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इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का ज्यादा इस्तेमाल आपके बच्चों के दिमाग पर डालता है ऐसा असर, आप भी जानें

Parenting Tips: अगर आपके बच्चे भी अपना ज्यादातर समय मोबाइल फोन्स या फिर इसी तरह के स्क्रीन वाले गैजेट्स के साथ बिताते हैं तो यह स्टोरी आपके लिए है. आज हम आपको बताने वाले हैं कि ऐसा करने पर आपके बच्चे के दिमाग पर क्या असर पड़ता है.

By Saurabh Poddar | June 18, 2024 5:17 PM

Parenting Tips: आज के डिजिटल दौर में हम सभी टेक्नोलॉजी और डिजिटल मीडिया से काफी ज्यादा प्रभावित हो चुके हैं. बात चाहे छोटे बच्चों की हो या फिर बड़े बुजुर्गों की, सभी एक्सपेक्टेड टाइम लिमिट से ज्यादा देर तक स्क्रीन का इस्तेमाल करने लगे हैं. अगर आप नहीं जानते हैं तो बता दें जब छोटे बच्चे जरुरत से ज्यादा देर तक स्क्रीन में देखते रहते हैं तो इसका असर उनके दिमाग पर पॉजिटिव और निगेटिव दोनों ही तरह से पड़ता है. कई बार यह उसके दिमाग के विकास में भी बाधा डालता है. जब बात की जाती है संज्ञानात्मक विकास की तो ऐसे में अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे की पढ़ाई-लिखाई में सुधार हो तो ऐसे में उनके द्वारा स्क्रीन में बिताये जाने वाले समय पर लिमिट लगा देनी चाहिए. लेकिन मल्टीटास्किंग के लिए नहीं, जैसे फिल्में देखना या वीडियो गेम खेलना.

क्या मीडिया मल्टीटास्किंग बच्चों पर डाल सकते हैं निगेटिव प्रभाव

यह एक सच्चाई है कि मीडिया मल्टीटास्किंग बच्चों पर निगेटिव प्रभाव डाल सकती है, जिससे उनके सेंसरिमोटर डेवलपमेंट, एग्जीक्यूटिव फंक्शनिंग और एकेडेमिक आउटकम प्रभावित हो सकते हैं. सबसे जरूरी इफेक्ट्स में से एक बच्चे के लैंग्वेज डेवलपमेंट पर इसका असर है, क्योंकि लंबे समय तक स्क्रीन पर रहने से बच्चे और उनकी देखभाल करने वालों और दोस्तों के बीच बातचीत की क्वालिटी और क्वांटिटी कम हो जाती है. सही कंटेंट तक पहुंच बच्चे के लैंग्वेज डेवलपमेंट को भी प्रभावित कर सकती है, जिससे सोशल और इमोशनल प्रॉब्लम्स, नींद में दिक्कत, स्ट्रेस और कभी-कभी डिप्रेशन भी हो सकता है.

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नींद में परेशानी

काफी देर तक स्क्रीन में समय बिताने से बच्चों की स्लीप साइकिल पर इसका काफी बुरा असर पड़ता है, क्योंकि देर रात तक आपके डिवाइस के साथ व्यस्त रहने से शरीर रात में एक केमिकल, मेलाटोनिन रिलीज़ करने से रोक सकता है, जिसके लिए अंधेरे और शांति की जरुरत होती है. यह आपके शरीर को सोते रहने में मदद करता है, और यदि पर्याप्त मात्रा में इसका प्रोडक्शन नहीं किया जाता है, तो यह आपके बच्चे को जगाए रख सकता है, जिसके परिणामस्वरूप उसका दिन कठिन और परेशान करने वाला हो सकता है.

ब्रेन सेल्स में बदलाव

बहुत ज्यादा स्क्रीन टाइम आपके ब्रेन में फिजिकल बदलावों का कारण भी बन सकता है. चूंकि मस्तिष्क की बाहरी परत, यानी कॉर्टेक्स, डेवलपमेंट के फेज के दौरान जानकारी संसाधित करती है, यह महत्वपूर्ण विकास से गुजरती है. स्क्रीन टाइम इस वृद्धि को प्रभावित कर सकता है और कॉर्टेक्स की परत पतली हो सकती है, जो आने वाले समय में शैक्षणिक और संज्ञानात्मक रूप से समस्याओं का कारण बन सकती है.

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मूड स्विंग्स

स्मार्टफोन में काफी ज्यादा समय तक स्क्रॉलिंग और टेक्सटिंग आपके इमोशनल हेल्थ के साथ खिलवाड़ कर सकता है. ऐसा होने की वजह से आप में डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है. बच्चों या फिर या किशोरों में अत्यधिक स्क्रीन टाइम के कारण वे अपनी जिम्मेदारियों को नजरअंदाज करते हैं और अपने गैजेट्स के बिना, वे चिंतित महसूस करने लगते हैं, जिससे रोने, चिल्लाने से लेकर गुस्से की समस्या तक मूड में भारी बदलाव हो सकता है.

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