International Nurses Day 2022: आपने फ्लोरेंस नाइटिंगेल या ‘द लेडी विद द लैंप’ के बारे में किताबों में जरूर पढ़ा होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि फ्लोरेंस नाइटिंगेल को ही दुनिया की पहली नर्स माना जाता है और उन्हीं के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय नर्सेज डे यानी नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है.
12 मई को इंटरनेशनल नर्सेज़ डे मनाने की शुरुआत की गई क्योंकि यह फ्लोरेंस नाइटिंगेल(Florence Nightingale) का जन्मदिन था. हर साल इस दिन को नर्सों की सेवा भावना और उनके गहन योगदान को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है. इस मनाने की शुरुआत 1965 में हुई थी. इस बार 12 मई को 55वें नर्सेज डे के अतिरिक्त फ्लोरेंस के 202वीं जयंती भी मनाई जा रही है.
फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 12 मई, 1820 को इटली के फ्लोरेंस में हुआ था. उनके पिता का नाम विलियम नाइंटिगेल और मां का नाम फेनी नाइटिंगेल था. विलियम नाइटिंगेल बैंकर थे और काफी धनी थे. परिवार को किसी चीज की कमी नहीं थी. फ्लोरेंस जब किशोरी थीं उस समय वहां लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं. बहुत सी लड़कियां तो बिल्कुल नहीं पढ़ती थीं. लेकिन विलियम अपनी बेटियों को पढ़ाने को लेकर बहुत गंभीर थे. उन्होंने अपनी बेटियों को विज्ञान, इतिहास और गणित जैसे विषय पढ़ाए.
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युवावस्था से ही फ्लोरेंस नाइटिंगेल लोकोपकार में सक्रीय थीं और गांव के गरीब परिवार के लोगों की अपनी पारिवारिक ज़मीन पर रहकर सहायता करती थीं. कहा जाता है की इस प्रकार लोगों की सेवा करते-करते ही नाइटिंगेल ने नर्सिंग को ही अपने करियर के रूप में चुना, इसके बाद नर्सिंग के पेशे को ही उन्होंने अपने जीवन का दिव्य उद्देश्य बनाया.
फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 1820 को 12 मई को हुआ था, हालांकि वह एक धनी परिवार से आई थीं, लेकिन आरामदायक जीवन बिताने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी. उनके मन में मनावता के प्रति बेहद प्यार था. फ्लोरेंस के पिता विलियम एडवर्ड नाइटिंगेल एक समृद्ध ज़मींदार थे, फ्लोरेंस को जर्मन, फ्रेंच और इटालियन भाषा के साथ-साथ गणित का भी अच्छा ज्ञान था.
जन्म उनका इटली में हुआ लेकिन माता-पिता के साथ इंग्लैंड चली गईं. जीवन का बाकी समय वहीं गुजरा. विक्टोरिया काल के ब्रिटेन में अमीर घरानों की महिलाएं काम नहीं करती थीं. उनका काम सिर्फ शादी करना और शादी के बाद घर, बच्चे और पति की देखभाल करना होता था. नौकरों को देखना, अतिथियों की देखभाल, पढ़ना, सिलाई-बुनाई और सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेना, यही सब रोजाना करना होता था. लेकिन फ्लोरेंस तो किसी और चीज के लिए ही बनी थीं. जब वह 16 साल की थीं तो उनका मानना था कि भगवान की ओर से उनको पीड़ित लोगों की मदद के लिए कहा गया है. वह नर्स बनना चाहती थीं जो मरीजों और परेशान लोगों की देखभाल करे.
फ्लोरेंस ने अपनी इच्छा अपने माता-पिता को बताई. यह सुनकर उनके पिता काफी नाराज हुआ. उस समय नर्सिंग को सम्मानित पेशा नहीं माना जाता था. इसके अलावा अस्पताल काफी गंदी जगह होते थे और बड़े डरावने होते थे. अकसर बीमार लोगों के मर जाने से डरावना जैसा लगता था. फ्लोरेंस जैसी धनी परिवार की लड़की के लिए वह पेशा तो बिल्कुल नहीं था. लेकिन फ्लोरेंस अपनी बातों पर अड़ गईं.
आखिरकार उनके माता-पिता को उनकी बातों को मानना पड़ा. 1851 में फ्लोरेंस को नर्सिंग की पढ़ाई की अनुमति दे दी गई. जर्मनी में महिलाओं के लिए एक क्रिस्चन स्कूल में उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई शुरू कर दी. वहां उन्होंने मरीजों की देखभाल के अहम हुनर सीखें. वहां उन्होंने अस्पताल को साफ रखने के महत्व के बारे में भी जाना. 1853 में उन्होंने लंदन में महिलाओं का एक अस्पताल खोला. वहां उन्होंने बहुत अच्छा काम किया. उन्होंने मरीजों की देखभाल की बहुत अच्छी सुविधा मुहैया कराई. काम करने की स्थिति में भी सुधार किया.