महासमाधि दिवस : गुरु-शिष्य संबंध के आदर्श उदाहरण परमहंस योगानंद और श्री युक्तेश्वरजी
स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी और उनके अद्वितीय शिष्य श्री श्री परमहंस योगानन्द ने एक सन्त और उनके अग्रगण्य शिष्य के मध्य आदर्श सम्बन्ध का एक महान् उदाहरण प्रस्तुत किया है.
-विवेक अत्रे-
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में गुरू-शिष्य सम्बन्ध के समकक्ष सम्भवतः अन्य कोई भी वस्तु नहीं है.यह सम्बन्ध आज भी भारत में विद्यमान है और समृद्ध हो रहा है.मानवीय सम्बन्धों और प्रेम के अन्य सभी स्वरुप सम्भवतः रक्त, प्रेम-सम्बन्ध अथवा मित्रता के बन्धनों से जुड़े हैं, परन्तु गुरू-शिष्य सम्बन्ध की प्रकृति अनन्य है.गुरू-शिष्य सम्बन्ध का आधार होता है एक गुरू की अपने शिष्य की आध्यात्मिक प्रगति के प्रति निःस्वार्थ उत्कंठा तथा उनके शिष्य का अशर्त एवं पूर्ण समर्पित प्रेम.
आदर्श संबंध
स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी और उनके अद्वितीय शिष्य श्री श्री परमहंस योगानन्द ने एक सन्त और उनके अग्रगण्य शिष्य के मध्य आदर्श सम्बन्ध का एक महान् उदाहरण प्रस्तुत किया है.योगानन्दजी अब तक की सबसे प्रसिद्ध आध्यात्मिक उत्कृष्ट पुस्तकों में से एक, “योगी कथामृत,” के लेखक हैं.यह महान् पुस्तक सभी प्रकार के सन्देहों को दूर करने एवं प्रेरणा प्रदान करने वाली अन्तर्दृष्टि के साथ दर्शाती है किस प्रकार से श्रीयुक्तेश्वरजी के प्रेममय किन्तु निरन्तर आलोचनापूर्ण संरक्षण में भक्त मुकुन्द का विकास हुआ जिसके परिणामस्वरूप वे एक जगत् गुरू अथवा वैश्विक गुरू में रूपान्तरित हो गए थे और कालान्तर में परमहंस योगानन्दजी के नाम से विख्यात हुए थे.
योग के जनक के रूप में प्रसिद्ध हुए योगानन्दजी
इस सर्वोत्कृष्ट पुस्तक के एक महत्वपूर्ण अध्याय, जिसका शीर्षक है, “मेरे गुरू के आश्रम की कालावधि,” में श्रीयुक्तेश्वरजी के प्रशिक्षण की गुणवत्ता तथा योगानन्दजी की (प्रारम्भिक मानवीय घबराहट के उपरान्त भी) उदारतापूर्ण एवं दृढ़ ग्रहणशीलता पर प्रकाश डाला गया है.अपने गुरू के आदेश से योगानन्दजी संयुक्त राज्य अमेरिका गए और अन्ततः पाश्चात्य जगत् में योग के जनक के रूप में प्रसिद्ध हुए.
लाखों अनुयायी भक्त इस सत्य को प्रमाणित करते हैं
योगानन्दजी ने सन् 1917 में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) की स्थापना की और बाद में अमेरिका में, वैश्विक स्तर पर वाईएसएस की सहयोगी एवं उसके समकक्ष संस्था, सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ़) की स्थापना की.ये दोनों संस्थाएं योगानन्दजी की योग-ध्यान की शिक्षाओं के प्रसार का कार्य जारी रख रही हैं और विश्व की सभी सच्ची आध्यात्मिक शिक्षाओं की एकता के साथ-साथ, ईश्वर के साथ प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करने पर बल देती हैं.इन शिक्षाओं के लाखों अनुयायी भक्त इस सत्य को प्रमाणित करते हैं कि जब से उन्होंने निष्ठापूर्वक एवं उचित ढंग से इस आध्यात्मिक मार्ग का अनुसरण करना प्रारम्भ किया है, उनके जीवन में एक प्रत्यक्ष सकारात्मक परिवर्तन हुआ है.
“योगी कथामृत ” में वर्णित, श्रीयुक्तेश्वरजी की सतर्क दृष्टि तथा कठोर किन्तु सहज प्रेममय संरक्षण में योगानन्दजी के जीवन के विकासकालीन समय की अनेक घटनाओं से विचारशील पाठक को युवक योगानन्दजी की ईश-सम्पर्क के प्रति सच्ची तड़प के बारे में और उनके गुरू का अपने शिष्य के जीवन को सर्वोच्च आध्यात्मिक नियमों के अनुसार तराशने के उससे भी महानतर दृढ़ संकल्प का ज्ञान होता है.
कष्टों का सामना करने के लिए बाध्य होते हैं
शिष्य एवं उनके गुरू के मध्य कोमल, संवेदनशील, और प्रेममय सम्बन्ध तथा उसके साथ-साथ ज्ञान, क्षमाशीलता, और दिव्य प्रेम के आवश्यक सहवर्ती गुण इन दो अत्युच्च जीवनों की यथार्थ विरासत हैं.माया की विध्वंसकारी शक्ति के कारण सभी मनुष्य जिन भौतिक, मानसिक, एवं आध्यात्मिक कष्टों का सामना करने के लिए बाध्य होते हैं, उन त्रिगुणात्मक कष्टों से मानव जाति का उत्थान करने के लिए इन दोनों सन्तों के जीवन समर्पित थे.
श्रीयुक्तेश्वरजी तथा योगानन्दजी का कालातीत एवं सर्वजनीन उपहार है
उच्चतम वैज्ञानिक ध्यान प्रविधि, क्रियायोग, कठोर कार्मिक शक्तियों के प्रभाव से अनेक सहस्राब्दियों तक क्षतिग्रस्त और आहत हो रही थी.दिव्य परमगुरूओं लाहिड़ी महाशय और महावतार बाबाजी के मार्गदर्शन में श्रीयुक्तेश्वरजी तथा योगानन्दजी ने यह प्रविधि इस संसार को पुनः प्रदान की और यह उनका कालातीत एवं सर्वजनीन उपहार है.
योगानन्दजी का महासमाधि दिवस 7 मार्च को
श्री योगानन्दजी का महासमाधि दिवस 7 मार्च को है और श्री युक्तेश्वरजी का महासमाधि दिवस 9 मार्च को है.ये निकटवर्ती तिथियां भी उनके मध्य विद्यमान शाश्वत बन्धन की द्योतक हैं.तथा सर्वाधिक अमूल्य गुण जिससे उनका जीवन आच्छादित था वह था ईश्वर के प्रति प्रेम, वह प्रेम जिसे विकसित करने का प्रयास हम सब को करना चाहिए.
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