Therukoothu : A Traditional art form : तमिलनाडु की प्राचीन कथा वाचन शैली है थेरुकुथु, Street Theatre में रुचि है तो जरूर देखें

थेरुकुथु तमिलनाडु की एक पारंपरिक कला है. कथा वाचन की इस प्राचीन शैली में कलाकार गीत-संगीत व संवाद के माध्यम से रामायण-महाभारत सहित तमिल साहित्यिक रचनाओं को दर्शकों के सामने प्रस्तुत करते हैं.

By Aarti Srivastava | June 13, 2024 4:12 PM

तमिलनाडु में भिन्न-भिन्न तरीके से कहानी कहने की प्रथा रही है. यह राज्य कहानी कहने, यानी कथा वाचन की प्रथाओं के लिए प्रसिद्ध रहा है. थेरुकुथु, जिसे ‘नुक्कड़ नाटक’ का ही एक प्रकार कहा जा सकता है, कथा वाचन (srorytelling) की एक प्राचीन शैली है. इस शैली के जरिये कई पीढ़ियों से कलाकार भिन्न-भिन्न वृतांतों को कथा के माध्यम से लोगों के सामने रखते आ रहे हैं.

रामायण-महाभारत सहित तमिल साहित्य पर आधारित होती है प्रस्तुति

थेरुकुथु दो शब्दों से मिलकर बना है- थेरु और कुथु. थेरु का अर्थ है सड़क और कुथु का अर्थ है नाटक या कला का प्रदर्शन. तमिल महाकाव्य ‘सिलप्पादिकरम’ में 11 प्रकार के कुथु का उल्लेख मिलता है. हालांकि थेरुकुथु की उत्पत्ति कब हुई और यह कितना प्राचीन है, इसके बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है. यह अकेला ऐसा नाटक है जिसमें एक कलाकार को गाना गाना, डांस करना, डॉयलॉग बोलना और रीतियों (rituals) का प्रदर्शन करना पड़ता है. यह traditional art form तमिल में ‘थिरुविझा’ के नाम से जाना जाता है. थेरुकुथु तमिलनाडु के उत्तरी जिलों में अधिक लोकप्रिय है, जहां इसे मंदिरों में उत्सवों के दौरान गांवों में आयोजित किया जाता है. इस स्ट्रीट थिएटर का आयोजन आम तौर पर पंगुनी (मार्च-अप्रैल) और आदी (जुलाई-अगस्त) के महीनों में किया जाता है. इसके आयोजन का उद्देश्य अच्छी फसल या बारिश के लिए प्रार्थना करना होता है या फिर यह मंदिर के अनुष्ठानों के रूप में आयोजित किया जाता है. थेरुकुथु प्रमुख रूप से महाभारत, रामायण, पेरिया-पुराणम और संगम काल की अन्य तमिल साहित्यिक रचनाओं की विषय-वस्तुओं को आधार बनाकर प्रस्तुत किया जाता है. कहानी कहने की इस शैली का आयोजन गर्मी के मौसम में किया जाता है, जब खेतों में अधिक काम नहीं होता है. वास्तव में थेरुकुथु अपने गीतों, विस्तृत व्याख्या और हास्य के माध्यम से दर्शकों के सामने स्थानीय इतिहास और संस्कृति को प्रस्तुत करने का एक तरीका है.

पहले केवल पुरुष कलाकर ही देते थे प्रस्तुति

इसका आयोजन ऐसे खुले क्षेत्र में किया जाता है जहां दो से अधिक रास्ते आपस में मिलते हैं. थेरुकुथु का प्रदर्शन आमतौर पर देर शाम शुरू होता है और सुबह तक चलता है. दर्शकों की रुचि बनी रहे इसके लिए कलाकार कहानी सुनाते हैं, संवाद बोलते हैं, गाना गाते हैं और नृत्य करते हैं. इस कला में संवाद से अधिक महत्व संगीत और गीत को दिया जाता है. विशाल जनसमूह तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए कलाकार हाई पिच में गाते हैं. ऐसा करने के लिए कलाकारों को औपचारिक प्रशिक्षण लेना पड़ता है, ताकि उनकी आवाज दूर बैठे दर्शक तक पहुंच जाए. पहले पारंपरिक रूप से केवल पुरुष कलाकार ही इस कला को प्रदर्शित करते थे. ऐसे में फिमेल कैरेक्टर, यानी महिला पात्रों की भूमिका भी वे ही निभाया करते थे. हालांकि आजकल महिलाएं भी थेरुकुथु का हिस्सा बनने लगी हैं.

भारी-भरकम कॉस्ट्यूम और मेकअप के साथ कलाकार देते हैं परफॉर्मेंस

परफॉर्म करने से पहले आर्टिस्ट को भारी-भरकम कॉस्ट्यूम पहनना होता है और मेकअप करना पड़ता है. थेरुकुथु परफॉर्मेंस की वेश-भूषा में ऊपर एक लंबा वस्त्र पहना जाता है, जिसके कंधे पर चमचमाती प्लेट लगी होती है और नीचे रंगीन घेरदार घाघरा पहना जाता है. भाव-भंगिमाओं के बेहतर प्रदर्शन के लिए कलाकर का मेकअप भी काफी भारी होता है. प्रदर्शन के दौरान कलाकार कट्टियाकरन (मंच प्रबंधक या सूत्रधार) के साथ संवाद करते हुए अपना परिचय देते हैं. जब कोई कैरेक्टर कहानी में प्रवेश करता है, तब सूत्रधार उससे उसकी पहचान और उसके पात्र के विषय में पूछता है. इस कला में कोमाली (विदूषक) भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वह अपने मसखरेपन से दर्शकों का मनोरंजन करता है. वहीं वादक समूह (orchestra) साइड में एक पटरे पर बैठे होते हैं. इस समूह में एक प्रमुख गायक के साथ मुखवीना, हारमोनियम, मिरुधंगम और कंजीरा जैसे वाद्ययंत्रों के साथ अन्य कलाकार शामिल होते हैं.

महाभारत की कहानियां मानी जाती हैं समृद्धि का प्रतीक

थेरुकुथु के प्रदर्शन तमिलनाडु के उत्तरी जिलों के द्रौपदी अम्मन मंदिरों में भी होते हैं. इस मंदिर में मनाया जाने वाला यह उत्सव तमिल नव वर्ष के ठीक बाद शुरू होता है, जो अप्रैल से जून के अंत तक चलता है. वास्तव में इस क्षेत्र में फसल कटाई का मौसम जनवरी महीने के दौरान शुरू होता है, जिस दौरान सूर्य की पूजा की जाती है. थेरुकुथु के प्रदर्शन, फसल कटाई के बाद आयोजित किये जाते हैं. माना जाता है कि थेरुकुथु में जब महाभारत की कहानियों का मंचन होता है, तब ये कहानियां यहां की धरती और लोगों के लिए सुरक्षा और समृद्धि लेकर आती हैं. यह भी मान्यता है कि ये कहानियां लोगों को आशीर्वाद एवं सौभाग्य देती हैं. थेरुकुथु के प्रदर्शन का जो भी खर्च आता है, वह लोगों द्वारा किये गये दान के माध्यम से संबंधित पंचायत उठाती है. वहीं कुछ विशिष्ट प्रस्तुति के लिए परफॉर्मेंस के दौरान दर्शक दान भी देते हैं.

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