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Mahadevi Varma Birth Anniversary: कवयित्री महादेवी वर्मा जो आधुनिक मीरा के नाम से मशहूर हुईं

Mahadevi Varma Birth Anniversary: कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को इलाहाबाद में हुआ था. महादेवी वर्मा, जो छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थीं. कई लोगों ने वर्मा की तुलना 16वीं शताब्दी के भक्ति संत और हिंदू रहस्यवादी कवि मीराबाई से की और उन्हें "आधुनिक मीरा" कहा.

Mahadevi Varma Birth Anniversary: नारीवादी कवयित्री, उपन्यासकार, निबंधकार, शिक्षक, संपादक और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में महादेवी वर्मा का जीवन अत्यंत विशाल था. महादेवी वर्मा ने “महिलाओं के प्रश्न” पर व्यापक रूप से लिखा है. महादेवी वर्मा जन्म 26 मार्च, 1907 को इलाहाबाद में हुआ था. वर्मा के पिता एक अज्ञेयवादी, पश्चिमी-शिक्षित अंग्रेजी स्कूल के शिक्षक थे और चाहते थे कि वर्मा उर्दू और फ़ारसी में पारंगत हों. उनकी मां, जबलपुर की एक हिंदू परंपरावादी थीं, जिन्होंने उनमें संस्कृत और हिंदी के प्रति प्रेम पैदा किया. उन्होंने वर्मा को पंचतंत्र की कहानियां सिखाईं और मीराबाई की कविता से उनका परिचय कराया. आगे पढ़ें महादेवी वर्मा की कविताएं…

जब यह दीप थके / महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा »

जब यह दीप थके

महादेवी वर्मा

जब यह दीप थके तब आना।

यह चंचल सपने भोले है,

दृग-जल पर पाले मैने, मृदु

पलकों पर तोले हैं;

दे सौरभ के पंख इन्हें सब नयनों में पहुँचाना!

साधें करुणा-अंक ढली है,

सान्ध्य गगन-सी रंगमयी पर

पावस की सजला बदली है;

विद्युत के दे चरण इन्हें उर-उर की राह बताना!

यह उड़ते क्षण पुलक-भरे है,

सुधि से सुरभित स्नेह-धुले,

ज्वाला के चुम्बन से निखरे है;

दे तारो के प्राण इन्ही से सूने श्वास बसाना!

यह स्पन्दन है अंक-व्यथा के

चिर उज्ज्वल अक्षर जीवन की

बिखरी विस्मृत क्षार-कथा के;

कण का चल इतिहास इन्हीं से लिख-लिख अजर बनाना!

लौ ने वर्ती को जाना है

वर्ती ने यह स्नेह, स्नेह ने

रज का अंचल पहचाना है;

चिर बन्धन में बाँध इन्हें धुलने का वर दे जाना!

पूछता क्यों शेष कितनी रात? / महादेवी वर्मा

पूछता क्यों शेष कितनी रात?

छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तू

स्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू

परिधि बन घेरे तुझे, वे उँगलियाँ अवदात!

झर गये ख्रद्योत सारे,

तिमिर-वात्याचक्र में सब पिस गये अनमोल तारे;

बुझ गई पवि के हृदय में काँपकर विद्युत-शिखा रे!

साथ तेरा चाहती एकाकिनी बरसात!

व्यंग्यमय है क्षितिज-घेरा

प्रश्नमय हर क्षण निठुर पूछता सा परिचय बसेरा;

आज उत्तर हो सभी का ज्वालवाही श्वास तेरा!

छीजता है इधर तू, उस ओर बढता प्रात!

प्रणय लौ की आरती ले

धूम लेखा स्वर्ण-अक्षत नील-कुमकुम वारती ले

मूक प्राणों में व्यथा की स्नेह-उज्जवल भारती ले

मिल, अरे बढ़ रहे यदि प्रलय झंझावात।

कौन भय की बात।

पूछता क्यों कितनी रात?

यह मंदिर का दीप / महादेवी वर्मा

यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो

रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,

गये आरती वेला को शत-शत लय से भर,

जब था कल कंठो का मेला,

विहंसे उपल तिमिर था खेला,

अब मन्दिर में इष्ट अकेला,

इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो!

चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली,

प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,

झर सुमन बिखरे अक्षत सित,

धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित

तम में सब होंगे अन्तर्हित,

सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!

पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया,

प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया,

सांसों की समाधि सा जीवन,

मसि-सागर का पंथ गया बन

रुका मुखर कण-कण स्पंदन,

इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो!

झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी

आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी,

जब तक लौटे दिन की हलचल,

तब तक यह जागेगा प्रतिपल,

रेखाओं में भर आभा-जल

दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो!

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