International Womens Day: पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Womens Day) मनाया जा रहा है. 8 मार्च को दुनिया भर के देशों में इस दिवस का पालन किया जाता है. समाज और परिवार में उनकी अभूतपूर्व भूमिका पर चर्चा होती है. लड़कर अपना अधिकार लेने वाली महिलाओं को अब समाज और परिवार में अहमियत मिलने लगी है. परिवार के फैसलों में उनकी भागीदारी बढ़ी है.
इस मोर्चे पर भारत में भी काफी सुधार हुआ है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 के आंकड़ों पर गौर करेंगे, तो पायेंगे कि पांच साल पहले यानी वर्ष 2015-16 में 84 फीसदी विवाहित महिलाओं को परिवार में लिये जाने अहम फैसले के बारे में जानकारी दी जाती थी या उनकी राय ली जाती थी. अब यह आंकड़ा बढ़कर 88.7 फीसदी हो गया है.
सर्वेक्षण में शामिल कुल महिलाओं में से 91 फीसदी शहरी क्षेत्र की थीं, जिन्होंने बताया कि उनकी स्वास्थ्य सेवा, घर में होने वाली बड़ी खरीद एवं अपने परिवार या रिश्तेदारों के यहां जाने के बारे में उनकी राय ली गयी. गांवों की 87.7 फीसदी महिलाओं ने भी कहा कि स्वास्थ्य, खरीद और कहीं आने-जाने के बारे में उनकी राय ली जाने लगी है.
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भारत में महिला सशक्तिकरण अभियान का असर दिखने लगा है. सरकारी योजनाओं ने इसमें अहम भूमिका निभायी है. झारखंड जैसे पिछड़े राज्य में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए यहां की सरकार ने बड़ा फैसला लिया था. महिलाओं के नाम पर जमीन की रजिस्ट्री करवाने पर सिर्फ 1 रुपया शुल्क लिया जाता था. इस योजना की वजह से बड़े पैमाने पर महिलाओं को घर का मालिकाना हक मिला. वहीं, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) जैसे बड़े बैंकों ने महिलाओं के नाम पर होम लोन लेने पर छूट दी है, जिसका फायदा उन्हें मिला है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि गांवों में 45.7 फीसदी महिलाओं ने सर्वेक्षण के दौरान बताया कि वह घर की मालकिन हैं. वर्ष 2015-16 में यह आंकड़ा 38.4 फीसदी था. हालांकि, शहरी क्षेत्रों में अब भी महिलाओं के पास मकान का मालिकाना हक नहीं है. सर्वे में शामिल सिर्फ 38.3 फीसदी महिलाओं ने कहा कि किसी न किसी रूप में वह अपने घर की मालकिन हैं.
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नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने जनधन खाता खोलने का बाकायदा एक अभियान चलाया. पहली बार गरीब से गरीब लोगों का बैंक अकाउंट खोलने के लिए बैंकों को लोगों के घर तक पहुंचना पड़ा. इसका असर यह हुआ कि वर्ष 2015-16 में सिर्फ 53 फीसदी महिलाओं के किसी बैंक में बचत खाता या किसी तरह का खाता था, जो वर्ष 2019-21 में बढ़कर 78.6 फीसदी हो गया.
सर्वे में शामिल ग्रामीण क्षेत्रों की 77.4 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उनके नाम से बैंक अकाउंट खुल गये हैं. वहीं, शहरों में रहने वाली 80.9 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उनके नाम से बैंक में अकाउंट है और उसका संचालन वह खुद करती हैं. इतना ही नहीं, मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की संख्या भी 45.9 फीसदी से बढ़कर 54 फीसदी हो गयी है. गांवों में रहने वाली 46.6 फीसदी महिलाओं के पास अपना मोबाइल फोन है, जबकि 69.4 फीसदी शहरी महिलाएं अपना मोबाइल फोन इस्तेमाल करती हैं.
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महिलाओं को मेहनताना दिये जाने के मामले में कुछ विशेष सुधार नहीं हो पाया है. एनएफएचएस-4 के जो आंकड़े आये थे, उसमें कहा गया था कि 24.6 फीसदी महिलाओं को उनके काम का मेहनताना नकद में मिलता था. अब यह आंकड़ा बढ़कर 25.4 फीसदी हो गया है. शहरों से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को नकद मेहनताना मिलता है. गांवों में 25.6 फीसदी को नकद भुगतान किया जाता है, जबकि शहरी क्षेत्रों में 25 फीसदी को.
Posted By: Mithilesh Jha