15 नवंबर 1998 को कांचीपुरम के डेढ़ साल के संजय शक्ति कंडास्वामी भारत के पहले सफल पीडियाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट बने है. ठीक 24 साल बाद संजय अब बेंगलुरु में डॉक्टर हैं. लोगों की जान बचाने की कोशिश में लगे हैं. संजय शक्ति कंडास्वामी को बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना था. उनका जन्म 1997 में पित्त की गति (बाइलरी एट्रेसिया बिमारी) के साथ हुआ था, जो एक दुर्लभ यकृत विकार जिसके परिणामस्वरूप प्रसवोत्तर पीलिया से ग्रसित थे. जिसके कारण उनका लिवर खराब हो गया, जिससे प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ी. उनका लिवर ट्रांसप्लांट के लिए उन्हें अपोलो अस्पताल लाया गया. जहां, दिल्ली में डॉ एमआर राजशेखर, डॉ ए वी सोइन और डॉ अनुपम सिब्बल ने उनका लिवर ट्रांसप्लांट प्रत्यारोपण किया गया था. बताएं आपको कि संजय के पिता डोनर थे.
कांचीपुरम के रहने वाले बच्चे का नाम उसके माता-पिता ने शक्ति रखा था, लेकिन सर्जरी के बाद डॉक्टरों की टीम ने उसे नया नाम दिया ‘संजय’. संजय बाइलरी एट्रेसिया नामक बीमारी से पीड़ित थे, जिसका लिवर और आंत के बीच कोई संबंध नहीं होता है, जबकि पित्त यकृत में जमा हो जाता है और यकृत की विफलता में परिणाम होता है.
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संजय का कहना है कि स्कूल में मास्क पहनकर आने वाला वह एकलौता छात्र थें.”अन्य बच्चे स्वाभाविक रूप से उत्सुक थे. उन्होंने कहा मैं कक्षा 6 में था जब मुझे समझ में आया कि मेरे साथ क्या हुआ है. बड़े होने के दौरान मैंने लिवर प्रत्यारोपण के बारे में पूरी जानकारी डिटिले में जानने लगा. संजय ने मेडिकल की पढ़ाई की और 2021 में डॉक्टर बन गए. उन्होंने कहा कि “मुझे बच्चों से प्यार है और इसीलिए मैं बाल रोग विशेषज्ञ बनना चाहता हूं. अगर मैं डॉक्टर नहीं होता, तो मैं फार्मेसी या जेनेटिक इंजीनियरिंग करता.”
भारत में पहला मृत दाता यकृत प्रत्यारोपण (डीडीएलटी) 1995 में आयोजित किया गया था, जो असफल रहा था. इसके बाद 1998 में पहला सफल DDLT आयोजित होने तक कुछ अन्य असफल प्रयास हुए. अपोलो हॉस्पिटल्स के संस्थापक और अध्यक्ष डॉ प्रताप सी रेड्डी का कहना है कि संजय के प्रत्यारोपण ने भारत में आगे के लिवर प्रत्यारोपण का मार्ग प्रशस्त किया. “पिछले 24 वर्षों में अपोलो लिवर ट्रांसप्लांट प्रोग्राम ने 50 से अधिक देशों के रोगियों में 4,050 से अधिक प्रत्यारोपण किए हैं, जिनमें से 489 बच्चे हैं.