कहां से शुरू होती है Kailash Mansarovar की यात्रा, जाने से पहले समझ लें ये जरूरी बातें

Kailash Mansarovar Yaatra 2023: साल में एक बार कैलश मानसरोवर की यात्रा प्रारंभ की जाती है. जितने भी श्रद्धालु बाबा का दर्शन करना चाहते है वो यहां जाते है माना जाता है, की जो भी भक्त कैलाश की यात्रा कर लेता है तथा मानसरोवर में स्नान कर लेता है उसके सारे पाप दूर हो जाते हैं.

By Shaurya Punj | July 29, 2023 10:59 AM

सावन का महीना चल रहा है मान्यता के अनुशार भगवान शिव भगतों के साथ रहने धरती पर आते हैं और इस सावन के महीने में अपने भक्तों कि सारी मान्यताओं की पूर्ति भी करते हैं. सावन के महीने में लोग बाबा को मनाने में लगे रहते हैं सनातन धर्म के लिए ये पावन महीना बहुत ही महत्वपूर्ण होती है. कई लोग इन दिनों में देवघर जाते हैं तप कोई उज्जैन सभी अपने अपने स्वेच्छा से बाबा के 12 ज्योतिर्लिंग की दर्शन को जाते हैं हम सभी जानते है की बाबा का निवाश स्थान कैलाश है जहां बाबा माता पार्वती,गणेश, कार्तिके, नंदी और अपने गण प्रेत के साथ रहते हैं. कैलाश के समीप में एक झील है, जिसका नाम मानसरोवर है. साल में एक बार कैलश मानसरोवर की यात्रा प्रारंभ की जाती है. जितने भी श्रद्धालु बाबा का दर्शन करना चाहते है वो यहां जाते है माना जाता है की जो भी भक्त कैलाश की यात्रा कर लेता है, तथा मानसरोवर में स्नान कर लेता है, उसके सारे पाप दूर हो जाते हैं और मृत्य के पश्चात उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

सितंबर से शुरू होगी मानसरोवर की यात्रा

सितंबर से कैलाश मानसरोवर की यात्रा प्रारंभ हो रही है आपको बतला दें की जीतने भी लोग बाबा का दर्शन करने के ईछुक है वो अपना रजिस्ट्रेशन करवा पाएंगे और बाबा के दशन के लिए कैलाश जा पाएंगे कैलाश में जिसकी ऊचाई 6600 मीटर से भी अधिक है और इस पर्वत को चमत्कारी भी माना जाता है. कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए लाखों की तदाद में श्रद्धालु जाते हैं और बाबा का दर्शन कर के पुण्य के भागी बनते हैं.अगर आप भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा मरण जाना चाहते है तो सुविधा केंद्र में जा के अपना और अपने दोस्तों का सितंबर के प्रारंभ में ही रजिस्ट्रेशन करवाए.

मानसरोवर की खूबी

कैलाश के समीप स्थित मानसरोवर झील जहां भगवान शिव तथा कैलाश में निवास कर रहें हर प्राणी स्नान करने जाते हैं, वो झील जो की हर तरफ बर्फ से लदी हुई पहाड़ के बीचों बीच बसा हूआ है वहाँ का पानी कभी नहीं जमता है साथ ही साथ उस झील का पानी बहुत ही मीठा है मान्यता के अनुसार सुबह 3 बजे से 5 बजे के अंतराल में वहां सारे देवता स्नान जारने को उतरते है उस समय को ब्रम्ह मुहूर्त कहा जाता है. ये समय देवताओ का समय माना जाता है. इस समय इस झील में स्नान करने के उपरांत देवतागन त्रिदेव की पूजा करते है और अपने अपने निवाश स्थान को प्रस्थान करते हैं. जो भी श्रद्धालु इस समय पर उस स्थान में मौजूद होते है उन्हे देवताओ का दर्शन प्राप्त होता है.

कैलाश की मान्यता

कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है. इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षसताल झील हैं. यहां से कई महत्वपूर्ण नदियां निकलतीं हैं -ब्रह्मपुर, सिंधु, सतलुज इत्यादि . हिन्दू सनातन धर्म में इसे पवित्र माना गया है. इस तीर्थ को अस्टापद, गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं. कैलाश के बर्फ से आच्छादित 6,638 मीटर (21,778 फुट) ऊंचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है. और इस प्रदेश को मानसखंड कहते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया. श्री भरतेश्वर स्वामी मंगलेश्वर श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत ने दिग्विजय के समय इसपर विजय प्राप्त की. पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था.युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े,सोना , रत्न और याक के पूंछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे. इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहां निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है. जैन धर्म में इस स्थान का बहुत महत्व है. इसी पर्वत पर श्री भरत स्वामी ने रत्नों के 72 जिनालय बनवाये थे.

कैलाश मानसरोवर की परिक्रमा के दौरान आने वाले स्थान

कैलाश की परिक्रमा तारचेन से आरंभ होकर वहीं समाप्त होती है. तकलाकोट से 40 किमी (25 मील) पर मंघाता पर्वत स्थित गुर्लला का दर्रा 4,938 मीटर (16,200 फुट) की ऊँचाई पर है. इसके मध्य में पहले बाईं ओर मानसरोवर और दाईं ओर राक्षस ताल है. उत्तर की ओर दूर तक कैलाश पर्वत के हिमाच्छादित धवल शिखर का रमणीय दृश्य दिखाई पड़ता है. दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं. इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं. प्रवाद है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था. इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचे स्थान है, उनकी ऊँचाई 5,630 मीटर (18,471 फुट) है. इसके निकट ही गौरीकुंड है. मार्ग में स्थान स्थान पर तिब्बती लामाओं के मठ हैं.

रिपोर्ट-वैभव विक्रम

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