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Kabirdas Jayanti 2022: आज मनाई जा रही है कबीरदास जयंती, यहां देखें उनके प्रसिद्ध दोहे

Kabirdas Jayanti 2022: कबीर दास जी ने मध्यकालीन भारत के सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन में अमूल्य योगदान दिया. आज 14 जून 2022 को संत कबीरदास की 645वाँ जयंती मनाई जा रही है. कबीरदास जी के दोहे बहुत सुंदर और सजीव हैं, उनकी रचनाएं जीवन के सत्य को प्रदर्शित करती हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 14, 2022 6:31 AM
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Kabirdas Jayanti 2022 Katha: कबीरदास जयंती 14 जून 2022 को मनाई जाएगी. ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को काशी में 1398 में उनका जन्म हुआ था. इस दिन संत कबीरदास के अनुयायी उन्हें याद करते हैं और उनकी कविताओं का पाठ करते हैं. इस साल यानी की 2022 में संत कबीरदास की 645वाँ जयंती मनाई जायेगी. हम सब भी संत कबीरदास द्वारा कही गयी बातों से बहुत कुछ शिक्षा प्राप्त कर सकतें हैं.

कबीर दास जी के दोहों का महत्व

कबीर दास जी (Kabirdas Jayanti 2022) ने मध्यकालीन भारत के सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन में अमूल्य योगदान दिया. इन्होंने अपने दोहों, विचारों और जीवनवृत्त से तत्कालीन सामजिक, आर्थिक, धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात किया था. इन्होंने मध्यकालीन भारत के तत्कालीन समाज में व्याप्त अंधविश्वास, रूढ़िवाद, पाखण्ड का घोर विरोध किया.

कबीर दास जी (Kabirdas Jayanti 2022) ने उस काल में भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों और सामजिक लोगों के बीच आपसी मेल-जोल और भाईचारे का प्रशस्त किया. हिंदू, इस्लाम सभी धर्मों में व्याप्त कुरीतियों और पाखण्ड़ो पर कड़ा प्रहार करते हुए हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा का विरोध किया.

कबीरदास जी के प्रसिद्ध दोहे (Kabir Das ke Dohe Hindi)

कबीरदास जी के दोहे बहुत सुंदर और सजीव हैं, उनकी रचनाएं जीवन के सत्य को प्रदर्शित करती हैं. भक्तिकाल के कवि संत कबीरदास की रचनाओं में भगवान की भक्ति का रस मिलता है. कबीरदास जयंती पर आप यहां संत कबीरदास के दोहे पढ़ सकते हैं.

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय।।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

साई इतना दीजिये तामें कुटुम समाये।
मैं भी भूखा न रहूँ,साधु न भूखा जाये।।

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ।
अति का भला न बरसना, अति की भली न घूप ।।

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