Health Tips : कई लोग होते हैं जो दिन भर भ्रम के हालात में रहते हैं. उन्हें समझ नहीं आता कि वो आखिरकार निर्णय क्या लें ? कई लोग इसे नॉर्मल मानकर अनदेखा कर देते हैं लेकिन यह गौर करने वाली बात है कि ऐसी मानसिक स्थिति क्यों हैं. दरअसल दिनभर भ्रमित रहना एक तरह की बीमारी है जिसे एडीएचडी कहते हैं इसका पूरा नाम है वयस्क ध्यान अभाव सक्रियता विकार (Adult attention-deficit/hyperactivity disorder (ADHD). अडल्ट अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) के रूप में जानी जाने वाली यह समस्या बड़ी संख्या में व्यक्तियों को प्रभावित करती है. कई अध्ययनों का अनुमान है कि एडीएचडी भारत में लगभग 1.6 प्रतिशत से 12.2 प्रतिशत बच्चों में प्रचलित है जो चिंता की बात है.
एडीएचडी (ADHD) एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है. एडीएचडी, या अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर, एक प्रकार का मानसिक विकार है. यह निरंतर समस्याओं के माध्यम से प्रकट होता है जो उन लोगों को प्रभावित करता है जो इसका अनुभव करते हैं. यह विकार मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास को प्रभावित करता है. नतीजतन, मस्तिष्क के विभिन्न हिस्से एक-दूसरे के साथ प्रभावी ढंग से संवाद नहीं कर पाते हैं, जिससे मस्तिष्क की कार्यप्रणाली ख़राब हो जाती है . जिन लोगों को एडीएचडी की समस्या है उन्हें एकाग्रता और स्थिर बैठने में बहुत परेशानी होती है. हालाँकि यह समस्या आमतौर पर बच्चों में अधिक देखी जाती है, लेकिन कभी-कभी यह वयस्कों को भी प्रभावित करती है, जिसके परिणामस्वरूप वयस्क एडीएचडी होता है . इस विकार से प्रभावित बच्चों के लिए नई बातों को सीखना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
एडीएचडी के लक्षणों की बात करें तो प्रभावित व्यक्ति को ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है उसे बात बात में गुस्सा आता है. उसके स्वभाव में कई परिवर्तन दिखने लगते हैं जैसे- चिड़चिड़ापन, बेर्चनी, गर्म स्वभाव, समस्याओं में व्यस्त रहना, खराब समय प्रबंधन, योजना बनाने में कठिनाई, एक साथ कई काम करना, बार-बार मूड बदलना, घबराहट और स्थिर बैठने में समस्या शामिल है. एडीएचडी बचपन के सबसे आम न्यूरोडेवलपमेंटल विकारों में से एक है. इसका निदान आमतौर पर बचपन में होता है और अक्सर वयस्कता तक रहता है. एडीएचडी वाले बच्चों को ध्यान देने, आवेगपूर्ण व्यवहार को नियंत्रित करन या अत्यधिक सक्रिय होने में परेशानी हो सकती है. बच्चों को कभी न कभी ध्यान केंद्रित करने और व्यवहार करने में परेशानी होना सामान्य बात है. हालाँकि, एडीएचडी वाले बच्चे सिर्फ इन व्यवहारों से ही विकसित नहीं होते हैं. इसके लक्षण जारी रहते हैं. एडीएचडी वाले बच्चों में कई लक्षण दिखते हैं जिनकी पहचान कर सही वक्त पर उपचार कर सकते हैं जैसे दिन में सपने देखना, बहुत सी चीज़ें भूल जाना या खो जाना, छटपटाहट का एहसास, बहुत अधिक बातें करना, लापरवाही वाला रवैया रखना, करवट लेने में परेशानी , दूसरों के साथ घुलने-मिलने में भी उन्हें कठिनाई होती है.
एडीएचडी के कई कारण हैं, जिनमें आनुवंशिक कारक (genetic factors) , खराब डाइट (improper diets), स्मोकिंग( smoking) और अत्यधिक शराब का सेवन (excessive alcohol consumption)शामिल हैं. किसी व्यक्ति में एडीएचडी होने की संभावना को प्रबंधित करने और कम करने के बेहतर तरीके खोजने के प्रयास में वैज्ञानिक कारणों और जोखिम कारकों का अध्ययन कर रहे हैं एडीएचडी के कारण और जोखिम कारक अज्ञात हैं, लेकिन वर्तमान शोध से पता चलता है कि आनुवंशिकी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. आनुवंशिकी के अलावा, वैज्ञानिक अन्य संभावित कारणों और जोखिम कारकों का अध्ययन कर रहे हैं जिनमें दिमागी चोट शामिल है. गर्भावस्था के दौरान या कम उम्र में पर्यावरणीय जोखिमों के संपर्क में आना, गर्भावस्था के दौरान शराब और तम्बाकू का सेवन या फिर समयपूर्व प्रसव और जन्म के समय कम वजन शामिल है.
इस बीमारी के उपचार की बात करें तो कई प्रभावी रणनीतियाँ सकारात्मक परिणाम ला सकती हैं इनमें टॉकिंग थेरेपी पर ध्यान केंद्रित करना, नियमित शारीरिक गतिविधि में शामिल होना, दैनिक दिनचर्या बनाना, बच्चे की प्राथमिकताओं को समझना और रचनात्मक गतिविधियों को शामिल करना शामिल है . इसके अलावा काउंसलिंग भी फायदेमंद साबित हो सकती है. यह तय करना कि किसी बच्चे में एडीएचडी है या नहीं, कई चरणों वाली एक प्रक्रिया है. कई अन्य समस्याएं, जैसे चिंता, अवसाद, नींद की समस्याएं और कुछ प्रकार की सीखने की अक्षमताएं, समान लक्षण हो सकती है. प्रक्रिया के एक चरण में एडीएचडी जैसे लक्षणों के साथ अन्य समस्याओं का पता लगाने के लिए श्रवण और दृष्टि परीक्षण सहित एक चिकित्सा परीक्षा शामिल है. ज्यादातर मामलों में, एडीएचडी का इलाज व्यवहार थेरेपी और दवा के संयोजन से सबसे अच्छा किया जाता है सही उपचार योजनाओं में करीबी निगरानी, फॉलो-अप और जरूरत पड़ने पर बदलाव करना शामिल होगा.
हमेशा भ्रम की स्थिति फील करना, भागमभाग वाली लाइफस्टाइल का साइडइफेक्ट हो सकता है यह सोचकर इसे इग्नोर ना करें. अधिक परेशानी हो तो डॉक्टर से जरूर मिलें.
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