Jitiya Vrat: जितिया पूजा, जिसे जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है. इस व्रत का मुख्य उद्देश्य संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना करना है. जितिया व्रत आमतौर पर अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि को किया जाता है. इस व्रत की तैयारी और पूजा विधि बहुत ही महत्वपूर्ण होती है. आइए जानते हैं इस व्रत की तैयारी कैसे शुरू करें और किन बातों का ध्यान रखें. जितिया व्रत (या जीवित्पुत्रिका व्रत) एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए रखा जाता है. यह व्रत खासतौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है. यह पर्व तीन दिनों तक चलता है, जिसमें अलग-अलग दिन अलग विधियां की जाती हैं.
नहाय-खाय (पहला दिन)
व्रत का पहला दिन नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है. इस दिन व्रती महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं, जो पवित्रता का प्रतीक है. स्नान के बाद वे एक विशेष सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं, जिसमें अरवा चावल, अरहर की दाल, और बिना लहसुन-प्याज वाली सब्जियां होती है. कुछ क्षेत्रों में मछली का सेवन शुभ माना जाता है, लेकिन यह स्थानीय मान्यताओं पर निर्भर करता है.
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निर्जला व्रत (दूसरा दिन)
नहाय-खाय के अगले दिन मुख्य व्रत रखा जाता है, जिसमें निर्जला उपवास किया जाता है, यानी न तो पानी पिया जाता है और न ही भोजन किया जाता है. यह व्रत अत्यंत कठोर होता है और इसे बड़ी श्रद्धा से किया जाता है. महिलाएं इस दिन भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं, जो बच्चों की रक्षा के देवता माने जाते हैं.
पारण (तीसरा दिन)
व्रत का समापन “पारण” के दिन होता है. इस दिन व्रती महिलाएं सूर्योदय के बाद पूजा-अर्चना के बाद व्रत तोड़ती हैं. पारण के लिए नोनिया साग, तुरी की सब्जी, रागी की रोटी, और अरबी जैसी पारंपरिक भोजन सामग्री बनाई जाती है. इस प्रक्रिया में पहले देवताओं को भोग लगाया जाता है, उसके बाद महिलाएं खुद भोजन ग्रहण करती हैं.
व्रत के नियम
नहाय-खाय के दिन सात्विक भोजन का ही सेवन किया जाता है. मांसाहार और तामसिक भोजन से बचना चाहिए. निर्जला व्रत में दिन-रात कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता. – पारण के दिन व्रत तोड़ने से पहले स्नान करके भगवान जीमूतवाहन की पूजा आवश्यक है. यह व्रत माताओं के लिए खास तौर पर महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसके माध्यम से वे अपने बच्चों के लिए दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करती हैं.
पूजन सामग्री का संग्रह करें
मिट्टी या पीतल का दीपक
घी या तेल (दीपक जलाने के लिए)
धूप, कपूर और अगरबत्ती
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और गंगा जल)
फूल और माला
रक्षा सूत्र या कलावा
अक्षत (चावल)
धनिया, जीरा और अन्य अनाज
कुश की अंगूठी
मिट्टी या तांबे का कलश (जल से भरा हुआ)
जितिया व्रत की कथा पुस्तक
पान, सुपारी, लौंग, इलायची और नारियल
पूजन सामग्री को समय से पहले इकट्ठा कर लें ताकि पूजा के दिन कोई असुविधा न हो.