मकर संक्रांति पर क्या कहती है ऊंची उड़ान भरती पतंग, जानें दिल को छूती दिलचस्प बातें
मकर संक्रांति को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके और नामों से मनाया जाता है. किसानों के लिए जहां यह नयी फसलों के तैयार होने का मौसम है, वहीं नयी ऊर्जा और उमंग भरने का अवसर भी है. पतंग उड़ाना भी इसी बात को दर्शाता है. जानिए पतंग क्या कुछ कहना चाहती है...
कवर स्टोरी : दीप्ति मित्तल
मैं पतंग हूं… आसमान में लहराती-बलखाती, ऊंची उड़ान भरती पतंग. हजारों वर्ष पहले मैं चीन, कोरिया, थाइलैंड से होते हुए भारत के पवित्र गगन में आयी थी. ऐसे तो पूरी दुनिया ने ही मुझे सिर आंखों पर बिठाया, मगर जो प्रतिष्ठा और आदर मुझे यहां मिला, वह कहीं और नहीं मिला. क्योंकि यहां मुझे मकर संक्रांति के पावन पर्व के साथ जोड़ दिया गया. भारत की यह खासियत है कि यहां जिस चीज को किसी त्योहार के साथ जोड़ दिया जाता है, उस चीज का अस्तित्व सदा के लिए अमर हो जाता है. लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसकी महत्ता बनाये रखते हैं. भरे सालभर न सही, मगर एक दिन के लिए उसका भाग्योदय अवश्य होता है. मेरे साथ भी यही हुआ. मकर संक्रांति के पर्व से जुड़ कर कम-से-कम यहां तो मेरा अस्तित्व अमर हो गया.
मकर संक्रांति लोगों में आशा, उत्साह और उमंगों के संचार का दिन है. अपनी खुशी को वे ईश्वर की पूजा करके, गरीब-असहायों के साथ उनको दान देकर और अपने साथियों के साथ उन्हें मिठाई, तिल-गुड़ देकर और पतंग उड़ा कर बांटते हैं. मैं पतंग उनके हर्षोल्लास को अपनी डोर संग बांधे खुले आसमान में सर्वत्र इतराती घूमती हूं.
मैं बारंबार उस इंसान के प्रति कृतार्थ होकर नतमस्तक होती हूं, जिसने मुझे इस पर्व पर पहली बार उड़ाया. शायद उसे उस पल एहसास भी न होगा कि वह कितनी बड़ी प्रथा की नींव रखने जा रहा है. उसके इस कृत्य ने मुझे सदा के लिए अमर कर दिया वरना तो मैं यूं ही एक सामान्य-सा खेल बनकर रह जाती, जो धीरे-धीरे विलुप्त हो जाता. आज साल में एक दिन ही सही, लोगों को मेरी याद तो आती है. वे मुझे नये-नये रूप-रंग देकर सजाते-संवारते हैं. मेरे नाम पर महोत्सव करते हैं.
कभी-कभी मैं सोचती हूं कि उसने मुझे इसी पर्व पर ही क्यों उड़ाया होगा? अवश्य ही वह कोई भक्त रहा होगा, जो सोचता होगा कि ईश्वर आकाश में कहीं रहते हैं. उसने अपनी प्रार्थना को, अपने भक्ति भाव को ईश्वर तक पहुंचाने के लिए मेरा इस्तेमाल किया होगा. हंसी आती है मुझे उस भोले भक्त पर जो जानता नहीं था कि ईश्वर तो उसी के अंदर रहता है. उस तक संदेश पहुंचाने के लिए उसे मेरे जैसे किसी माध्यम की जरूरत नहीं, बस अपने हृदय में झांक लें. कारण कुछ भी हो, मैं उसकी सदैव ऋृणी रहूंगी.
मैं युगों-युगों से मकर संक्रांति पर उड़ान भरते हुए कोटि-कोटि मनुष्यों की भावनाओं की साक्षी बनी हूं. लोगों ने अक्सर मेरा उपयोग अपने संदेशों को दूसरों तक पहुंचाने में किया. मैंने तुम जैसे छोटे-छोटे बालकों की खिलखिलाहटों-चहचहाचटों को भी अपने में समेटा है. साथ ही कितने ही अहंकारी लोगों के कलुषित मन को भी देखा, जो पतंग कटने जैसे छोटी बात पर इस सुंदर खेल को लड़ाई का अखाड़ा बना लेते हैं. उनकी अल्पबुद्धि के कारण मैं कितनों के बीच लड़ाई-झगड़े, वैमनस्य का कारण भी बनी हूं. वे पगले यह नहीं जानते कि प्रतियोगिता तनाव और क्रोध की नहीं, बल्कि विकास की सीढ़ी होती है.
खैर, मेरा स्वर्णिंम युग समाप्त हो चुका है. अब मेरी सांसें धीमी होती जा रही हैं. मकर संक्रांति के अतिरिक्त बाकी पूरे साल मेरी हालत वेंटीलेटर पर पड़े एक रोगी जैसी रहती है. जो हाथ कभी मेरी डोर थाम कर जोश व आनंद से भर जाते थे, उनमें अब मोबाइल आ गया है. उनकी नजरें आकाश में उड़ती पतंगों से ज्यादा सोशल मीडिया में घूमते मेरे चित्रों पर अधिक रहने लगी हैं. वे मुझे उड़ाते नहीं बस वाट्सअप पर घुमाते रहते हैं.
मैं उन सभी से यही कहना चाहूंगी कि मेरे लिए नहीं, बल्कि अपने लिए मैदान में आओ और मुझे उड़ाओ. मैं तुम्हें नये दोस्त दूंगी, तुम्हारी को बुद्धि तेज करूंगी, तुम्हारी एकाग्रता और संतुलन शक्ति को बढ़ाऊंगी, जिसको पाने के लिए तुम आजकल न जाने कौन-कौन से महंगे कोर्स कर डालते हो. मैं तुम्हे सूर्य भगवान से विटामिन-डी दिलवाऊंगी, जो तुम्हारी हड्डियों को मजबूत करेगा. मेरे प्यारो, इस मकर संक्रांति पर परोपकारी न सही, कम-से-कम अपने फायदे के लिए ही सही, मैदान में आओ. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.
कागज के पतंगों का चलन अब से 1000 वर्ष पहले का ही है. इसके पहले इंसान अपने मनोरंजन के लिए पत्तों से बनी पतंग उड़ाया करते थे.
अमेरिका में सिविल वार के दौरान पतंगों का इस्तेमाल चिट्ठियां और खबरों को भेजने के लिए भी करते थे.
समय-समय पर पतंग उड़ाने पर पाबंदियां भी लगायी जाती रही हैं. खासकर, छत पर पतंग उड़ाने की वजह से होने वाली दुर्घटना को रोकने और पक्षियों की जिंदगी बचाने के लिए ऐसा किया गया.
दुनियाभर में पतंग को लेकर अलग-अलग राय है. कुछ संस्कृतियों में पतंग खुशी और गुड लक का प्रतीक है, तो कुछ संस्कृतियों में पतंग को बीमारी को दूर भगाने और मौसम का पूर्वानुमान लगाने में भी प्रयोग किया जाता रहा है.
बेंजामिन फ्रैंकलिन ने पतंग का इस्तेमाल यह दिखाने के लिए किया था कि आसमान में चमकने वाली बिजली वास्तव में इलेक्ट्रिसिटी ही है.
पतंग की डोर और मांझे का चुनाव भी सतर्कता से करना. अधिक तेज मांझे वाली डोर तुम्हारे हाथ की कोमल उंगलियों को घायल कर सकते हैं, इतना ही नहीं ऊपर जाने पर उंचे आकाश में उड़ते हुए पक्षियों के लिए भी जानलेवा सबित हो सकते हैं.
मौसम के मिजाज का भी पतंगबाजी में बहुत योगदान होता है, जिस दिन हवा चल रही हो, उस दिन अपनी प्यारी पतंग उड़ाओ, पर ख्याल रहे आंधी, बारिश का मौसम न हो.
पतंग उड़ाने के लिए सही जगह का चुनाव करो- पार्क, मैदान, खुली जगह या समुद्र का किनारा पतंग उड़ाने के लिए सबसे उपयुक्त जगह होते हैं. छत या दीवार पर चढ़ कर पतंग उड़ाना जानलेवा हो सकता है. ऐसा करने से बचो.
एक से भले दो, कहावत पतंगबाजी में सही बैठता है. यानी मित्रों के साथ पतंग उड़ाने का आनंद ही कुछ और होता है.