इसमें कोई दो राय नहीं है, कि अभी के समय में महिलाएं पुरुषों से कम नहीं हैं. हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपना दमखम दिखाया है. समय के साथ समाज ने भी महिलाओं के प्रति अपनी सोच को बदला है, उनकी प्रतिभा को सराहा है. चाहे अंतरिक्ष में यात्रा करना हो या एवरेस्ट को फतेह करना, उन्होंने अपने हुनर का परचम हर तरफ लहराया है. घर की जिम्मेदारी के साथ-साथ अपने काम की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं. मगर इन सब के बावजूद अब भी कई महिलाएं अपने अस्तित्व के लिये लड़ रही है. खुद को साबित करने की कोशिश कर रहीं है. ऐसे में ये जरूरी है कि महिलाओं को अपने हक व अधिकारों के बारे में जानकारी हो. खासकर इन सात अधिकारों के बारे में हर लड़कियों व महिलाओं के पता होना बेहद जरूरी है. आइए जानते हैं क्या है वो सात अधिकार.
इस टाईम के बाद महिला को नहीं कर सकते गिरफ्तार
महिलाओं के हित व उनकी सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं, किसी भी महिला को एक तय समय के बाद गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. दरअसल, भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता के अनुसार अगर किसी महिला आरोपी को सूर्यास्त यानी शाम 6 बजे के बाद या सूर्योदय यानि सुबह 6 बजे से पहले गिरफ्तार किया जाता है तो वह कानून के खिलाफ है. धारा 160 के अनुसार अगर किसी महिला से पूछताछ भी करनी है तो उसके लिए एक महिला कांस्टेबल या उस महिला के परिवार के सदस्यों की मौजूदगी होना जरूरी है.
अगर कार्यस्थल पर हो रहा उत्पीड़न
अगर किसी महिला का उसके दफ्तर में या किसी भी कार्यस्थल पर शारीरिक उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न किया जाता है तो उत्पीड़न करने वाले आरोपी के खिलाफ महिला शिकायत दर्ज करा सकती है. यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत महिलाओं को कार्यस्थल पर होने वाली शारीरिक उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न से सुरक्षा मिलती है.
घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार
ये अधिनियम मुख्य रूप से पति, पुरुष, लिव इन पार्टनर या रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी, एक महिला, लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया है. आप या आपकी ओर से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है.
मातृत्व संबंधी लाभ का अधिकार
मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि ये उनका अधिकार है. मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद 6 महीने तक महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वो फिर से काम शुरू कर सकती हैं. यह कानून हर सरकारी और गैर सरकारी कंपनी पर लागू होता है. इसमें कहा गया है कि एक महिला कर्मचारी जिसने एक कंपनी में प्रेग्नेंसी से पहले 12 महीनों के दौरान कम से कम 80 दिनों तक काम किया है, वह मैटरनिटी बेनेफिट पाने की हकदार है. जिसमें मैटरनिटी लीव, नर्सिंग ब्रेक, चिकित्सा भत्ता आदि शामिल हैं.
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976
इस अधियनियम के तहत एक ही तरह के काम के लिए महिला और पुरुष दोनों को मेहनताना भी एक जैसा ही मिलना चाहिए. यानी यह पुरुषों और महिला श्रमिकों को समान पारिश्रमिक के भुगतान का प्रावधान करता है.
पहचान की रक्षा का अधिकार
अगर कोई महिला जो यौन उत्पीड़न का शिकार हुई है. उस महिला की पहचान की रक्षा करने के लिए अधिकार भारतीय दंड संहिता की धारा- 228 (ए) बनाई गई है. इसके तहत महिला सिर्फ अकेले में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के सामने ही अपना बयान दर्ज करा सकती है। इसके अलावा अगर कोई महिला पुलिस अधिकारी है तो यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला उनके सामने भी अपना बयान दे सकती है.
दहेज के खिलाफ अधिकार
शादी के समय या उसके बाद लड़के के परिवार वाले या लड़का खुद दहेज की मांग करता है तो लड़की के परिवार वालों को मजबूरी में दहेज देने की जरूरत नहीं है. एक महिला को यह अधिकार है कि वह इसकी शिकायत कर सकती है. IPC के Section 304B और 498A, के तहत दहेज का आदान-प्रदान और इससे जुड़े उत्पीड़न को गैर-कानूनी व अपराधिक करार दिया गया है.
जानकारी है जरूरी
महिलाएं काफी प्रगति कर रही हैं और वो आगे बढ़ना चाहती हैं, लेकिन कई महिलाएं ऐसी हैं जो अधिकारों की जानकारी के अभाव में वो पीछे रह जाती हैं. यूं तो उनके लिए कई अधिकार है, लेकिन कुछ राइटस् ऐसे भी हैं जो उन्हें याद रखना बेहद जरूरी है. इन सात अधिकारों के अलावा और भी अधिनियम व अधिकार है जो हर महिला को जानने की जरूरत है.