जितने अच्छे संगीतकार थे, उतने ही अच्छे एक इंसान भी थे कुमार गंधर्व : आनंद गुप्ता
Musician Kumar Gandharva: कुमार जी कर्मभूमि देवास स्थित संगीत सम्राट रज्जब अली कल्याण समिति के सचिव आनंद गुप्ता कुमार गंधर्व जी से जुड़ी अपनी स्मृतियों को साझा कर रहे हैं.
Musician Kumar Gandharva: पंडित कुमार गंधर्व भारत के मशहूर हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायकों में से एक थे. अपनी अनूठी गायन शैली के लिए जाने जानेवाले कुमार जी ने घराना परंपरा को तोड़ शास्त्रीय संगीत की अपनी शैली विकसित की. हालांकि, उनकी इस शैली की कई लोगों ने आलोचना भी की, लेकिन कोई भी उन्हें शास्त्रीय रूप के साथ प्रयोग करने से नहीं रोक सका. आखिरकार, उनके अनोखे प्रयोग उन्हें महानता के पथ पर ले जाते रहे. पंडित कुमार गंधर्व एक मजबूत व्यक्ति थे, जो अपने आलोचकों के सामने कभी नहीं झुके और गीत-संगीत के क्षेत्र में अपना खास मुकाम बनाया.
वर्ष 1948 में टीबी रोग की वजह से आये देवास
कुमार गंधर्व साल 1948 में मध्यप्रदेश के देवास आ गये. मालवा की समशीतोष्ण जलवायु में उन्होंने स्वास्थ्य लाभ लेना शुरू कर दिया. बीमारी के बाद भी संगीत को लेकर उनका मन अक्सर बेचैन रहता था. वे जिस घर में स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे, वह देवास की बाहरी हिस्से में था. कुमार जी वहां बिस्तर पर पड़े-पड़े मालवी महिलाओं और साधु-संतों को उधर से आते-जाते ध्यान सुना करते थे. कर्नाटक के मूल निवासी होने के बाद भी मालवी लोकगीतों ने उन्हें काफी प्रभावित किया. वहीं से नये कुमार गंधर्व का जन्म हुआ.
तांगों से यात्रा करना काफी पसंद था
कुमार गंधर्व को जानने वाले स्थानीय लोगों का मानना है कि कुमार जी को तांगों से यात्रा करना काफी अच्छा लगता था. अपने आवास से थोड़ी दूर भी जाना हो, तो वे तांगों से ही जाना पसंद करते थे. इसके पीछे भी कुछ खास वजह थी. दरअसल, उन दिनों में देवास में तांगा चलाने वाले लोगों की काफी संख्या थी. लोगों की आजीविका का यह प्रमुख साधन भी था. यही कारण है कि घर से स्टेशन जाना हो या फिर बाजार, वे तांगे से ही जाना पसंद करते थे, जिससे इन लोगों को रोजगार मिल सके. कुमार गंधर्व जितने अच्छे संगीतकार थे, उतने ही अच्छे एक इंसान भी थे. गरीबों और निसहाय लोगों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते थे.
मालवी लोक गीतों को नये-नये रागों में पिरोया
कुमार गंधर्व ने मालवी लोक संगीत को बिल्कुल अनूठी जीवंतता और शक्ति दी. वे अपरिचित रागों का आविष्कार कर अपनी संगीत साधना से जीवंत बनाते थे. उन्होंने लोक धुनों का शास्त्रीय रागों से मेल कराया और नयी बंदिशें तैयार करनी शुरू कीं. इस तरह उन्होंने कबीर के पदों को मालवी लोक धुनों के रंग में उतारा और गाना शुरू किया. स्थानीय मल्हार स्मृति मंदिर के सभागृह में भी उन्होंने कई बार प्रस्तुति दी. मल्हार स्मृति मंदिर में जब भी उनका कोई कार्यक्रम होता था, तो उन्हें सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे. गायन के दौरान आलाप लेने की शैली इतनी अनूठी थी कि दर्शक दीर्घा में बैठे लोग दांतों तले उंगली दबा लेते थे. ठुमरी में भी उन्होंने कई प्रयोग किये. कुमार जी ने संगीत की अन्य विधाओं जैसे भजन के रूप में जाने जाने वाले भक्ति गीत, लोक गीत आदि के साथ भी प्रयोग किया.