मानव शरीर भौतिक, मानसिक, भाविक, प्राणिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों का संतुलित स्वरूप है. कोणासन शरीर को पूरी तरह से लचीला एवं निरोग बनाने में सक्षम है. कोणासन से रीढ़ के दोष ठीक होते हैं. स्लिप डिस्क भी ठीक होती है. कंधे, भुजाएं और कलाइयां मजबूत होती हैं. जंघाओं की मांसपेशियां भी सबल बनती हैं.
– बैठ कर दोनों हाथ कमर के पीछे रख लें.
– दोनों पैर मिलाकर आगे की ओर तानें.
– श्वास भरते हुए अत्यंत धीरे-धीरे एड़ियों और हथेलियों के बल ऊपर उठाएं.
– शरीर बिल्कुल सीधा हो जाये, तो पंजे धरती के साथ लग जाएं और नाभि को ऊपर उठाने का प्रयास करें. श्वास सामान्य करते हुए इस स्थिति में यथासंभव रुकें.
पूरी क्रिया धीरे-धीरे करनी चाहिए, ताकि कहीं भी झटका नहीं लगे. यदि हाथों भुजाओं या कंधों में पीड़ा हो, तो इस आसन को न करें. इस आसन को सामर्थ्य से अधिक या हठ पूर्वक नहीं करना है. गर्भवती महिलाओं के लिए यह आसन वर्जित है. बुखार अथवा रोगी इस आसन को न करें. जिन्हें पेट में दर्द हो, लिवर, गॉल ब्लाडर में पीड़ा हो, इस आसन को न करें. अगर किसी तरह की घबराहट या पीड़ा हो, तो आसन त्याग दें और शवासन में लेट जाएं. बेहतर होगा कि किसी योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में यह योग करें.
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कोणासन से रीढ़ के दोष ठीक होते हैं. स्लिप डिस्क भी ठीक होती है. कंधे, भुजाएं और कलाइयां मजबूत होती हैं. जंघाओं की मांसपेशियां भी सबल बनती हैं. रीढ़ की हड्डी लचीली और मजबूत होती है. यह आसन यौवन एवं आयु बढ़ाता है. पूरे शरीर में रक्त संचार बढ़ता है. मोटापा कम होता है. कमर दर्द एवं लंबर स्पॉन्डिलाइटिस में आराम मिलता है. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस में फायदा होता है. शरीर में स्फूर्ति, शक्ति एवं तेज की वृद्धि होती है. हाथ एवं पैरों की मांसपेशियों को मजबूत करता है.
कोई भी योगासन बहुत ही धीमी गति से सुख की अनुभूति के साथ करें. सुबह के समय शौच के बाद योग करने का सबसे उपयुक्त उपाय है. सूर्योदय के समय ऑक्सीजन और प्राण शक्ति बल वायुमंडल में सबसे अधिक होती है. ऐसे यह समय स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है. योगासन हवादार कमरे में करें. जब हम शरीर को फैलाते हैं तो श्वास अंदर लें और जब शरीर को संकुचित करते हैं, श्वास बाहर छोड़ें. समझ में न आये तो स्वाभाविक सांस लें. योगासन जमीन के ऊपर मोटा कपड़ा, दरी, मोटी चादर बिछाकर ही करें, ताकि प्राण शक्ति जमीन में विसर्जित न हो.
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