Independence Day 2023: भारत की वो वीरांगनाएं, जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना अहम योगदान दिया

भारत की स्वतंत्रता के लिये न केवल पुरुषों ने बल्कि, कई महिलाओं ने भी अपने साहस का परचम लहराते हुए आजादी की लड़ाई में अपनी सहभागिता दी थी. ऐसे में आज हम आपको भारत की कुछ ऐसी वीरांगनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने भारत की आजादी के लिये अपना अहम योगदान दिया.

By Shradha Chhetry | August 7, 2023 3:59 PM

भारत को आजाद हुए 76 साल हो गया है, लेकिन आज भारतवासियों के दिल में स्वतंत्रता सेनानियों के लिये सम्मान बरकरार हैं. अनगिनत लोगों की कुर्बानियों व संघर्षों के बाद आज एक आजाद भारत में हम सांस ले पा रहे हैं. भारत की स्वतंत्रता के लिये न केवल पुरुषों ने बल्कि, कई महिलाओं ने भी अपने साहस का परचम लहराते हुए आजादी की लड़ाई में अपनी सहभागिता दी थी. ऐसे में आज हम आपको भारत की कुछ ऐसी वीरांगनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने भारत की आजादी के लिये अपना अहम योगदान दिया.    

रानी लक्ष्मी बाई

झांसी की रानी लक्ष्मी बाई को भला कौन नहीं जानता. जब भी नारी सशक्तिकरण की बात होती है, तब रानी लक्ष्मीबाई का नाम जरूर आता है. ऐसी वीरांगना जिसने अकेले ही अंग्रेजों से लोहा लिया. रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को हुआ था. उनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे और माता का भागीरथी सापरे था. उनके बचपन का नाम मनु और छबीली था. उनकी शादी झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुई. देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी.

सरोजिनि नायडू

भारत की कोकिला कहलाये जाने वाली सरोजिनि नायडू  एक नारीवादी, कार्यकर्ता, कवियत्री और राजनीतिक नेता थीं. वे प्रभावशाली और महिला स्वतंत्रता सेनानियों में प्रमुख महिला थी. उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी है. उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिनके लिए उन्हें जेल भी हुई थी. सरोजिनि नायडू गोपालकृष्ण गोखले को अपना ‘राजनीतिक पिता’ मानती थीं. साल 1925 में उन्हें भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनाया गया. बाद में देश आजाद होने के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल नियुक्त किया गया.

सावित्रीबाई फुले

सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका थी. साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश का सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना इन्होंने ने ही की थी. सावित्रीबाई फुले इन स्कूलों में न केवल पढ़ाती थी, बल्कि लड़कियां स्कूलों को ना छोड़े इसके लिए वह मदद भी प्रदान करती थी. सावित्री बाई फूले ने महिलाओं को लेकर तमाम रूढ़ियों औऱ जड़ताओं का हल शिक्षा में ढूंढ़ा औऱ समाज में शिक्षा की ज्योति जलाने की अपनी यात्रा में निकल पड़ी. भारतीय स्त्री आंदोलन की यात्रा में सावित्री बाई फूले का जीवनकर्म एक अहम कड़ी है; जिसे बिना समझे-जाने स्त्रीवादी आंदोलन और सुधारों को समग्रता में देखने की दृष्टि विकसित नहीं की जा सकती.

उषा मेहता

कांग्रेस रेडियो जिसे ‘सीक्रेट कांग्रेस रेडियो’ के नाम से भी जाना जाता है, इसे शुरू करने वाली ऊषा मेहता ही थीं. उषा मेहता भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में स्वतंत्रता संग्राम की सबसे कम उम्र की प्रतिभागियों में से एक थी.वे महात्मा गांधी की अनुयायी थीं. जब यह 8 साल की थी तब इन्होंने साइमन गो बैक विरोध में भाग लिया. वह स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी. लेकिन वह जितना हो सके उतना योगदान देना देना चाहती थी. उन्होंने पढ़ाई छोड़ने के बाद खुद को पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया. यहां तक कि इन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ रेडियो चैनल चलाया जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा.

बेगम हजरत महल 

बेगम हजरत महल भारत में सबसे प्रतिष्ठित महिला स्वतंत्र सेनानियों में से एक बेगम हजरत महल थी उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के समकक्ष के रूप में भी जाना जाता है. 1857 में जब विद्रोह शुरू हुआ तब वह पहली स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थी, जिन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने और आवाज उठाने के लिए राजी किया था. बेगम हजरत महल की हिम्मत का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने मटियाबुर्ज में जंगे-आज़ादी के दौरान नज़रबंद किए गए वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी.

एनी बेसेंट

साल 1893, एनी बेसेंट भारत पहुंचती हैं. उनका जन्म लंदन में हुआ था. यहां आने के बाद वह देश के अलग-अलग शहरों में गयीं. ट्रेन और बैलगाड़ी से उनकी ये यात्राएं हुईं. उनके भारत आये पांच साल भी नहीं हुए थे कि उन्होंने बनारस में सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना की घोषणा कर दी. भारत आने के बाद भी ऐनी बेसेंट महिला अधिकारों के लिए लड़ती रहीं. महिलाओं को वोट जैसे अधिकारों की मांग करते हुए ऐनी बेसेंट लागातार ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखती रहीं। भारत में रहते हुए ऐनी बेसेंट ने स्वराज के लिए चल रहे होम रूल आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

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