हिंदी कहानी : हस्तक्षेप
पंचायत का सारा काम उनकी मर्जी से होता था. उनके बारे में कहावत थी कि चौरा पंचायत से अगर वे चाहें, तो किसी कुत्ते को भी चुनाव जीतवा दें. वैसे कायदे से सीट महिला के लिए आरक्षित होने के कारण उनकी पत्नी जगीरा देवी मुखिया थीं.
मंजीर सिंह मुखियापति मुखिया थे. इलाके के दबंग और नामी जमींदार जौहर सिंह के पुत्र मंजीर सिंह के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. दसियों ट्रैक्टर, कई ईंट भट्टे और पचासों बीघे काश्तकारी की जमीन. नौकर-चाकर. गाय-भैंस. करीब एक बीघे में फैला उनका दरवाजा था. लोगों की भीड़ लगी रहती थी. दो स्कार्पियो अलग से उनकी शान में इजाफा कर रहे थे. एक अभी मुखिया बनने को बाद खरीदी गयी थी.
पंचायत का सारा काम उनकी मर्जी से होता था. उनके बारे में कहावत थी कि चौरा पंचायत से अगर वे चाहें, तो किसी कुत्ते को भी चुनाव जीतवा दें. वैसे कायदे से सीट महिला के लिए आरक्षित होने के कारण उनकी पत्नी जगीरा देवी मुखिया थीं. मैट्रिक पास और प्रकृति से लोक -वृत्ति की चित्रकार जगीरा देवी की छवि चुनाव-प्रचार के बाद किसी ने नहीं देखी थी. वे घर के काम-काज के बाद स्त्रियों के एक समूह के साथ चित्रकारी में व्यस्त रहती थीं.
एक बार पटना से आए किसी पत्रकार ने मंजीर सिंह से कहा था,” आप बुरा नहीं मानें मुखिया जी तो, भाभी के चित्रों की प्रदर्शनी राजधानी की आर्ट गैलरी में रखवायी जा सकती है… प्रोफेशनली उनमें बहुत संभावना है… उनके चित्रों में लोक-तत्वों का अद्भुत इन्द्रिय-बोध है… आज दुनिया में इसी कला की माँग है…यह सांस्कृतिक वैविध्य है, जो बिल्कुल पहली बार सामने आकर विशेषज्ञों के लिए आश्चर्य और विस्मय का आप्त-लोक रचते हैं…”
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मंजीर सिंह हँस कर रह गए थे,” मैं किसी एक्सपोजर के खिलाफ नहीं हूँ , पर इन सब के लिए वे तैयार होंगी… मुझे संदेह है…हमारा घर-परिवार लोक-लाज की परम्पराओं से बँधा है… कहिए थोड़ी बंदिश और झिझक है हमारे यहाँ….”
“नहीं, मुखिया जी इस झिझक और संकोच के कारण बहुत से टैलेंट गाँव-घर की धूल-माटी के भीतर गुम हो जाते हैं. अब समय बदल रहा है. हमारी सोच में बदलाव आ रहा है… भाभी के चित्रों को लेकर मैं पटना जा रहा हूँ, कोई न कोई पुरस्कार उन्हें अवश्य मिलेगा…” पत्रकार ने उछाह से भर कर कहा था- “आप भरोसा कीजिए… “
” ले जाइए…” मंजीर सिंह ने अधूरे मन से कहा था, पर उस साल राज्य -स्तर पर जगीरा देवी को पत्रकार रणविजय सिंह की कोशिशों से लोक-वृत्ति के कलाकारों की कोटि में माननीय मुख्यमंत्री जी के हाथों पचास हजार रुपए का पुरस्कार मिला था…यह एक लिंक था,कई राज्य स्तरीय संस्थाओं में रणविजय सिंह जी के सौजन्य पंजीकरण के उपरांत एड मिलने लगा था… जिसने समूह की कलाकार औरतों को बहुत उत्साहित किया …चुनाव में जगीरा देवी की समूह की औरतों ने इसका खूब प्रचार किया था क्योंकि गाँव आकर पैसे उन्होंने समूह की स्त्रियों के लिए बने कोष में दान दे दिया था… जीत में इस अप्रत्याशित घटना का भी हाथ रहा होगा, पर मंजीर सिंह ने ऐसा कोई कार्ड नहीं था ,जिसे नहीं खेला… मुस्लिम वोट तक खींच लिया….
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” क्या सोच रहे हैं मुखिया जी?” गाँव के बुजुर्ग जाहिद इकबाल ने कहा, ” मैं बहुत उम्मीद लेकर आया हूँ, पश्चिमी वार्ड तो ऐसे भी मुस्लिमों का टोल है. मेरी बेटी रुखसाना तलाकशुदा है, अगर आँगन-बाड़ी में उसका सिलेक्शन जाता है, तो बहुत एहसानमंद रहूँगा…”
” आप मेरे खैर ख्वाह हैं चचा!” मंजीर सिंह ने कुछ सोचते हुए कहा,” जाइए वचन दिया…हो जाएगा…”
दरबार में बैठे उनके खास कारकुन माणिक लाल ने कहा,” सर यह नहीं हो पाएगा…मैडम ने कला- समूह की एक गरीब औरत जुबैदा बी की बेटी जकिया के लिए कह रक्खा है…जकिया की एक आँख फूटी है…वह दिव्यांग कोटि में है… चचा का काम अगले दफे हो जाएगा… नहीं होगा, तो ट्रेनिंग सेंटर में एक पोस्ट है ….रात्रि पाठशाला का भी स्कीम आने वाला है.. साक्षरता अभियान के लिए….”
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“अब बात जबान से निकल गयी, तो वापस कैसे लूँ?” मंजीर सिंह ने नाराज होकर कहा,” ऐसा था तो मैडम को पहले बताना चाहिए था. तुम लोग मुर्गा जब ज़ब़ह हो जाता है, तब बोलते हो…”
” नहीं सर…” माणिक लाल ने कहा,” बस नाम उलट देना है… क्या चचा?” उसने दाँव मारा,” इधर भी काम हो जाए, उधर भी…”
” मुखिया तुम नहीं, मंजीर बाबू हैं माणिक लाल…” जाहिद इकबाल चचा ने बिगड़ कर कहा, “तुम लोगों का काम क्या रह गया है… उल्टा-सीधा करना… टेढ़ा रास्ता मत पकड़ाओ…”
” कोई काम नियम से ही न होगा चचा?” माणिक लाल ने कहा,” अब मैडम की एक पैरवी है, तो क्या आप घर में झगड़ा लगाएँगे? आप शेख हैं, वह अंसारी है…. सीट का रिजर्वेशन तो चलेगा… ऊपर से दिव्यांग…”
“अब मियाँ में भी फूट डालो…” इकबाल चाचा उठ गए,” एकल सीट पर रिजर्वेशन नहीं चलता, कर्मचारी से मैंने पूछ रक्खा है… मुखिया जी को भरमाओ मत…मैं भी कभी सरपंच रहा हूँ…”
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” अरे आप की बेटी का ही होगा….” मंजीर सिंह ने कहा,” जाइए निश्चिंत रहिए….” मुखिया जी भी उठ कर चले गए.भीतर से बुलावा आ गया था.
माणिक लाल इंदिरा आवास और पशु शेड के लाभुकों की सूची तैयार करने लगा. असल में मंजीर सिंह के पास इतना काम होता था कि मुखियागिरी के लिए एक आदमी को रख लिया था. उनका ध्यान तो एम.एल.ए.की कुर्सी पर था.उन्हें याद ही नहीं रहा कि आँगन बाड़ी के पोस्ट के लिए तो उनकी खास मित्र अनुराधा देवी ने भी पैरवी की थी.अनुराधा मास्टरनी में नेता वाला मवाद था. उसने अपने पति को वार्ड का चुनाव जितवाया था. कुछ लोग यह भी कहते थे कि मंजीर सिंह अनुराधा से प्रेम करते हैं… मांस-मछली और दारु का पार्टी वहीं चलती है…. नगर में हल्ला है, तो घर कैसे अनजान होगा?…लकिन जब जगीरा देवी को चित्र बनाने के अलावे किसी बात से कोई मतलब नहीं, तो फिर किसी दूसरे की दाल क्यों गले? क्या बात उन तक नहीं जाती होगी?समूह की औरतें क्या कद्दू-बैंगन हैं? जरूर कनफुसकी गयी होगी…राजू की माँ लालपरी देवी कह रही थी,” बड़े घर की बड़ी बात… उनसे बोली, तो कहा … चाची मरद और घोड़ा के चरित्तर को नहीं गिनो…. उल्टे किचान होगा…हीरा को जब खुद ज्ञान नहीं कि किसका नग बने , तो उँगली का क्या दोष? मुखिया जी जिस राह चलें… चलें…. कहने के लिए कौन औरत नहीं कहती होगी? सब कुछ राजनीति नहीं है…. राजनीति अगर पंक में गिराए, तो फूल बन कर निकलो , तब जानें…. मैं तो बस चित्रकारी जानती हूँ…. इसी में मेरा धर्म देखो और कर्म देखो….तुम लोगों काम चलता रहे बस…मंजीर बाबू से मैं सलट लूँगी.”
मन के आकाश में कितनी चीजें उड़ती हैं, सबका अपना अक्स! सब में सौ सपने और सौ बातें …. कितना कहे कोई… और किससे? है न कूची और कैनवास…. सब उतर आते हैं… आत्मा की आभा यही तो है…
” यह चित्र बड़ा अच्छा है….” खाना खाने के बाद मंजीर सिंह ने कहा.
” क्या है इस चित्र में…?” जगीरा देवी ने पूछा,” क्या अच्छा लगा आपको..?”
” तुम बताओ…” उन्होंने अकबका कर कहा,” क्या खास है?मुझे बस अच्छा लगा… तो कह दिया…”
” इस चित्र में औरत की पीड़ा को दर्शाया गया है, वह अभी भी दलित है, वह आजाद नहीं है…उस पर हुकूम कोई और कर रहा है…” वह तल्ख होकर बोली,” औरत छली जा रही है सिस्टम में…. यही भाव है इसका…”
” सो कैसे?” उन्होंने कोंचा.
” ध्यान से देखिए… औरत का क्या है अपने वश में? यह कई पंजों से घिरी है… मतलब किसी स्टेज में आजाद नहीं है… पर कसमसा रही है…”
” मतलब?” उन्होंने मुस्कूरा कर कहा.
” मतलब आप समझिए…”जगीरा देवी ने कहा,” वह कब तक मोहरा बनेगी?”
” इसमें मोहरा बनने का क्या बात हुई?”
” है न उसे आगे कर आज भी पुरुष अपना कार्ड खेल रहे…”
” कैसे?”
” मुखिया मैं हूँ कि आप?” उसने आँखों में आँखें डाल कर पूछा.
” तुम …” सीधा जवाब था मंजीर सिंह का.
” मुखिया की पदवी पर कौन है?” जगीरा ने असली सवाल पर उंगली रखी.यह एक दहकता हुआ सवाल था, जो सदियों की जड़ता में अपनी शक्ति खो चुका था.
” तुम…” मुखिया जी हँसे. यह अच्छा स्वांग था, पर उन्हें कहना आवश्यक लगा,ताकि वह शांत हो जाए.
” हुकूम किसका चलता है?” वह तूल पर आकर बोली,” सच बोलिए…”
” मेरा…” अब कोई रास्ता नहीं था. सच जबान पर आ गया.
” फिर मैं किस काम की ठहरी?” वह व्यंग्य से हँसी, पूरे देश में औरतों के साथ यही हो रहा है, वे पुरुषों के हाथों की कठपुतलियाँ हैं, जिधर नचाओ…नाच रही हैै वह….”
” मत नाचो…” मंजीर सिंह ने बिना सोचे कहा.
“सदियों का अँधेरा है…” जगीरा देवी ने कहा,” वह नाचने पर मजबूर है. उसे कमजोर और दया का पात्र बना कर रक्खा गया है…धर्म ,कानून और संवैधानिक अधिकार के आडम्बर हैं बस…भरम रचते हैं काँच की तस्वीरों से….दरके हुए काँच के अंदर एक औरत…. नहीं कई औरतें अपनी नियति को चुनती हुईं …मैं पूछती हूँ इसके लिए जिम्मेदार कौन है?”
“आज अचानक यह सब क्यों बोल रही हो?” मंजीर सिंह ने उठते हुए कहा,” कुछ कहना है, तो सीधे कहो, यह मत भूलो कि मेरे वोट से जीती हो.मैं किसी को भी जीता सकता हूँ…. गाय, बकरी, भेड़…कुत्ते …बिल्ली …को भी…. चौरा पंचायत में मेरा सिक्का चलता है…”
“यह अहंकार है आपका…लोकतंत्र का अपमान भी… बहुत मामूली अंतर से जीती हूँ मैं….” जगीरा देवी ने नहला पर दहला मारा,” अगर समूह की औरतों ने वोट नहीं दिया होता , तो इन्द्रकला देवी भी जीत सकती थीं…”
” तुम काम कहो… पहेली बुझाना छोड़ो ” इस बार ऊब कर कहा मंजीर सिंह ने,” तिरिया चरित का चक्कर जानता हूँ…”
“आँगन बाड़ी में जुबैदा बी की बेटी जकिया को बहाल करूँगी मैं…” वह बोली,” इसमें कोई फेर-बदल नहीं होगा…मैं अपने चयन पर अडिग हूँ..”
” नहीं मैं वचन दे चुका हूँ…” वे हिचकिचाए.
” किसको?” वह चौंकी.
” अनुराधा जी की बेटी पम्मी को…?” उन्हें कुछ याद आया,” इस बार तो उसी का होगा..
” अभी तो कोई इकबाल जी की बेटी रुखसाना का नाम बता रहा था….” जगीरा देवी ने आश्चर्य से कहा,” कितने लोगों को और वचन देंगे आप…? हद कर रहे हैं… इस फैसले में क्या खास बात है?”
“राजनीति के अपने उसूल हैं.” ” मंजीर सिंह ने बाहर जाते हुए कहा,” जैसे मैं चित्र-कला नहीं समझता, तुम राजनीति नहीं समझती….”
जगीरा देवी ठगी सी रह गयी.
मंजीर सिंह मुखिया पति का कद किसी मुखिया से बड़ा था. प्रखंड और अनुमंडल की हर मीटिंग में वे बतौर मुखिया शामिल होते थे. चाहे प्रमुख का कार्यालय हो या और कोई एजेंडा…बिना उनकी सम्मति के कुछ नहीं होता था. ….पर हर आखिरी चीज आपकी राय से हो जरूरी नहीं.जिला के अमृत महोत्सव के शुभ-अवसर पर स्त्री सशक्तिकरण का एक आयोजन था मुख्यालय में. उस आयोजन की देखरेख जिलाधिकारी कर रहे थे. मंत्री जी के हाथों महिला जन प्रतिनिधियों का सम्मान होना था.जिलाधिकारी ने एस.डी.एम.और प्रखंड विकास पदाधिकारी को स्पष्ट हिदायत दी थी कि पुरस्कार मुखियापति नहीं, मुखिया लेंगी. इसलिए मंजीर सिंह ने जगीरा देवी को उक्त सम्मान लेने के लिए मनाया. खुद स्कार्पियो पर लेकर गए….
यह पहला अवसर था जब तमाम पंचायतों की महिला प्रतिनिधियों को आत्मा-सम्मान का गौरव मिला. एंकर ने जगीरा देवी के परिचय में उन्हें लोक-कला की प्रतिमूर्त्ति और समूह को जीविका-केन्द्र बनाने के लिए और ग्राम्य महिलाओं की चित्रकला को व्यावसायिक आयाम देने के लिए विशेष साधुवाद दिया.मंजीर सिंह को भी अपनी पत्नी पर गर्व हुआ. लेकिन इस आयोजन में एक दुर्घटना हो गयी …. एक दूसरे दबंग मुखियापति लालसर यादव को सिक्यूरिटी वालों ने धक्का देकर मंच पर से उतार दिया…. इस पर मिश्रित प्रतिक्रियाओं ने प्रोग्राम की किरकिरी कर दी. नाराज मुखियापति समर्थकों ने डी.एम. और मंत्री मुर्दाबाद के नारे लगाए और सभा का बहिष्कार किया.
मंत्री जी ने बाद में प्रेस वार्ता में कहा,” मुखियापति को मंच पर से उतारने के पीछे कोई दलगत राजनीति नहीं थी… दरअसल दूसरे राज्य और देश-दुनिया में गलत मैसेज जाता है… आजकल सोशल मीडिया का जमाना है… तुरंत वीडियो वायरल हो जाता है… जब जन प्रतिनिधि महिला है, तो कोई पुरुष कैसे पुरस्कार ले सकता है?”
यह बात कहीं अधिक मौजूँ थी.
मंजीर सिंह का दिमाग इस ट्रेजेडी को पहले सूँघ गया था. लालसर यादव की तरह वह अपनी बेइज्जती से बच गया. राजनीति में वह धोबियापाट जानता था… बिना मिट्टी लगाए अगले को चित्त करो….साँप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे. पिछले कुछ समय से जगीरा दोवी की बातों में एक तंज होता था. कभी-कभी अनुराधा और उनके रिश्ते को लेकर भी बतकही होती थी, सो वे थोड़ा संभल कर इज्जत के साथ पेश आने मे भलाई समझते थे और कहते भी थे,” राजनीतिक प्रोपगंडे को तुम सच मानती हो…? हमारे बच्चों पर इसका असर पड़ेगा…यहाँ चरित्र-हनन कोई नयी बात नहीं है… अनुराधा मास्टरनी की अपने ओ.बी.सी. समाज में पकड़ है… उससे अलगाव का मतलब है एक धड़ा के वोट का नुकसान…”
” राजनीति में अपनी आत्मा से दगा कर आपको जितना झूठ बोलना है..बोलते रहिए….मेरा इस खेल में विश्वास ही नहीं है…” वह कहतीं,” आप अपनी राह चलिए… मुझे अपनी राह चलने दीजिए….हाँ दोनों बेटे जय और अजय अगले महीने से बोर्डिंग स्कूल में रहेंगे…”
” हाँ, हाँ…” मंजीर सिंह ने कहा,” मैं भी यह सोच रहा हूँ…”
” सोचिए नही,अमल कीजिए…”
” स्कूल?” उन्होंने पूछना जरूरी समझा.
” विद्या बिहार.” जगीरा ने कहा,” मेरी बात हो गयी है प्रिंसिपल से…”
” ठीक है.” वे आश्वस्त हुए.
दिन पच्चीस-तीस गिनते स्कूल भेजने का समय आ गया. बेटे को स्कूल से छोड़कर आते हुए वह फफक पड़ीं.मंजीर सिह ने धैर्य बँधाया ,” स्कूल नजदीक तो है…हम हर सप्ताह मिल लेंगे.” पति-पत्नी में कितने भी वैचारिक मतभेद और अलगाव हों … कुछ क्षण ऐसे होते हैं, जब वे एकदम निष्कपट होते हैं…. वत्सलता की अजस्र धारा मन के वीराने और बंजड़ भूखंड को पाट देती है… बच्चे से अलग होकर जीना एक कठिन अनुभव है, पर भविष्य के अंकुर को सहेजना भी तो माता-पिता का ही दायित्व है…. जगीरा रास्ते भर मंजीर सिंह के कंधे पर सिर रखे रही . उन्होंने भी मना नहीं किया.
पहाड़ का केवल सिर ऊँचा नहीं होता है, उसकी जड़ भी मजबूत होती है. मंजीर सिंह के रुतबे में इजाफा हो रहा था. कमाई के साथ जन-सेवा चल रही थी. जगीरा देवी ने बहुत तनाव और अवसाद के बीच अनुराधा जी की बेटी पम्मी की फाइल पर दस्तखत किया था. जुबैदा और जाहिद इकबाल की बेटियों को रात्रि पाठशाला में रखवा दिया गया था. वे लोग भी वक्ती नाराजगी के बाद संतुष्ट हो गए थे… पर उनके मन में मलाल रह गया था. इस विषय पर घर के अंदर दांपत्य जीवन के विवाद से परिवार की इज्जत पर बट्टा लग सकता था, सो वह चुप रह गयीं.
पम्मी की आँगन बाड़ी में नियुक्ति के बाद अनुराधा की जिंदगी में मंजीर सिंह का दखल बढ़ गया था.वे उधर ही डूबे रहते थे. मुखिया न मंजीर सिंह थे और न जगीरा देवी. सब माणिक लाल को कोर्निश कर रहे थे….समूह की कुछ औरतों ने बताया कि माणिकलाल पशु शेड और इंदिरा आवास के पंजीकरण और अग्रसारण के नाम पर मोटी रकम लाभुकों से वसूल रहे हैं… इससे जनता में नाराजगी है….
जागीरा देवी को धक्का लगा. उन्होंने फौरन माणिकलाल को अंदर बुलाया और कार्यालय की संचिकाएँ और चाभी माँग ली और कहा,” आज से तुम मुक्त हो…अब समूह की लड़की अर्पिता इस काम को देखगी…”
” मैडम …”:माणिक लाल की घिग्घी बँध गयी’ मुखिया जी को आने दीजिए… फिर जो निर्णय होगा, सही होगा.”
” तुमको जो कहा, वह करो.” जगीरा देवी का स्वर कठोर था,” मुखिया मैं हूँ…कोई और नहीं.आज से तुम्हारी छुट्टी…”
उसने सिर झुका लिया. उसका दिल धधक रहा था,पैसे वह अपनी जेब में नहीं रखता था. पाई-कौड़ी का हिसाब मुखिया जी को देता था, पर आज उस वफादारी के लिए क्या इनाम मिला? दूध की मक्खी की तरह उठा कर फेंक दिया गया….मन दुखी हो रहा था… हो रहा था सीधे रूपनारायण झा की हवेली यानि इन्द्रकला जी के दल में जाकर शामिल हो जाएँ…पर मंजीर बाबू राजधानी में थे , उनके आने तक रुकना चाहिए…. विचलन में कई विचार आ रहे थे. किसी एक विचार पर रुकना कठिन था, पर वह रुक गया. यह सोच कर कि मुखिया जी के आने पर कहीं पासा पलट जाए…. झोला -झपटा समेट कर तत्काल वह जाने लगा, तो सभी लाभुक उठ गए.लेकिन लोक कवि तुकाराम गोप ने कहा,” मेरे पशु शेड का क्या हुआ मुंशी जी?”
” मेरा टिकट कट गया…” उसने कुढ़ कर कहा.
” मतलब?”
“अब मुखिया प्रतिनिधि अर्पिता जी होंगी, कल उनसे मिल लीजिएगा…” वह चलने को उद्यत हुआ.
” मैडम ने कुछ कहा क्या?”
” जो समझिए…”
“अरे मुखिया जी के रत्न हैं आप….वह अर्पिता किस खेत की मूली है… तिरिया-तरेगन से यह सब काम होगा….फोन पर सब बता दीजिए….आएँगे, तो मैडम का क्लाॅस ले लेंगे…”तुकाराम जी ने मक्खन लगाते हुए कहा.
” देखिए क्या होता है…. मैं भी तो उन्हीं का पानी जोग रहा हूँ…” माणिक लाल ने भारी मन से कहा,” अब थोड़ा इन्तजार कर लीजिए…आपका नाम तो है लिस्ट में…” वह मन मार कर घर की ओर चला गया. मुंशी के जाने के बाद तुकाराम जी ने मन ही मन सोचा कुकुरजात के साथ हुआ ,तो सही…पर अपना काम हो जाता, तब होता, तो ज्यादा मजा आता. मुखिया जी से बेसी ताव इसी फंटूस में आ गया है, भीतर से बहुत सख्खर चौताल है….मगर मुखिया जी को तो इसी कनखजूरा पर विश्वास है….चलिए , आज नहीं , तो कल आएँगे ही…वे भी अपनी राह चल पड़े…बात दस मिनट में हवा में फैल गयी कि माणिकलाल को मैडम ने भगा दिया….तुकाराम गोप ने घर आकर जानवरों को देखा और वह उदास हो गए , एक पशु शेड चाहिए इन्हें. जाने कब साध पूरी हो…हाथ-पैर धोकर खैनी चुनियाते हुए मचान पर दम मारने बैठ गए. मन में पसरे अवसाद और क्षोभ के बीच तुकबंदी आकार लेने लगी-
मालिक है मुखिया मंजीर
माणिकलाल बना मोहरिर
पैसा लेकर मुहर लगावे
जनता को वह भरमावे
खाकर गिरा आज दुलत्ती
और गिनो तुम हरिहर पत्ती…
फिर मन ही मन विहँस पड़े. पिछले तीन महीने से वह पशु शेड को लिए चक्कर काट रहे थे. आज काम होता, तो मैडम जी का तिरिया राज का फरमान आ गया… अब मंजीर बाबू जो करें…अर्पिता को चुनें कि पुराने घाघ माणिकलाल को… उन्हें मन ही मन अकूत दुख हुआ…उलझन पर उलझन … चक्कर पर चक्कर…जनता का काम कोई सीधी उंगली से करता ही नहीं… मैडम जी का कितना चलेगा? नाम की मुखिया हैं, असली ओहदा और पाॅवर तो मंजीर बाबू के पास है… बस एक झमेला हो गया… तिरिया राज का नाटक…पहले अब वे घर में सुलह करेंगे ….फिर जनता का काम होगा….अँधेरा गझिन हो रहा था…पोल पिछले साल गड़ा था, पर बिजली नदारद थी.वे साँझ-बाती के खयाल से लैम्प लाने उठकर अंदर चले गए.
मुखिया जी एम.एल.ए.का टिकट बुक कर वापस आ गए.सीट महिला कोटे में आरक्षित थी. मतलब जगीरा देवी एम.एल.ए.बनेंगी, पर वास्तविक कमाणड उनके हाथ में रहेगा. काफी पैसा चंदा फंड में देना पड़ा था. राजनीति में वे मछली के तेल से मछली तलना जानते थे. माणिक लाल उनका ट्रम्प-कार्ड था. मगर चौरा आकर वे हकबका गए.घटना की जैसी जानकारी मिली थी, उससे जगीरा पर उन्हें बहुत आक्रोश हो रहा था.मन को कुछ समय तक संयत रख कर उन्होंने शाम को पूछा,” माणिक लाल को क्यों हटा दिया?”
“वह घूस लेता है….” वह सीधे स्वर में बोलीं,” यह लोक-शाही का अपमान है…. मैं इसलिए मुखिया नहीं बनी हूँ… लोकशाही का मतलब है जन सेवा…जनता की सेवा…”
“मुखिया मैं हूँ कि तुम?” मंजीर सिंह का धैर्य जवाब दे गया.
“आप मुखिया नहीं, मुखियापति हैं…” जागीरा देवी ने स्पष्ट कहा,” मुखिया मैं हूँ, इसलिए उस भ्रष्ट माणिक लाल को अब हवेली में फटकने नहीं दूँगी….”
“राजनीति समझती हो?” मंजीर सिंह ने आँखों में किंचित रोष भर कर कहा,” जो कान सुना, बिना सोचे-समझे कर दिया…”
” तब क्या केवल माणिक लाल समझता है?” उसने पलटवार किया.
मंजीर सिंह तिलमिला गए,” उसकी बात छोड़ो, मैं सौ माणिक लाल पैदा कर सकता हूँ… पर… “
” पर क्या?”वह अटकती हुआ बोलीं.
” यह खेल पैसे से चलता है…. उसूलों से नहीं…” मंजीर सिंह ने सीधा वार किया,” तुम समझ नहीं रही….हर दाँव यहाँ सोच समझ कर चलना पड़ता है…”
“इस गलत धंध को तोड़ना होगा?” जगीरा देवी ने छूट कर कहा,” यहाँ भी चारित्रिक निष्ठा कायम करनी होगी…लोकशाही की पवित्रता….गाँधी जी की आत्मा का राज्य है पंचायती राज… आप गलत सोच रहे हैं…. “
” हार जाओगी…” मंजीर सिंह ने बिफर कर कहा,” भले चित्र बनाती हो, बनाओ… यह तुम्हारे बस का काम नहीं…अपने समूह तक रहो…मर्दों वाले काम में दखल मत दो.”
“कौन काम औरत नहीं कर रही आज? आप लोग औरतों को मौका दीजिए… उसके प्रबंधन पर भरोसा कीजिए… कामयाबी मिलेगी….?” जगीरा देवी की आवाज में एक नयी शक्ति का उन्मेष था,” मैं फिर कहती हूँ आप मुखिया नहीं, मुखियापति हैं, वही रहिए… मुझे जनता की सेवा करने का एक मौका दीजिए… अब मेरे नाम से यह फर्जीवाड़ा नहीं चलेगा…समूह की एक-एक सदस्या की अब यही माँग है… समझिए इस समूह के चित्रों की आकृतियों और रंगों की भाषा और लिपि के मर्म को…कुछ दिनों के लिए आप चित्र बनाइए…और मुझे राजनीति करने दीजिए…”
एम.एल.ए. का टिकट लगभग तय था . नया विवाद जाने क्या मोड़ ले. मंजीर सिंह सहम से गए . उन्होंने विस्मय से जगीरा को देखा, अब इस औरत को रोकना मुमकिन नहीं…उनके सामने एक नयी स्त्री खड़ी थी, लगा अब समय आ गया है कि जब चाहे-अनचाहे नारी – शक्ति का आदर किया जाए …जगीरा ठीक बोल रही है… उन्होंने प्रेम और सम्मान से उसे अपने अंक में भर लिया! कोई दूसरी सूरत इस संकल्प-धर्मा स्त्री के सामने टिक भी नहीं सकती थी!क्या यह भी उनका कोई नया दाँव था या सचमुच जगीरा के आत्मविश्वास के सामने उन्होंने घुटने टेक दिये थे!
संजय कुमार सिंह : जन्म- 21 मई 1968 ई., नयानगर मधेपुरा बिहार, संप्रति : प्रिंसिपल, पूर्णिया महिला कॉलेज, पूर्णिया-854301, मो. – 9431867283/6207582597