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छप्पन भोग के पीछे की कथा
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जन्माष्टमी का सबसे लोकप्रिय अनुष्ठान
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छप्पन भोग में ये है शामिल
जन्माष्टमी एक जीवंत हिंदू त्योहार है जो भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भगवान कृष्ण के जन्म का जश्न मनाता है. पूरे भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, यह आमतौर पर अगस्त या सितंबर में पड़ता है जहां भक्त इस दिन विभिन्न रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों में शामिल होते हैं. बहुत से लोग व्रत रखते हैं, और बाल गोपाल के स्वागत के लिए अपने मंदिरों को खूबसूरती से सजाते हैं, जैसे हम एक नवजात शिशु का स्वागत करते हैं.
जन्माष्टमी का मुख्य आकर्षण आधी रात का उत्सव है, जो मथुरा की जेल की कोठरी में आधी रात को भगवान कृष्ण के जन्म की याद दिलाता है. जन्म का जश्न भक्ति गीत गाकर, कृष्ण मंत्रों का जाप करके और अंत में आरती करके मनाया जाता है. बाद में, भगवान कृष्ण के बाल गोपाल रूप को पंचामृत से स्नान कराया जाता है और मूर्ति को फिर से नए कपड़े और आभूषणों से सजाया जाता है. फिर बाल गोपाल को घर में बनी मिठाई खिलाई जाती है. बाद में चरणामृत और मिठाइयां भक्तों को प्रसाद के रूप में दी जाती हैं. यह त्यौहार विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों के बीच एकता और भक्ति को बढ़ावा देता है, जिससे यह एक आनंददायक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध अवसर बन जाता है. लोग अपने बच्चों को श्री कृष्ण और राधा रानी के रूप में भी सजाते हैं.
जन्माष्टमी के अवसर पर, एक लोकप्रिय अनुष्ठान है जिसे लोग आधी रात को करते हैं और वह है भगवान कृष्ण को छप्पन भोग या 56 खाद्य पदार्थों का भोग लगाना. यह प्रथा सदियों से चली आ रही है और इस थाली की विशेष मान्यता है, यही वजह है कि अब यह थाली कई मिठाई की दुकानों में मिल जाएगी. जितना हम सभी को जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण को इतने सारे खाद्य पदार्थ चढ़ाना पसंद है, वहीं ऐसे लोग भी हैं जो अभी भी नहीं जानते हैं कि हम बाल गोपाल को छप्पन भोग क्यों चढ़ाते हैं. यहां इसकी कहानी और इस छप्पन भोग में शामिल सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों के बारे में जानकारी दी गई है.
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रज के लोग स्वर्ग के राजा इंद्र की पूजा के लिए एक बड़ा आयोजन कर रहे थे. छोटे कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि यह आयोजन क्यों किया जा रहा है. तब नंद बाबा ने कहा कि इस पूजा से देवराज इंद्र प्रसन्न होंगे और उत्तम वर्षा करेंगे. नन्हें कृष्ण ने कहा कि वर्षा तो इंद्र का काम है, उसकी पूजा क्यों करें? अगर पूजा करनी है तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करें क्योंकि इससे फल और सब्जियां प्राप्त होती हैं और जानवरों को चारा मिलता है. तब छोटे कृष्ण की बात सभी को पसंद आई और सभी लोग इंद्र की जगह गोवर्धन की पूजा करने लगे. इंद्र देव ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित हो गए. क्रोधित इंद्र देव ने ब्रज में कहर बरपाया और भारी बारिश कराई और पूरे शहर में हर तरफ पानी ही पानी नजर आने लगा. ऐसा दृश्य देखकर ब्रजवासी भयभीत हो गए, तब छोटे कृष्ण ने कहा कि गोवर्धन की शरण में जाओ, वही हमें इंद्र के प्रकोप से बचाएंगे. कृष्णजी ने पूरे गोवर्धन पर्वत को अपने बाएं हाथ की उंगली से उठा लिया और सभी से कहा कि वे अपनी-अपनी लाठियों का सहारा लें और पूरे ब्रज की रक्षा करें.
भगवान श्रीकृष्ण 7 दिनों तक बिना कुछ खाए गोवर्धन पर्वत को उठाए रहे. कुछ देर बाद जब इंद्र देव शांत हुए तो आठवें दिन बारिश रुकी और सभी ब्रजवासी पर्वत से बाहर आ गए. सब समझ गए कि कान्हा ने सात दिन से कुछ नहीं खाया है. तब सभी ने मां यशोदा से पूछा कि वह अपने लल्ला को कैसे खाना खिलाती हैं और उन्होंने सभी को बताया कि वह अपने कान्हा को दिन में आठ बार (आठ घंटे) खाना खिलाती हैं. इस प्रकार, गोकुल निवासियों ने कुल छप्पन प्रकार के भोजन (प्रत्येक दिन के लिए 8 व्यंजन) तैयार किए जो छोटे कृष्ण को पसंद थे और इस तरह छप्पन भोग का कॉन्सेप्ट शुरू हुआ. मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग लगाने से वे प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
छप्पन भोग में शामिल व्यंजन हैं- माखन मिश्री, खीर, रसगुल्ला, जीरा लड्डू, जलेबी, रबड़ी, मालपुआ, मोहनभोग, मूंग दाल का हलवा, घेवर, पेड़ा, काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, पंचामृत, शक्कर पारा, मठरी, चटनी, मुरब्बा, आम, केला, अंगूर, सेब, आलूबुखारा, किशमिश, पकोड़े, साग, दही, चावल, कढ़ी, चीला, पापड़, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, दूधी की सब्जी, पूरी, टिक्की, दलिया, घी, शहद, सफेद मक्खन , ताजी क्रीम, कचौरी, रोटी, नारियल पानी, बादाम का दूध, छाछ, शिकंजी, चना, मीठे चावल, भुजिया, सुपारी, सौंफ, पान.
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