Jallianwala bagh massacre 104th year anniversary: जलियांवाला बाग भारत की आजादी के इतिहास की वो दुखद घटना, जिसके बारे में सोचते ही हर किसी की रूह कांप उठती है. 13 अप्रैल 1919 के दिन पंजाब के अमृतसर (Amritsar) में स्वर्ण मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित जलियांवाला बाग (Jallianwala Bagh) में निहत्थे मासूमों का कत्लेआम किया गया था. यह वह दिन था जब अंग्रेजों ने निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई थीं. जलियांवाला बाग की इस घटना को अमृतसर हत्याकांड के रूप में भी जाना जाता है. इस नरसंहार के 104 साल बीत चुके हैं. लेकिन जख्म एकदम ताजा हैं. इस दर्दनाक दिन को भारतीय इतिहास की काली घटना कहा जाता है. क्यों हुआ था जलियांवाला बांग हत्याकांड? इस दिन का इतिहास, क्या था रॉलेट एक्ट जानें.
जलियांवाला बाग नरसंहार का सबसे बड़ा कारण रोलेट एक्ट था, जिसे 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभरते राष्ट्रीय जन आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से लागू किया गया था. रॉलेट एक्ट को जलियांवाला बाग की घटना से करीब एक महीने पहले 8 मार्च को ब्रिटिश हकूमत ने पास किया था. इस अधिनियम को लेकर पंजाब सहित पूरे भारत में जन विरोध शुरू हुआ. इसी के विरोध प्रदर्शन के लिए अमृतसर में, जलियांवाला बाग में प्रदर्शनकारियों का समूह इकट्ठा हुआ. विरोध शांति पूर्ण था जिसके लिए इस सार्वजनिक बाग में लोग इकट्ठा हुए थे. इस विरोध प्रदर्शन में पुरुष, महिलाओं के साथ बच्चे भी मौजूद थे. लेकिन क्रूर अंग्रेज जनरल रेजिनल्ड डायर के नेतृत्व में सैनिकों ने जलियांवाला बाग में प्रवेश किया और यहां के एकमात्र निकास द्वार को बंद कर दिया. इसके बाद डायर ने सैनिकों को वहां मौजूद निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाने का आदेश दे दिया. ऐसा कहा जाता है कि ये गोलाबारी तब तक जारी रही, जब तक कि सैनिकों के गोला-बारूद खत्म नहीं हो गए. इस घटना में कितने लोग शहीद हुए, इसका आज तक पता नहीं लगाया जा सकता. लेकिन कहा जाता है करीब 400 से 1,000 लोग मारे गए और 1,200 से अधिक लोग इस घटना में घायल हुए थे.
रॉलेट एक्ट एक ऐसा कानून था जिसके जरिए ब्रिटिश सरकार को भारतीयों को बिना मुकदमा चलाये दो साल तक जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया था. इस कानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने तक का अधिकार समाप्त कर दिया गया था. राजद्रोह के मुकदमे की सुनवाई के लिए एक अलग न्यायालय स्थापित किया गया था, जिसमें जजों को बिना जूरी की सहायता के ही सुनवाई करने का अधिकार दे दिया गया था. जिस व्यक्ति पर मुकदमा चलता था उसे मुकदमे के फैसले के बाद किसी उच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार नहीं था. इस एक्ट के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार मिल गया था कि वो बलपूर्वक प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार छीनकर किसी भी व्यक्ति को जेल भेज सकती थी. यहां तक कि उसे देश से निष्कासित कर सकती थी. रोलेट एक्ट को काला कानून के नाम से भी जाना जाता है.
जलियांवाला बाग नरसंहार की घटना को आज 104 साल बीत चुके हैं, लेकिन इसके जख्म बिल्कुल ताजा हैं. ब्रिटिश सरकार के इस भयानक करतूत का सबूत आज भी वहां की दीवारों पर मौजूद है. ब्रिटिश सैनिकों ने जब गोलीबारी की थी तो अनेकों गोलियां दीवारों में जा घुसी थीं. उन गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं और आसानी से देखे जा सकते हैं.