Holi 2023 Date: होली 8 मार्च को, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, उपाय, नियम, मंत्र समेत पूरी डिटेल जानें
Holi 2023 Date: रंगों का त्योहार होली 2023 में 8 मार्च, बुधवार को मनाया जा रहा है. जबकि होलिका दहन 7 मार्च को है. होली और होलिका दहन से जुड़े संपूर्ण डिटेल, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, उपाय, मान्यताएं यहां पढ़ें.
इस वर्ष होली बुधवार, 8 मार्च, 2023 को मनाई जाएगी. होली पूरे देश में हिंदुओं द्वारा मनाई जाती है. यह हिंदू कैलेंडर के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है. इसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है.
होलिका दहन, जिसे छोटी होली के रूप में भी जाना जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और अगले दिन लोग इकट्ठा होकर एक दूसरे को रंग लगाकर होली खेलते हैं. इस वर्ष होलिका दहन 2023 का शुभ मुहूर्त 2 घंटे 27 मिनट तक रहेगा. 7 मार्च 2023 मंगलवार को आप शाम 6:24 बजे से रात 8:51 बजे तक अनुष्ठान कर सकते हैं.
होलिका दहन 2023 तिथि (Holika Dahan 2023 Date Time)
मंगलवार, 7 मार्च, 2023, होलिका दहन 2023 का समय- शाम 6:24 से 8:51 बजे तक, होलिका दहन की अवधि 2 घंटे 27 मिनट.
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि प्रारंभ (Falgun Purnima Date Start) 6 मार्च 2023 को 04:17 अपराह्न
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि समाप्त (Falgun Purnima Date End) 7 मार्च 2023 को 06:09 अपराह्न
होलिका दहन के शुभ अवसर पर होलिका जलाने के लिए जहां पर लकड़ी इक्ट्ठी की जाती है वहां जा कर पूजा करें. होलिका के लिए तैयार किये गये लकड़ी को सफेद धागे या मौली (कच्चा सुत) से तीन या सात बार लपेटें. फिर उस पर पवित्र जल, कुमकुम और फूल छिड़क कर पूजा करें. पूजा पूरी होने के बाद शाम को होलिका जलाया जाता है.
होलिका की भस्म के लिए एक मान्यता यही है कि इसे घर में लाने से घर से नकारात्मक और अशुभ शक्तियों का प्रभाव खत्म होता है. इसलिए लोग इसे घर में लाकर रखते हैं .. वहीं कुछ लोग इसे ताबीज में भरकर घारण करते हैं, ताकि नकारात्मक शक्तियों और तंत्र-मंत्र के प्रभाव से बच सकें.
होलिका दहन होने के बाद होलिका में कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग- गेहूं, चना, जौ भी अर्पित कर स्वयं भी पूरे परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करें. मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार के सदस्यों को रोगों से मुक्ति मिलती है. घर की सुख-समृद्धि के लिए होली की पवित्र भस्म को घर में रखें.
होली की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं में देखी जा सकती है. माना जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत होलिका और प्रह्लाद की कथा से हुई थी. पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को भगवान विष्णु ने अपने पिता हिरण्यकश्यप के बुरे इरादों से बचाया था. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को एक वरदान प्राप्त था जिससे वह आग से प्रतिरक्षित हो गई थी. उसने प्रह्लाद को मारने के लिए इस वरदान का उपयोग करने की कोशिश की, जबकि वह जलती हुई आग में बैठी थी. हालांकि, आग ने प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और होलिका आग की लपटों में भस्म हो गई. बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व होली के पहले दिन मनाया जाता है, जिसे होलिका दहन के नाम से जाना जाता है.
‘असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिषै:। अतस्तवां पूजायिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव।।’ का उच्चारण करते हुए होलिका की सात परिक्रमा करें. इसी मंत्र के साथ होलिका को अर्घ्य भी दें. चौराहे पर होलिका दहन होने के बाद वहां से लाई हुई अग्नि से होलिका दहन करें. फिर लोटे का शुद्ध जल और पूजन की अन्य सभी वस्तुओं को श्रद्धाभाव से एक-एक करके होलिका में समर्पित करें.
होलिका दहन के दूसरे दिन को रंगवाली होली, धुलंडी या फगवा के नाम से जाना जाता है. यह वह दिन है जब लोग रंग, पानी और फूलों से होली खेलने के लिए एक साथ आते हैं. यह एक ऐसा समय है जब लोग अपने मतभेदों को भूल जाते हैं और जीवन की खुशियों का जश्न मनाते हैं. एक दूसरे के घर जाकर एक साथ त्योहार मनाते हैं. गुझिया, मठरी और पापड़ी जैसे विशेष व्यंजन बनाते, खाते और खिलाते हैं.
होली में इस्तेमाल होने वाले रंगों का बहुत महत्व होता है. लाल प्रेम और उर्वरता का प्रतिनिधित्व करता है, हरा नई शुरुआत और विकास का प्रतिनिधित्व करता है, पीला सुख और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है, और नीला परमात्मा और आकाश का प्रतिनिधित्व करता है. माना जाता है कि रंगों का शरीर और मन पर उपचारात्मक प्रभाव पड़ता है. ऐसा माना जाता है कि रंगों से खेलने से तनाव, चिंता और डिप्रेशन से राहत मिलती है.