भारतीय इतिहास में यूं तो कई ऐतिहासिक दिन हैं, जिनका स्मरण हमें हमारे वीर सैनिकों के साहस और बलिदान के प्रति अपने देशवासियों को याद दिलाता है. इन्ही में से एक ऐसा महत्वपूर्ण दिन है कारगिल विजय दिवस, जो 26 जुलाई को हर साल मनाया जाता है. यह दिन भारतीय सेना के वीर सैनिकों की कारगिल युद्ध में दिखाए गए अद्भुत साहस और समर्पण का स्मरण करता है. इस अद्भुत विजयी घटना के माध्यम से हम अपने वीर सैनिकों की साहस, बलिदान और निस्वार्थ भावना का सम्मान करते हैं. कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को “ऑपरेशन विजय” के तहत खदेड़ दिया था. कारगिल विजय दिवस के अवसर पर आइये जानते है युद्ध से जुड़ी कुछ कहानियां.
पाकिस्तान की घुस्पैठ के कारण हुआ था युद्ध
कारगिल भारतीय राज्य लद्दाख का एक सीमावर्ती क्षेत्र है. क्षेत्र की कई पहाड़ियों पर पाकिस्तानी सेना द्वारा आतंकियों के साथ नियंत्रण रेखा पार करके कई पर्वतों की चोटियों पर कब्जा कर लिया गया था. 3 मई को पहली बार भारतीय सेना को गश्त के दौरान पता चला था कि कुछ लोग वहां पर हरकत कर रहे हैं. कारगिल घुसपैठ के दौरान केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी जिन्हें इस घुसपैठ की सूचना दी गई. सूचना पाने के बाद वाजपेयी सरकार ने सेना को आदेश दिया कि घुसपैठियों को मार भगाया जाए और अपने क्षेत्र को पुन: भारत के कब्जे में लिया जाए. 8 मई 1999 को ही इस युद्ध की नींव पड़ गई थी. करीब 3 महीने चले इस युद्ध में भारत के 562 जवान शहीद हुए और 1363 अन्य घायल हुए थे.
भारतीय सैनिकों ने दिखाया था अद्भुत पराक्रम
यह भारत और पाकिस्तान के बीच एक सशस्त्र संघर्ष था जो लद्दाख के कारगिल जिले और नियंत्रण रेखा (LoC) के साथ अन्य स्थानों पर हुआ था. यह 60 दिनों से अधिक (मई और जुलाई 1999 के बीच) के लिए लड़ा गया था और अंत में भारत ने अपने सभी क्षेत्रों पर फिर से नियंत्रण हासिल कर लिया. 60 दिनों के लंबे संघर्ष में, टाइगर हिल की जीत महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक थी. लड़ाई के दौरान बड़ी संख्या में सैनिकों ने शहादत दी, बावजूद इसके भी भारत मां के वीर सपूतों ने तोपों और छोटे हथियारों से हमले जारी रखे. युद्ध के दौरान हमारे सैनिकों की अद्भुत वीरता और अडिग दृढ़ संकल्प ने दुश्मन को भारतीय पोस्ट से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था. तबसे हर साल, 26 जुलाई को पाकिस्तान की घुसपैठ पर जीत के उपलक्ष्य में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है.
कारगिल वार हीरो विक्रम बत्रा
कारगिल वार की बात हो और वीर कैप्टन बत्रा की बात ना हो, ये संभव नहीं है. युद्ध के दौरान विक्रम बत्रा की बटालियन 13, 6 जून को द्रास पहुंची. 19 जून को कैप्टन बत्रा को प्वाइंट 5140 को फिर से अपने कब्जे में लेने का निदेश मिला. ऊंचाई पर बैठे दुश्मन के लगातार हमलों के बावजूद उन्होंने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए और पोजीशन पर कब्जा किया. उनका अगला अभियान था 17,000 फीट की ऊंचाई पर प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना. 7 जुलाई की रात वे और उनके सिपाहियों ने चढ़ाई शुरू की. अब तक वे दुश्मन खेमे में शेरशाह के नाम से मशहूर हो गए थे. साथी अफसर अनुज नायर के साथ हमला किया, लेकिन एक साथी की मदद के लिये आगे आने पर दुश्मनों ने उनपर गोलियां चलाईं, उन्होंने ग्रेनेड फेंककर पांच को मार गिराया लेकिन एक गोली आकर सीधा उनके सीने में लगी और वे शहीद हो गये. अगली सुबह तक 4875 चोटी पर भारत का झंडा फहरा रहा था. इसे विक्रम बत्रा टॉप का नाम दिया गया. उनके मरणोपरांत उन्हें भारत सरकार द्वारा परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
कारगिल युद्ध से जुड़ी अहम बातें
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3 मई, 1999 को कारगिल में पाकिस्तानी सेना द्वारा घुसपैठ करने की सूचना एक चरवाहे द्वारा भारतीय सेना को दी गई थी.
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भारतीय वायुसेना ने 26 मई को सेना के समर्थन में ऑपरेशन सफेद सागर के तहत अपना हवाई अभियान शुरू किया. जिसमें भारतीय मिग -21, मिग -27 और मिराज -2000 लड़ाकू विमानों ने कारगिल युद्ध के दौरान रॉकेट और मिसाइल दागे.
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भारतीय नौसेना ने तेल और ईंधन की आपूर्ति को रोकने के लिए कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी बंदरगाहों, विशेष रूप से कराची में नाकाबंदी करने के लिए ऑपरेशन तलवार शुरू किया था.
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भारत से घबराए पाकिस्तान ने अमेरिका से हस्तक्षेप करने के लिए कहा, लेकिन तब अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और पाक से कहा कि इस्लामाबाद को नियंत्रण रेखा से अपने सैनिकों को वापस लेना चाहिए.
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सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारतीय पक्ष की आधिकारिक मृत्यु 527 और पाकिस्तानी सेना के 357 से 453 जवान मारे गए थे.
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14 जुलाई को तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा कारगिल युद्ध की जीत की घोषणा की गई थी, लेकिन कारगिल विजय दिवस की आधिकारिक घोषणा 26 जुलाई को की गई थी.