया प्यार का साथ
कोलकाता के सिंडिकेट बैंक में कार्यरत बप्पादित्य नाग को वर्ष 2008 में कोलकाता के ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क ऑफिस में लीगल कंसल्टेंट के तौर पर नियुक्त किया गया था. दो महीने बाद जीजा घोष वहां सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर काम करने आयीं. बप्पादित्य कहते हैं- ”जिस दिन जीजा ने ज्वॉइन किया, उस रोज मैं कोलकाता से बाहर था. वापस आने पर पता चला कि एक नयी लड़की आयी है, जो कि बाकियों से थोड़ी अलग है. फिर एक दिन सड़क पार करते हुए मैंने जीजा की तरफ मदद के लिए अपना हाथ बढ़ाया, लेकिन उसने मना कर दिया.” सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित जीजा का इसी आत्मविश्वास और जीवन के प्रति उनके सकारात्मक नजरिये से बप्पादित्य का दिल जीत लिया. फिर ज्यों-ज्यों वे एक-दूसरे को जानते गये, उनका रिश्ता मजबूत होता गया. अंतत: साल 2013 में उन दोनों ने शादी कर ली. शुरुआती कुछ मुश्किलों के बाद उन दोनों के परिवारों ने उन्हें खुशी-खुशी अपना लिया.
शादी के बाद एक वक्त ऐसा भी आया, जब वे दोनों अपना परिवार बढ़ाने के बारे में सोचने लगे, पर मुश्किल यह थी कि जीजा मां नहीं बन सकती थीं और उनकी मानसिक हालत की वजह से उन्हें इसका कानूनी अधिकार नहीं मिल रहा था. जीजा और बप्पादित्य ने हार नहीं मानी. वर्ष 2016 में उन्होंने बच्चा गोद लेने के लिए कोर्ट में पीटिशन डाला. फिर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार उन्हें एडॉप्शन की अनुमति मिल गयी. बता दें कि जीजा घोष सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित भारत की पहली महिला हैं, जिन्होंने किसी बच्चे को गोद लिया है.
फिलहाल जीजा और बप्पा अपनी बेटी ‘हिया’ को पाकर बेहद खुश हैं और उसके भविष्य के लिए रोज नये सपने बुनते हैं. दूसरी ओर, हिया भी उन्हें बहुत प्यार करती हैं और वह अपनी मां की तरह ही आत्मनिर्भर बनना चाहती है.
Posted By : Rajneesh Anand