Mahatma Gandhi: बच्चो को जरूर बताएं महात्मा गांधी का अहिंसात्मक संघर्ष, जो बना आजादी का मार्ग

Mahatma Gandhi: इस लेख में जानिए कैसे गांधी जी ने असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च, और भारत छोड़ो आंदोलन के जरिए आजादी की नींव रखी, जिसने 15 अगस्त 1947 के ऐतिहासिक दिन को मुमकिन बनाया।

By Rinki Singh | August 9, 2024 9:09 PM

Mahatma Gandhi: महात्मा गांधी का नाम सुनते ही हमारे दिल में एक शांत, सरल और निडर इंसान की छवि बनती है आजादी की लड़ाई में उनका योगदान इतना बड़ा है कि इसे शब्दों में बताना मुश्किल है. गांधी जी का जीवन और उनकी सोच हमें हमेशा प्रेरणा देती रहेगी. उनकी शिक्षा, उनके आदर्श और उनके बलिदान का कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता. भारत को आजादी दिलाने में गांधी जी का योगदान बहुत अहम था, खासकर 15 अगस्त 1947 के ऐतिहासिक दिन के लिए.

1915 स्वतंत्रता संग्राम का सफर

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गांधी जी का स्वतंत्रता संग्राम का सफर 1915 में शुरू हुआ जब वह दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे. उन्होंने यहां की हालत देखी—गरीबी, भेदभाव, और अंग्रेजों का अत्याचार. उन्होंने समझा कि अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए पूरे देश को एकजुट होना जरूरी है. यही सोचकर उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह का रास्ता अपनाया, जिसमें बिना हिंसा किए विरोध करना शामिल था.

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कई आंदोलनों की शुरुआत की

गांधी जी ने कई आंदोलनों की शुरुआत की, जैसे असहयोग आंदोलन (1920), दांडी मार्च (1930), और भारत छोड़ो आंदोलन (1942). इन आंदोलनों ने पूरे देश को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा कर दिया. लोग गांधी जी के आदर्शों से प्रेरित होकर अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होने लगे.

अंग्रेजी सामानों का बहिष्कार

असहयोग आंदोलन में गांधी जी ने लोगों से अपील की कि वे अंग्रेजी सामानों का बहिष्कार करें, सरकारी नौकरियों से इस्तीफा दें, और अंग्रेजी स्कूलों में अपने बच्चों को न भेजें. इससे अंग्रेजों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति कमजोर होने लगी. यह आंदोलन इतना बड़ा हुआ कि अंग्रेजी हुकूमत हिलने लगी.

दांडी मार्च पदयात्रा

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फिर 1930 में, गांधी जी ने दांडी मार्च की शुरुआत की. उन्होंने नमक पर टैक्स के खिलाफ आवाज उठाई और 24 दिन की पदयात्रा कर दांडी गांव पहुंचे.वहां उन्होंने समुद्र से नमक बनाकर अंग्रेजी कानून का उल्लंघन किया. इस घटना ने पूरे देश में आंदोलन की लहर पैदा कर दी.

अंग्रेजों भारत छोड़ो

भारत छोड़ो आंदोलन गांधी जी का सबसे निर्णायक कदम था. 1942 में उन्होंने “अंग्रेजों भारत छोड़ो” का नारा दिया. इन सभी आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य यही था कि अंग्रेज भारत को छोड़कर चले जाएं और भारत को आजादी मिले. गांधी जी का हर कदम अहिंसा और सत्य के साथ था, और यही वजह है कि उन्हें “राष्ट्रपिता” कहा जाता है. उनकी सोच, उनकी नीति और उनका बलिदान ही था जिसने हमें 15 अगस्त 1947 का दिन देखने का मौका दिया.

अहिंसा और सत्य का मार्ग

15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ, तब गांधी जी दिल्ली में नहीं थे. वे बंगाल के नोआखली में थे, जहां वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए काम कर रहे थे.  आजादी के दिन गांधी जी ने जश्न मनाने की जगह उस समाज को जोड़ने का काम किया, जो विभाजन की वजह से टूट गया था. उनका जीवन और उनके आदर्श आज भी हमें सिखाते हैं कि अहिंसा और सत्य का मार्ग कितना प्रभावी हो सकता है.

महात्मा गांधी ने दांडी मार्च क्यों किया, और इसका क्या प्रभाव पड़ा?

महात्मा गांधी ने 1930 में नमक पर लगे अंग्रेजी टैक्स के खिलाफ दांडी मार्च किया. इस मार्च ने पूरे देश में अंग्रेजी कानूनों के खिलाफ विरोध की लहर पैदा कर दी और आजादी की लड़ाई को नया जोश और दिशा दी.

महात्मा गांधी के कौन से आंदोलन ने भारत में स्वतंत्रता संग्राम की नींव मजबूत की?

महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन ने भारत में स्वतंत्रता संग्राम की नींव को मजबूत किया. इस आंदोलन ने लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एकजुट होने की प्रेरणा दी और अंग्रेजों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को कमजोर कर दिया, जिससे स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई.

भारत छोड़ो आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?

भारत छोड़ो आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था अंग्रेजों को भारत से पूरी तरह से हटाना. 1942 में गांधी जी द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम का निर्णायक चरण साबित हुआ, जिससे अंग्रेजों को समझ आ गया कि अब भारत को आजादी देना अनिवार्य है.

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