जीवन के हर पहलू को गहरे से छूता है जयशंकर प्रसाद का साहित्य

Jaishankar Prasad Jayanti 2025: जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्धकहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार और निबंधकार माने जाते हैं. इसके अतिरिक्त, वह हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक हैं. अपनी अद्वितीय रचनाओं के द्वारा उन्होंने हिंदी साहित्य को अत्यधिक समृद्ध किया है.

By Shaurya Punj | January 30, 2025 11:51 AM
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डॉ अनीता कुमारी, युवा लेखिका
(लेखिका ‘जयशंकर प्रसाद की कथा साहित्य में स्त्री चेतना’ विषय की शोधार्थी रही हैं)

Jaishankar Prasad Jayanti 2025: हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार, कवि और उपन्यासकार जयशंकर प्रसाद का नाम भारतीय साहित्य में मील का एक पत्थर माना जाता है. 30 जनवरी, 1889 को वाराणसी में जन्मे जयशंकर जी ने अपने साहित्यिक कार्यों के माध्यम से भारतीय समाज, संस्कृति और जीवन के गहरे पहलुओं को उजागर किया. उनका साहित्य आज भी न केवल भारतीय साहित्य प्रेमियों के लिए, बल्कि समकालीन समाज के लिए भी अत्यंत प्रासंगिक है.

छायावाद के आधार स्तंभों में से एक जयशंकर प्रसाद के जीवन और कृतित्व में एक गहरा संतुलन और संवेदनशीलता की झलक मिलती है. उनका साहित्य जीवन के हर पहलू को छूता है, चाहे वह प्रेम हो, संघर्ष हो, या फिर समाज और संस्कृति के मूल्य. उनका लेखन समाज में सकारात्मक बदलाव की प्रेरणा भी देता है.

प्रसाद का साहित्यिक कृतित्व विशेष रूप से काव्य और नाटक में परिलक्षित होता है. अपने प्रमुख उपन्यास ‘कंकाल’ में जीवन और मृत्यु के प्रतीकों के माध्यम से उन्होंने मानव अस्तित्व के बारीक पहलुओं पर विचार किया. इसमें जीवन की अस्थिरता और मृत्यु के अपरिहार्य सत्य को स्वीकार किया, जो आज के समय में भी हमें जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने का अवसर प्रदान करता है- ‘सभी कुछ नश्वर है यहां, मृत्यु ही सर्वव्यापी है…’

‘कंकाल’ की ये पंक्तियां जीवन और मृत्यु के रिश्ते को स्पष्ट करती हैं, जिसमें उन्होंने बताया कि मृत्यु जीवन का एक शाश्वत सत्य है और इसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. आज जब लोग भौतिक सुख-सुविधा के पीछे भाग रहे हैं, प्रसाद की यह सिखावन हमें रुक कर आत्ममंथन के लिए विवश करता है.

कविताओं में नारी के स्वरूप की गहराई

प्रसाद के साहित्य में नारी के स्वरूप की गहराई भी झलकती है. उन्होंने नारी को समाज की सशक्त आधारशिला के रूप में प्रस्तुत किया. ‘नारी’ कविता में नारी की शक्ति और उसकी संघर्षशीलता को वे महत्व देते हैं- ‘नारी की शक्ति, हृदय की बात,वह शक्ति नहीं, जो बंदी हो रात…’ उन्होंने नारी के कर्तव्य, जिम्मेदारियां और आत्मनिर्भरता को अपनी रचनाओं में बखूबी समाहित किया है. आज जब समाज में महिलाओं के अधिकारों की बात की जाती है और लिंग समानता के लिए संघर्ष हो रहा है, प्रसाद की रचनाएं उस आधुनिक सोच को बल देती हैं, जो नारी को अपनी पूरी ताकत और आत्म-सम्मान के साथ जीने का साहस देती है.

प्रभावशाली नाट्य लेखन

प्रसाद का नाट्य लेखन भी उतना ही प्रभावशाली था. प्रसिद्ध नाटक ‘स्कंदगुप्त’ में उन्होंने भारतीय इतिहास की एक महान गाथा को दर्शाया. शासक स्कंदगुप्त के माध्यम से आदर्श शासक की छवि प्रस्तुत की, जो न केवल अपनी प्रजा के प्रति उत्तरदायी होता है, बल्कि राष्ट्र की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित करता है. वहीं इसमें स्त्री पात्रों का चित्रण उनके संघर्ष, साहस और सम्मान की बात करता है. ‘मधुराणी’ और ‘पद्मिनी’ जैसे पात्र समाज की रूढ़िवादी विचारधाराओं से बाहर अपनी पहचान बनाते हैं. इस नाटक की गूढ़ता और विचारशीलता आज भी हमें यह सिखाती है कि किसी भी समाज और राष्ट्र के निर्माण में न्याय, नैतिकता और कर्तव्य का अत्यंत महत्व होता है.

प्रसाद के काव्य और नाटकों में भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक दर्शन का भी प्रमुख स्थान है. उनके नाटक ‘चिन्ह’ और ‘कन्या’ में भारतीय संस्कृतियों और परंपराओं की रक्षा का विचार प्रकट हुआ है. आज के दौर में जब भारतीय समाज अपनी जड़ों से दूर हो रहा है और पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव बढ़ रहा है, प्रसाद की रचनाएं हमें भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को पुनः पहचानने और उस मूल्य को स्थापित करने की प्रेरणा देती हैं.

‘सत्य के मार्ग से न हटो’

जयशंकर प्रसाद का जीवन और कृतित्व समाज और संस्कृति के प्रतीक के रूप में कार्य करता है. उन्होंने साहित्य के माध्यम से न केवल मानवता, धर्म, और संस्कृति की रक्षा की, बल्कि समाज को जागरूक और सशक्त बनाने का भी प्रयास किया. उनकी रचनाएं आज भी आम जनमानस के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत हैं, जो जीवन, संस्कृति और समाज के प्रति गहरी समझ और विचारशीलता को प्रकट करती हैं. आज जब समाज में समानता, संवेदनशीलता और नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, प्रसाद की रचनाएं हमें एक आदर्श समाज के निर्माण की दिशा में सोचने पर मजबूर करती हैं.

साथ ही यह सशक्त संदेश भी देती हैं कि हमें किसी भी स्थिति में सत्य के मार्ग से विचलित नहीं होना चाहिए, जैसा कि उन्होंने अपनी एक प्रसिद्ध पंक्ति में कहा है-

‘चाहे किसी भी पथ पर चलो, सत्य के मार्ग से नहीं हटना चाहिए.’

यह पंक्ति उनके जीवन और लेखन के मूल सिद्धांत को दर्शाती है, जो हमें अपने जीवन में सत्य, नैतिकता और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है.

जयशंकर प्रसाद का योगदान भारतीय साहित्य में अनमोल रहेगा और उनके विचारों और रचनाओं का प्रभाव आने वाली पीढ़ियों तक बना रहेगा. उनका साहित्य केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि आज के समय में भी प्रासंगिक और मार्गदर्शक है, जो समाज को निरंतर जागरूक और सशक्त बनाने का कार्य करता रहेगा.

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