Mahavir Jayanti 2022: आज महावीर जयंती है. भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे. भगवान महावीर का जन्म रानी त्रिशला और राजा सिद्धार्थ से हुआ था. मात्र 30 वर्ष की आयु में उन्होंने सबकुछ छोड़कर आध्यात्म का मार्ग अपना लिया था. आज महावीर जयंती के अवसर पर जानें भगवान महावीर के वे विचार जिन्हें अपना कर कोई भी अपने जीवन को नई दिशा दे सकता है.
सत्य- भगवान महावीर ने सत्य के विषय में कहा है कि- हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है.
अहिंसा– भगवान महावीर ने अहिंसा के बारे में कहा कि इस लोक में जितने भी जीव है उनकी हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको. उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो और उनकी रक्षा करो.
ब्रह्मचर्य– भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्य के बारे में कहा है कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है. तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है. जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं.
अपरिग्रह – भगवान महावीर ने अपरिग्रह के बारे में कहा है कि जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता.
अचौर्य– भगवान महावीर ने कहा है कि यदि किसी और की वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण किया जाए तो वह चोरी है.
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खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है.
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आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है. असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं, वो शत्रु हैं क्रोध, घमंड, लालच, आसक्ति और नफरत.
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प्रत्येक जीव स्वतंत्र है, कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता.
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सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है.
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किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असल रूप को ना पहचानना है और यह केवल आत्म ज्ञान प्राप्त कर के ठीक की जा सकती है.
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आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है, न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है.
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सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं, और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं.
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स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना? वह जो स्वयं पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी.
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भगवान का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है, हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है.
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प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है. आनंद बाहर से नहीं आता.