International Dance Day 2023: आज है इंटरनेशनल डांस डे, जानें भारत के प्रमुख नृत्य शैली के बारे में…

International Dance Day 2023: आज 29 अप्रैल को इंटरनेशनल डांस डे मनाया जा रहा है. यह दिन नृत्य के कई लाभों को बढ़ावा देने, तनाव को दूर करने वाले के रूप में नृत्य को पहचानने, ख़ुद को व्यक्त करने, ख़ुशी मनाने का एक तरीका और लोगों को एक साथ लाने वाली एक्टिविटी के लिए भी मनाया जाता है.

By Preeti Singh Parihar | April 29, 2023 6:39 AM

International Dance Day 2023: प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को ‘अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस’ विश्व स्तर पर मनाया जाता है. इस दिन नृत्य के मूल्य और महत्व का जश्न मनाया जाता है. कार्यक्रमों और त्योहारों के माध्यम से इस कला के रूप में भागीदारी और इस शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाता है. यह दिन नृत्य के कई लाभों को बढ़ावा देने, तनाव को दूर करने वाले के रूप में नृत्य को पहचानने, ख़ुद को व्यक्त करने, ख़ुशी मनाने का एक तरीका और लोगों को एक साथ लाने वाली एक्टिविटी के लिए भी मनाया जाता है.

अंतरराष्‍ट्रीय नृत्य दिवस का इतिहास

महान नृतक जीन जार्ज नावेरे के जन्मदिन पर UNESCO के इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट की अंतरराष्ट्रीय डांस कमेटी ने 29 अप्रैल 1982 को यह दिन मनाने को घोषणा की थी. जिसके बाद से हर साल इस दिन को धूमधाम से पूरी दुनिया में मनाया जाता है. बता दें कि नावेरा फ्रांस के एक पारंगत बैले डांसर थे जिन्‍होंने नृत्य पर ‘लेटर्स ऑन द डांस’ नाम की एक किताब लिखी थी जिसमें नृत्य कला से जुड़ी सभी चीज़ें मौजूद हैं. इसे पढ़कर कोई भी नृत्य करना सीख सकता है.

नृत्य की उत्पत्ति किसने की थी?

कहा जाता है कि आज से 2000 वर्ष पूर्व त्रेतायुग में देवताओं की विनती पर ब्रह्माजी ने नृत्य वेद तैयार किया, तभी से नृत्य की उत्पत्ति संसार में मानी जाती है. इस नृत्य वेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई चीजों को शामिल किया गया. जब नृत्य वेद की रचना पूरी हो गई, तब नृत्य करने का अभ्यास भरतमुनि के सौ पुत्रों ने किया था.

भारत के प्रमुख नृत्य 

कथकली

कथकली नृत्य 17 वीं शताब्दी में केरल राज्य से आया. इस नृत्य में आकर्षक वेशभूषा, इशारों व शारीरिक थिरकन से पूरी एक कहानी को दर्शाया जाता है. इस नृत्य में कलाकार का गहरे रंग का श्रृंगार किया जाता है, जिससे उसके चेहरे की अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप से दिखाई दे सके.

मोहिनीअट्टम

मोहिनीअट्टम नृत्य कलाकार का भगवान के प्रति अपने प्यार व समर्पण को दर्शाता है. इसमें नृत्यांगना सुनहरे बॉर्डर वाली सफेद सा़ड़ी पहनकर नृत्य करती है, साथ ही गहने भी काफी भारी-भरकम पहने जाते हैं. इसमें सादा श्रृंगार किया जाता है.

ओडिसी

उ़ड़ीसा राज्य का यह प्रमुख नृत्य भगवान कृष्ण के प्रति अपनी आराधना व प्रेम दर्शाने वाला है. इस नृत्य में सिर, छाती व श्रोणि का स्वतंत्र आंदोलन होता है. भुवनेश्वर स्थित उदयगिरि की पहा़ड़ियों में इसकी छवि दिखती है. इस नृत्य की कलाकृतियाँ उड़ीसा में बने भगवान जगन्नाथ के मंदिर पुरी व सूर्य मंदिर कोणार्क पर बनी हुई हैं.

कथक

इस नृत्य की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश से की गई, जिसमें राधाकृष्ण की नटवरी शैली को प्रदर्शित किया जाता है. कथक का नाम संस्कृत शब्द कहानी व कथार्थ से प्राप्त होता है. मुगलराज आने के बाद जब यह नृत्य मुस्लिम दरबार में किया जाने लगा तो इस नृत्य पर मनोरंजन हावी हो गया.

भरतनाट्यम

यह शास्त्रीय नृत्य तमिलनाडु राज्य का है. पुराने समय में मुख्यतः मंदिरों में नृत्यांगनाओं द्वारा इस नृत्य को किया जाता था. जिन्हें देवदासी कहा जाता था. इस पारंपरिक नृत्य को दया, पवित्रता व कोमलता के लिए जाना जाता है. यह पारंपरिक नृत्य पूरे विश्व में लोकप्रिय माना जाता है.

कुचिपुड़ी

आंध्रप्रदेश राज्य के इस नृत्य को भगवान मेला नटकम नाम से भी जाना जाता है. इस नृत्य में गीत, चरित्र की मनोदशा एक नाटक से शुरू होती है. इसमें खासतौर से कर्नाटक संगीत का उपयोग किया जाता है. साथ में ही वायलिन, मृदंगम, बांसुरी की संगत होती है. कलाकारों द्वारा पहने गए गहने “बेरुगू” बहुत हल्के लक़ड़ी के बने होते हैं.

मणिपुरी

मणिपुरी राज्य का यह नृत्य शास्त्रीय नृत्यरूपों में से एक है. इस नृत्य की शैली को जोगाई कहा जाता है. प्राचीन समय में इस नृत्य को सूर्य के चारों ओर घूमने वाले ग्रहों की संज्ञा दी गई है. एक समय जब भगवान कृष्ण, राधा व गोपियाँ रासलीला कर रहे थे तो भगवान शिव ने वहाँ किसी के भी जाने पर रोक लगा दी थी, लेकिन माँ पार्वती द्वारा इच्छा जाहिर करने पर भगवान शिव ने मणिपुर में यह नृत्य करवाया.

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