Holi 2024 : होली का त्योहार भारत के लगभग हर हिस्से में बहुत ही उल्लास और जोश के साथ मनाया जाता है. कुछ क्षेत्रों में होली को अनोखे नाम से भी जाना जाता है. झारखंड में आदिवासी होली को अलग अंदाज में मनाते हैं और वे इसे फगुआ कहते हैं. हालांकि बदलते वक्त के साथ फगुआ मनाने के तरीकों में बदलाव आया है, लेकिन आज भी इस त्योहार को आदिवासी समाज अपने पारंपरिक तरीके से मनाता है.
क्या है फगुआ की परंपरा
फगुआ मनाने के लिए गांव के लोग होलिका दहन वाले दिन सेमल की डाली को इकट्ठा करते हैं फिर उसपर पुआल डालते हैं और सेमल की डाली को इकट्ठा करके जलाया जाता है, जिसके चारों ओर आदिवासी नाचते और गाते हैं. अगले दिन उसके राख को लोग एक-दूसरे के माथे और गालों पर लगाते हैं और एक दूसरे से खुशी मनाते हैं.
फगुआ पर्व से जुड़ी कथा
फगुआ पर्व से जुड़ी एक कथा आदिवासियों के बीच प्रचारित है, जो इस प्रकार है. एक कथा के अनुसार पुराने समय में सेमल के पेड़ पर एक विशाल गिद्ध रहता था, जो इंसानों को खा जाता था. लिटिवीर नामक एक लड़का था, जिसने इस गिद्ध से लड़ने की तरकीब सोची. उसने लोहार के पास जाकर तीर धनुष और तलवार बनवाया और सेमल के पेड़ के पास जाकर उसने गिद्ध को अपने तीर से मार डाला और फिर उस सेमल के पेड़ में आग लगा दी. इसी कथा को याद करते हुए आदिवासी लोग इस त्यौहार को मनाते हैं और फगुआ के दिन फग्गू काटते हैं. आदिवासी लोग रंग से नहीं खेलते हैं वे लाल मिट्टी का प्रयोग करते हैं.
फगुआ के पर्व में नाच – गान
इस दिन बहुत सारे गीत गाने का और नृत्य करने की भी परंपरा है. इस दिन आदिवासी ढोल, नगड़ा और मांदर की धुन पर फगुआ नृत्य करते हैं. ये नृत्य वसंत ऋतु के आनंद को और बढ़ा देता है.
फगुआ में बनाए जाने वाले पकवान
फगुआ के त्यौहार में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं जैसे छिलका रोटी, अरसा, चावल के आटे से बनाया जाने वाला पेड़ा या लड्डू जिसमें गुड़ डाला जाता है. इसके अलावा मालपुआ जो झारखंड की खास मिठाई है, वो भी बनाई जाती है.
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(झारखंड के प्रसिद्ध रंगकर्मी और बुद्धिजीवी महादेव टोप्पो से अनु कंडुलना की बातचीत)