श्रीनगर (उत्तराखंड) : पुराने लोगों को होली (Holi 2022 ) पर राजशाही के दौर में होने वाली होली याद आ जाती है। गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर में होली उत्सव चार से पांच दिन तक चलता था. राजा की ओर से राजदरबार में होली खेलने के लिए अपने सामंत (जागीरदार) आमंत्रित किए जाते थे. इस दौरान रंग लगाने के साथ ही नाच-गाने का आयोजन होता था. खास बात यह भी है कि होली त्योहार से लगान (कर) वसूलने निकलते थे. साथ ही राजा सामंतों के साथ युद्ध की रणनीति तय करते थे.
कभी अलकनंदा नदी के तट पर बसा श्रीनगर गढ़वाल के राजाओं की राजधानी हुआ करती थी. होली का त्योहार यहां बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता रहा है. यहां होली एक या दो दिन नहीं बल्कि चार से पांच दिन तक मनाई जाती थी. राजा और सामंतों के लिए होली मनोरंजन के साथ ही आगामी रणनीति तय करने का अवसर भी थी. गढ़वाल के इतिहास पर शोध कर रहे युवा इतिहासकार कमल रावत बताते हैं कि राजा की ओर से होली खेलने के लिए अपने जागीरदारों को बुलावा भेजा जाता था. राजदरबार से बुलावा आने पर खाली हाथ जाने का सवाल नहीं होता था. जागीरदार राजा को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपहार लाते थे.
हल्दी सहित पेड़-पौधों से अलग-अलग रंग बनाए जाते थे. रंग फेंकने के लिए बांस की पिचकारी बनाई जाती थी. इस काम को विशेष वर्ग के लोग करते थे. रंग के साथ ही गीतों और नृत्य पर जोर रहता था. राजा और जागीरदार होली खेलने के साथ ही नृत्य और गीत का लुत्फ लेते थे. इस दौरान राजा की पाकशाला में तरह-तरह के व्यजंन बनाए जाते थे.
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इसी मौके पर राजा और जागीरदार पड़ोसी देशों की सामरिक स्थिति पर चर्चा करते हुए युद्ध की रणनीति भी तय करते थे. साथ ही जागीरदार अपने पाल्यों व रिश्तेदारों का रिश्ता भी तय करते थे. चार से पांच दिन तक चले उत्सव के बाद राजा जागीरदारों को विदा करते थे. वहीं वे लगान वसूलने निकल पड़ते थे जबकि प्रजा नई बैलों की जोड़ी, हल व मवेशी खरीदना शुरू करती थी.