Karwa Chauth Katha in hindi: हर साल महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती है. ये व्रत महिलाएं तीज पूजा की तरह ही निर्जला व्रत रखती है. करवा चौथ व्रत रखने वाली महिलाएं शाम को चंद्रोदय के बाद अर्ध्य दे कर और अपने पति के चेहरे को देखकर उपवास तोड़ती हैं. इस साल करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर को रखा जाएगा. हम लेख के माध्यम से जानेंगे कि हर साल महिलाएं करवा चौथ व्रत की क्या कथा है, क्यों होती है इस व्रत में चांद की पूजा.
करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Katha)
बहुत समय पहले की बात है, इंद्रप्रस्थपुर नगर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था. वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था और उसके सात महान पुत्र और एक बुद्धिमान पुत्री थी जिसका नाम वीरवती था. सात भाइयों की इकलौती बहन होने के कारण उसे न केवल उसके माता-पिता बल्कि उसके भाई भी बहुत लाड़-प्यार करते थे.
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जब वह बड़ी हो गई, तो उसका विवाह एक योग्य ब्राह्मण लड़के से कर दिया गया. विवाह के बाद, जब वीरवती अपने माता-पिता के साथ थी, तो उसने अपनी भाभियों के साथ अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा. करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरवती भूख सहन नहीं कर सकी. कमजोरी के कारण वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी.
सभी भाई अपनी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति को सहन नहीं कर सके. वे जानते थे कि वीरवती पतिव्रता है और जब तक वह चांद नहीं देख लेती, तब तक वह भोजन नहीं करेगी, चाहे इसके लिए उसे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े. सभी भाइयों ने मिलकर बहन का व्रत तुड़वाने के लिए एक योजना बनाई. एक भाई छलनी और दीपक लेकर दूर वट वृक्ष पर चढ़ गया. जब वीरवती को होश आया तो बाकी भाइयों ने उसे बताया कि चांद निकल आया है और उसे चांद देखने के लिए छत पर ले आए.
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वीरवती ने दूर वट वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक देखा और उसे विश्वास हो गया कि पेड़ की झाड़ियों के पीछे चांद निकल आया है. अपनी भूख मिटाने के लिए उसने तुरंत दीपक को अर्घ्य दिया और व्रत तोड़ दिया.
जब वीरवती ने भोजन करना शुरू किया तो उसे कई तरह के अपशकुन मिले. पहले निवाले में उसे बाल मिला, दूसरे निवाले में उसे छींक आई और तीसरे निवाले में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला. पहली बार अपने पति के घर पहुंचने पर उसे अपने पति का शव मिला.
अपने पति का शव देखकर वीरवती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान हुई किसी गलती के लिए खुद को दोषी मानने लगी. वह विलाप करने लगी. उसका विलाप सुनकर इंद्रदेव की पत्नी देवी इंद्राणी वीरवती को सांत्वना देने पहुंचीं.
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वीरावती ने इंद्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन उसे ऐसा क्यों मिला और अपने पति को जीवित करने की भीख मांगी. वीरावती के पश्चाताप को देखकर देवी इंद्राणी ने उसे बताया कि उसने चंद्रमा को अर्घ दिए बिना व्रत तोड़ दिया और इस कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई. इंद्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत सहित पूरे वर्ष में प्रत्येक माह की चौथ का व्रत रखने की सलाह दी और आश्वासन दिया कि उसका पति जीवित वापस आ जाएगा.
इसके बाद वीरावती ने पूरे विश्वास और सभी अनुष्ठानों के साथ मासिक व्रत रखा. अंततः उन व्रतों के पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति वापस मिल गया. जिसके बाद हर साल महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए ये व्रत रखती हैं.
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