आज का इतिहास: जलियांवाला बाग नरसंहार, बैसाखी पर सैकड़ों लोगों पर चलाईं गई थी अंधाधुंध गोलियां
Jallianwala Bagh Massacre Day: 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था. हर भारतीय के लिए जलियांवाला बाग हत्याकांड बेहद दर्दनाक घटना है, जिसमें खून की नदियां बह गईं. कुआं भारतीयों की लाशों से पट गए और मौत का वह मंजर हर किसी की रूह को चोटिल कर गया.
Jallianwala Bagh Massacre Day: भारत के इतिहास में जालियांवाला बाग हत्याकांड एक ऐसा मंजर था जिसे कोई पत्थर दिल इन्सान भी याद करके सहम जाता है. जलियांलावा बाग कांड के 103 साल आज यानी 13 अप्रैल 2022 को पूरे हो जाएंगे. इस दिन बैसाखी के पर्व पर पंजाब के अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश बिग्रेडियर रेजीनॉल्ड डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवा दी थीं.
क्यों हुआ था जलियांवाला बाग नरसंहार?
दरअसल, उस दिन जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ एक सभा का आयोजन किया गया था. हालांकि इस दौरान शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था. लेकिन कर्फ्यू के बीच हजारों लोग सभा में शामिल होने पहुंचे थे. कुछ लोग ऐसे भी थे जो बैसाखी के मौके पर अपने परिवार के साथ वहीं लगे मेले को देखने गए थे.
जब ब्रिटिश हुकूमत ने जलियांवाला बाग पर इतने लोगों की भीड़ देखी, तो वह बौखला गए. उनको लगा कि कहीं भारतीय 1857 की क्रांति को दोबारा दोहराने की ताक में तो नहीं. ऐसी नौबत आने से पहले ही वह भारतीयों की आवाज कुचलना चाहते थे और उस दिन अंग्रेजों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी. सभा में शामिल नेता जब भाषण दे रहे थे, तब ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर वहां पहुंच गए. कहा जाता है कि इस दौरान वहां 5000 लोग पहुंचे थे। वहीं जनरल डायर ने अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ बाग को घेर लिया। उन्होंने वहां मौजूद लोगों को चेतावनी दिए बिना ही गोलियां चलानी शुरू कर दी.
ऐसे लिया गया था जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला
जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए 13 मार्च, 1940 को ऊधम सिंह लंदन गए. वहां उन्होंने कैक्सटन हॉल में डायर को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया. ऊधम सिंह को 31 जुलाई, 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया. उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है.