International Women’s Day Special: महिलाएं पुराने समय से लेकर आज तक अपने खिलाफ कई सारे अत्याचारों को सहती आ रही हैं. इसके खिलाफ सदियों से उन्होंने आवाज़ उठाई है और बहुत सारी लड़ाइयां भी लड़ी हैं. महिलाओं के अधिकारों के लिए सिर्फ महिलाएं ही लड़े ये काफी नहीं है. जरूरी है की पुरुष भी उनके प्रति जागरूक रहे. अगर हम पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता देखना चाहते हैं तो आवश्यक है कि पुरुष इसके लिए अपने आप को आगे करें. हम आपको बताएंगे कुछ ऐसे भारतीय पुरूषों के बारे में जिन्होंने महिलाओं के अधिकार के लिए पहल की और उनपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ लड़ाई भी लड़ी है.
: International Women’s Day Special: महिलाओं के सम्मान के लिए इन पुरुषों ने किया अपना जीवन समर्पित, अपने काम से किया पूरी दुनिया में नाम
हरीश सदानी
हरीश सादानी कई लोगों के लिए एक प्रेरणा हैं. ये महिलाओं के अधिकार के लिए काम करते हैं. वर्तमान में हरीश मेन अगेंस्ट वायलेंस एंड एब्यूज (MAVA) के सह-संस्थापक और मुख्य पदाधिकारी हैं. यह महिलाओं पर हो रहे हिंसा को रोकने के लिए काम करने वाले पुरुषों द्वारा चलाया जाने वाला भारत का पहला संगठन है. इस संगठन की शुरुआत 1993 में हुई थी. MAVA की शुरुआत के बाद से इन्होंने हर वर्ग, हर आयु के पुरुषों के साथ मिलकर उन्हें पितृसत्ता के खिलाफ जागरूक कर यह बताया है कि कैसे ऐसी सामाजिक संरचनाएं न केवल महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करती हैं, बल्कि पुरुषों पर भी सफल होने, उपलब्धि हासिल करने और कमजोरी के कोई लक्षण न दिखाने का दबाव डालती हैं. हरीश ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से सोशल वर्क में मास्टर्स किया है. हरीश ने हजारों पुरुषों और युवाओं को स्वस्थ रिश्तों, संबंधित मामलों पर बातचीत कर इसके प्रति जागरूक किया है. यह पूरे भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और अन्य लैंगिक मामलों को रोकने के लिए कॉरपोरेट्स, विश्वविद्यालयों और गैर सरकारी संगठनों में एक प्रशिक्षक के रूप में भी कार्य करते हैं. हरीश को सैंडविक एशिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा अशोक चेंजमेकर्स अवार्ड और जेंडर डायवर्सिटी अवार्ड से सम्मानित किया गया है. हरीश को महिलाओं के खिलाफ लिंग आधारित और यौन हिंसा के मुद्दों के ऊपर बोलने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा आमंत्रित किया गया है जैसे UN women और UNFPA.
दीपेश टांक
मुंबई के दीपेश टांक ट्रेन में सफर कर रही महिलाओं की सुरक्षा के लिए बहुत सारे काम किए हैं. उन्होंने जब मलाड स्टेशन पर ट्रेन से उतरकर इंतजार कर रही महिलाओं पर युवकों को इशारा करते और उन पर झपटने की कोशिश करते हुए देखा तो उन्हें यह महसूस हुआ कि उन्हें इसके खिलाफ कुछ करने की जरूरत है. पर जब वह इसके लिए रेलवे पुलिस कर्मचारियों की मदद लेने के लिए गए तो उन्होंने इसके खिलाफ कोई भी कार्यवाही करने से मना कर दिया. तब दीपेश ने यह फैसला कर लिया वह खुद इसके खिलाफ कुछ करेंगे. 2013 में महिलाओं के प्रति हो रहे इस हिंसा को रोकने के लिए उन्होंने एक अभियान की शुरुआत की जिसका नाम था WARR (War Against Railway Rowdies). इस अभियान के जरिए WARR के वालंटियर्स ने ट्रेन में महिलाओं को परेशान करने वाले पुरुषो को वीडियोटेप करके उन्हें पकड़ने में अधिकारियों की सहायता की. इस अभियान की वजह से अधिकारी भी महिला सुरक्षा के मुद्दे पर जाग गए और उन्होंने अधिक से अधिक स्टेशनों को वीडियो निगरानी के तहत कवर करना शुरू कर दिया गया.
अरुणाचलम मुरुगनंतम
अरुणाचलम कोयंबटूर, तमिल नाडु से एक सोशल इंटरप्रेन्योर है. इन्होने एक पैड मशीन का आविष्कार किया जिससे की कम पैसों में पैड बन सके और गाँव में रहने वाली महिलाए कपड़ो का इस्तेमाल छोड़ पैड का इस्तेमाल कर सकें. इस मशीन को बनाने की प्रेरणा उन्हें तब मिली जब उन्होंने अपनी पत्नी को मासिक धर्म से निपटने के लिए पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करते हुए देखा क्योंकि वह सैनिटरी पैड नहीं खरीद सकती थीं. तब उन्होंने खुद सैनिटरी पैड को बनाने का फैसला किया. वह इस मशीन को बनाने की प्रक्रिया में बहुत बार असफल रहे पर उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उन्हें इस पैड को बनाने के लिए सही सामग्री ढूंढने के लिए और मशीन बनाने के लिए दो वर्ष लगे. इस मशीन से ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओ को काफी लाभ मिले – जैसे अब वह पैड कम दाम में खरीद सकती थी और उन्हें रोजगार के कई अवसर प्राप्त हुए. 2014 में, इन्हे टाइम पत्रिका की दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया गया था. 2016 में, भारत सरकार द्वारा इन्हे पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था.
रवि,ऋषि और निशि कांत
रवि, ऋषि और निशि कांत इन तीन भाइयों ने शक्ति वाहिनी NGO की शुरुआत 2001 में की थी. इस NGO की शुरआत इन्होने महिलाओं के खिलाफ हो रहे अन्यायों से लड़ने के लिए इसे शुरू किया था. जब वह बड़े हो रहे थे तब उन्होंने अपने आस – पास महिलाओं पर कई अत्याचारों को होते हुए देखा था. दिल्ली में भी जब वे वेश्यालों में जाकर HIV/AIDS जागरूकता अभियान चला रहे थे तब उन्होंने वहां बहुत सारी नाबालिक लड़कियों को देखा जो अपनी इच्छा के बिना वहां काम कर रही थी. इस घटना ने उनपर काफी गहरा प्रभाव डाला. उन्होंने शक्ति वाहिनी NGO खोलने का फैसला किया, जो पुरुषों द्वारा महिलाओं पर हमला करने, तस्करी करने, दुर्व्यवहार करने के खिलाफ काम करती हैं. 2013 में इन्हे अमेरिका में उपराष्ट्रपति जो बिडेन से प्रतिष्ठित वाइटल वॉयस ग्लोबल लीडरशिप पुरस्कार मिला था. यह पुरस्कार महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के उनके प्रयास को मान्यता देते हुए की गई थी. रवि जो एक वकील हैं और पीड़ितों को कानूनी सहायता प्रदान करते हैं. निशि एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं और एनजीओ प्रशासन को चलाते हैं ऋषि ग्राउंड जीरो से बचाव अभियान चलाकर रिपोर्ट करते हैं और मीडिया से भी संवाद करते हैं. रिपोर्ट- अनु कंडुलना
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