बच्चे को बच्चा ही समझिए, घर पर देखने की जिम्मेवारी है आपकी
आजकल के बच्चों के पीठ पर हमेशा बैग नजर आता है. सुबह स्कूल जाने के समय तो जरूरी है, फिर स्कूल से आकर बैग टंग जाता है, ट्यूशन जाने के लिये. आजकल लगता है कि उनके बैग का बोझ इतना है कि शाम के समय दोस्तों के साथ बाहर खेलना-कूदना भी बच्चे भूल ही गये हैं.
शेफालिका सिन्हा
खेल के मैदान में बच्चों की संख्या कम होती जा रही है. गली-मुहल्ले में अब पहले जैसी बच्चों की धमाचौकड़ी नहीं दिखती. यहां तक कि घर के अंदर भी उनका शोरगुल कमता जा रहा है. आपने कभी महसूस किया कि ऐसा क्यों है? माना कि यह प्रतियोगिता का दौर है, मगर बच्चे मशीन नहीं हैं कि उन्हें ‘सबसे तेज’ बनाने के चक्कर में हम कोई भी तरीका अपना लें. उनके बालमन को समझना होगा और उनकी परवरिश में अपनी उचित भागीदारी निभानी होगी, तभी हम उन्हें आगे बढ़ता हुआ देख सकते हैं. यह काम केवल स्कूल, कोचिंग या ट्यूशन के भरोसे नहीं हो सकता. इस मसले पर चिंता जताते हुए एक शिक्षिका अभिभावकों के लिए यहां कुछ बातें रख रही हैं.
आजकल के बच्चों के पीठ पर हमेशा बैग नजर आता है. सुबह स्कूल जाने के समय तो जरूरी है, फिर स्कूल से आकर बैग टंग जाता है, ट्यूशन जाने के लिये. आजकल लगता है कि उनके बैग का बोझ इतना है कि शाम के समय दोस्तों के साथ बाहर खेलना-कूदना भी बच्चे भूल ही गये हैं. अभिभावक भी इन चीजों पर ध्यान नहीं देते. पढ़ाई तो हमारे समय भी होती थी, पर स्कूल से लौटकर आने के बाद का समय हमारा अपना होता था, जिसमें बाहर चाहे वह किसी के घर के बाहर के बरामदे में ही क्यों न हो सभी जुटते थे, दौड़ते और खेलते थे. आज अगर खाली समय बच्चों को मिलता भी है, तो उनके हाथों में मोबाइल आ जाता है.
यहां बात हो रही है, नर्सरी से आठवीं क्लास तक पढ़ने वाले बच्चों के बारे में. यही समय होता है जब बच्चे की पढ़ाई की नींव मजबूत हो सकती है. आज छोटे बच्चों को भी अभिभावक स्कूल भेज कर और ट्यूशन पढ़ाकर निश्चित हो जाते हैं. इन बच्चों को अलग-अलग विषयों का ट्यूशन लगता है, जबकि सोचने की बात है कि केवल ट्यूशन मेंटीचर से पढ़कर बच्चा नहीं सीख सकता. उसे खुद से सोचना और पढ़ना जरूरी है. बच्चों के लिए सबसे जरूरी है, माता-पिता का साथ और समय. अब दोनों नौकरी पेशा हैं, तो समस्या आती है. लेकिन केवल दूसरे के भरोसे बच्चों को छोड़ आप निश्चिंत नहीं बैठ सकते.
घर पर देखने की जिम्मेवारी है आपकी
पढ़ाई सीखने की सतत प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में शिक्षक और माता पिता का सहयोग बेहद जरूरी है. यह सिर्फ किसी एक के भरोसे संभव नहीं है. विद्यालय में एक शिक्षक 40 बच्चों को एक पीरियड के 40 मिनट के क्लास में एक मिनट ही दे पायेगा. लेकिन बच्चे को घर पर भी सही तरीके से देखने वाला और पढ़ाने वाला हो, तो बच्चा आसानी से समझ जाता है. उसकी पढ़ाई में, उसकी जिज्ञासा में आपको भी शामिल होना होगा. हां, अगर माता-पिता असमर्थ हैं, तो ट्यूटर रखना ही होगा.
बच्चे की कमजोरी को जानिए
अब सारे बच्चे भी एक दिमाग वाले नहीं होते. कुछ बच्चे जल्दी याद कर लेते हैं, तो कुछ याद नहीं कर पाते. कुछ बच्चे याद तो कर लेते हैं, समझ जाते हैं, पर ठीक से लिख नहीं पाते. कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं कि वे पढ़ना ही नहीं चाहते. सभी बच्चों को एक ही तरह से पढ़ाया भी नहीं जा सकता. इसके लिए शिक्षक को भी ध्यान देना होता है. अभिभावक को भी अपने बच्चे की कमजोरी का ज्ञान होना चाहिए. तभी उसे दूर कर पायेंगे. जबकि आजकल तो कई अभिभावक बच्चे पर ध्यान नहीं देते, सारा ठीकरा टीचर पर फोड़ दिया जाता है. विद्यालय जाकर अभिभावक शिक्षक से ही लड़ लेता है, ‘‘हम इतना फीस देते हैं, बच्चा क्यों नहीं सीखता, यह आपकी जिम्मेदारी है.’’
बहुत अभिभावक तो बच्चे के सामने ही शिक्षक को भला-बुरा कहने लगते हैं. ऐसे में बच्चों को शह मिल जाती है. लेकिन अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा अच्छा करे, तो स्कूल और ट्यूशन के अलावा अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकालकर आधे घंटे भी बच्चे के साथ बैठना होगा. उसकी उस दिन की पढ़ाई और एक्टिविटी पर बातें करनी होंगी. इससे बच्चे के साथ भावनात्मक लगाव बढ़ता है, जो बच्चे के स्वस्थ मानसिक विकास के लिए बहुत जरूरी है.
अभिभावकों से अपील
बच्चे को बच्चा ही समझिए, मशीन नहीं. एक स्वस्थ माहौल में ही एक पौधा फल-फूल सकता है. इसी तरह बच्चों को भी खुली हवा और खुला माहौल मिलना चाहिए. इतना भी दबाव मत डालिए कि डर से बालमन कुंठित हो जाये. छोटा-सा पौधा है, उसे पल्लवित होने दीजिए. अपने बच्चों से संवाद बनाये रखिए. उसकी दुनिया में शामिल होइए. यह कोई रॉकेट साइंस नहीं. आपके प्यार-दुलार के साथ आपका थोड़ा-सा सहयोग, थोड़ा-सा समय उसे सही दिशा दे सकता है. इसमें आपकी भागीदारी सबसे ज्यादा मायने रखती है.
उचित मार्गदर्शन कैसे करें
बच्चे का उचित मार्गदर्शन कैसे करें, इसके लिए शिक्षक और अभिभावक, दोनों को ही कुछ बातों पर ध्यान देना होगा, जैसे –
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घर पर एक निश्चित समय तय कर उसके स्कूल में क्या पढ़ाई हुई, यह देखना होगा. क्या होमवर्क मिला है, उसे करवाना होगा.
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बच्चे की बेसिक पढ़ाई पर ध्यान दें. बोल कर पढ़ना चाहे विषय कोई भी हो, बहुत जरूरी है. प्रतिदिन लिखने का अभ्यास करवाना चाहिए.
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शिक्षकों को तो आजकल खेल-खेल में सिखाने-पढ़ाने की ट्रेनिंग दी जा रही है, वास्तव में यह फायदेमंद है.
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बच्चे की कमजोरी पर विशेष ध्यान दें. अगर गणित में मन नहीं लगता या डर लगता है या फिर लिखने में बच्चा कमजोर है या जल्दी भूल जाता है, तो उसे पढ़ाने के लिए मनोरंजक तरीका अपनाना होगा.
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पढ़ाई के साथ हाबी के तौर पर ड्रॉइंग, पेंटिंग, संगीत, डांस आदि करवाया जा सकता है, लेकिन याद रखना होगा कि पढ़ाई सबसे जरूरी है.
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बहुत से अभिभावक एक साथ कई सारे हॉबी क्लासेज लगा देते हैं, जो सही नहीं है.
(लेखिका सेवानिवृत्त शिक्षिका है)