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Lohri 2023: लोहड़ी पर क्यों जलाई जाती है आग, इस अग्नि में क्या डालते हैं और क्यों, जानें इसके पीछे की वजह?

Lohri 2023 Fire Significance: हर साल पौष माह के अंतिम दिन लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है. ये दिन किसानों के लिए बेहद खास महत्व रखता है. क्योंकि इस दौरान खेतों की फसलें लहलहाने लगती है (Lohri Festival 2023)

By Bimla Kumari | January 14, 2023 12:49 PM

Lohri 2023 Fire Significance: हर साल पौष माह के अंतिम दिन लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है. ये दिन किसानों के लिए बेहद खास महत्व रखता है. क्योंकि इस दौरान खेतों की फसलें लहलहाने लगती है (Lohri Festival 2023). इस दिन रात में आग जलाने की परंपरा होती है, जिसे ही लोहड़ी कहा जाता है (Lohri 2023). लोग इस अग्नि को पवित्र व शुभता का प्रतीक माना जाता है. आग जलाने के बाद इस अग्नि में तिल, गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक आदि अर्पित करते हैं. ऐसे में कई बार लोगों के मन में ये सवल रहता हैं कि आखिर लोहड़ी (Lohri Fire Worship) पर ही आग क्यों जलाया जाता है? तो चलिए जानते हैं लोहड़ी के दिन आग जालने के पीछे की वजह क्या है और यह कितना महत्व रखता है.

लोहड़ी पर आग क्यों जलाते हैं?

पंजाब की लोककथाओं का मानना है कि लोहड़ी के दिन जलाई जाने वाली अलाव की लपटें लोगों के संदेशों और प्रार्थनाओं को सूर्य देव तक ले जाती हैं ताकि फसलों को बढ़ने में मदद करने के लिए ग्रह को गर्मी प्रदान की जा सके. बदले में, सूर्य देव भूमि को आशीर्वाद देते हैं और उदासी और ठंड के दिनों को समाप्त करते हैं. अगले दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है. कुछ के लिए, अलाव प्रतीकात्मक रूप से इंगित करता है कि उज्ज्वल दिन लोगों के जीवन से आगे हैं और सूर्य देवता के लिए लोगों की प्रार्थनाओं के वाहक के रूप में कार्य करते हैं.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी पर आग जलाने की परंपरा

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, लोहड़ी के दिन आग जलाने की परंपरा माता सती से जुड़ी हुई है. माना जाता है कि जब राजा दक्ष ने महायज्ञ का अनुष्ठान किया था, तब उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया था, लेकिन शिवजी और सती को नहीं बुलाया था. ऐसे में माता सती को इस बारे में मालूम पड़ता है तब वह महायज्ञ में पहुंच जाती है, लेकिन माता सती के पिता उन्हें बिना आमंत्रित आने पर बहुत भला-बुरा सुनाते हैं, और दक्ष ने भगवान शिव की बहुत निंदा भी करते हैं. इससे आहत होकर देवी सती ने अग्नि कुंड में अपना देह त्याग देती है. इसलिए यह भी माना जाता है कि यह अग्नि मां सती के त्याग को समर्पित होता है.

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लोहड़ी नाम कैसे पड़ा?

लोहड़ी शब्द दो शब्दों तिल (तिल) और रोढ़ी (गुड़) से बना है, जो पारंपरिक रूप से त्योहार के दौरान खाया जाता है. इतिहास में पहले तिल और रोढ़ी शब्द एक साथ ‘तिलोहड़ी’ की तरह ध्वनि करते थे, धीरे-धीरे ‘लोहड़ी’ शब्द में रूपांतरित हो गए. एक बार आग बुझ जाती है, रात के खाने में मक्की दी रोटी ते सरसों दा साग (कॉर्नफ्लोर पैनकेक और सरसों पालक) और लस्सी (छाछ) जैसे पसंदीदा भीड़ शामिल होती है.

लोहड़ी का क्या महत्व है?

लोहड़ी उत्सव फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है. भरपूर फसल संभव बनाने के लिए धन्यवाद देने के लिए इसे मनाया जाता है. लोहड़ी की रात परंपरागत रूप से वर्ष की सबसे लंबी रात होती है जिसे शीतकालीन संक्रांति के रूप में जाना जाता है. लोहड़ी का त्योहार इस बात का संकेत देता है कि सर्दी की कड़कड़ाती ठंड खत्म हो रही है और खुशनुमा धूप के दिन आने वाले हैं.

अग्नी में क्या डालते हैं?

लोहड़ी पर जलाई जानेवाली पवित्र अग्नि में तिल अर्पित करने की जाती है. धार्मिक मान्यता की बात करें तो इस दिन अग्नि में तिल अर्पित करने का विशेष महत्व माना गया है. गरुड़ पुराण के अनुसार, तिल भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुआ है, इसलिए इसका उपयोग धार्मिक क्रिया-कलापों में विशेष रूप से किया जाता है. इसलिए लोहड़ी पर अग्नि में तिल विशेष रूप से डाला जाता है. वहीं आयुर्वेदिक दृष्टि की बात करें तो इस दिन अग्नि में तिल डालने से वातावरण में मौजूद बहुत से संक्रमण समाप्त हो जाते हैं और परिक्रमा करने से शरीर में गति आती है. तिल का प्रयोग हवन व यज्ञ आदि में भी किया जाता है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत फादेमंद होता है. खास कर सर्दियों से मौसम के कारण शरीर की परेशानियों में राहत मिलता है

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