मकर संक्रांति बदलाव का पर्व माना जाता है. इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं. इस वजह से शीत ऋतु का संक्रमण काल धीरे-धीरे कम होने लगता है. इस पर्व पर स्नान-दान की परंपरा पूरे भारतवर्ष में निभाई जाती है. इस दिन के लिए विशेष आहार भी तय है. खिचड़ी, चूड़ा-दही, तिलकुट, तिल के लड्डू इत्यादि खाए जाते हैं, जो हमारे इम्यून सिस्टम और स्वास्थ्य लाभ से जुड़ा हुआ आहार है. इन सब बातों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो इनका काफी महत्व है. आइये जानते हैं इस पर्व का वैज्ञानिक महत्व.
यह पर्व ऐसे समय में आता है जब शीत ऋतु अपने परवान पर होती है. सर्द हवाएं चलती हैं. शीतलहर के प्रकोप से जनजीवन अस्त-व्यस्त रहता है, जिससे कई तरह की संक्रामक बीमारियां होती हैं. ऐसे में इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए पौष्टिक आहार जरूरी है. मकर संक्रांति के दिन प्रसाद के रूप में पौष्टिक आहार, जैसे दही, तिल की बनी सामग्री इत्यादि का सेवन करते हैं. इससे हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होता है.
मकर संक्रांति के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जागना चाहिए. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और उसके पश्चात दान का बड़ा महत्व है. इसे आयुर्वेद के दृष्टिकोण से उत्तम माना जाता है. ब्रह्म मुहूर्त में जागना और नदियों के पवित्र जल में स्नान करना हमारे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से काफी लाभकारी माना जाता है. इसके पश्चात लोग चूड़ा दही, तिल और खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण करते हैं. आयुर्वेद के अनुसार ऐसा करना हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है. वह भी ऐसे समय में जब सूर्य उत्तरायण हो रहे होते हैं.
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की परंपरा रही है. लोग मकर संक्रांति का पर्व मनाते हुए खिचड़ी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. खिचड़ी को एक सुपाच्य भोजन माना जाता है. इसमें हर तरह के पोषक तत्व मिलते हैं. शीत ऋतु में हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर रहता है. संक्रामक बीमारियों का डर रहता है. ऐसे में खिचड़ी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से कई सारे पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं, जो हमारे इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग बनाते हैं.
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं. जिसके बाद से धीरे-धीरे दिन लंबे और रातें छोटी होने का क्रम शुरू हो जाता है. दिन के लंबे होने के बाद हमारी दिनचर्या भी इसके मुताबिक ढालनी जरूरी हो जाती है. इसलिए मकर संक्रांति हमें कुछ बदलावों के अनुसार खुद को ढालने की आदत सीखाता है. इस दिन से हमारी दिनचर्या में ऐसे आहार शामिल हो जाते हैं जो हमें अंदरुनी रूप से मजबूत बनाते हैं.
मकर संक्रांति के मौके पर प्रसाद के रूप में ऐसी चीज खाने की परंपरा है जो जिनकी तासीर गर्म होती है. इस दौरान हम शीत ऋतु के प्रभाव से जूझते रहते हैं. ऐसी अवस्था में गर्म तासीर की चीजों को अपने आहार में शामिल करने से हमें अंदर से मजबूती और शारीरिक तौर पर ठंड से लड़ने की शक्ति मिलती है. इसलिए इस दिन गर्म तासीर वाले तिल व अन्य चीजों का सेवन किया जाता है. यह पुरातन काल से हमारी परंपरा में विद्यमान है.
मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं. सूर्य के उत्तरायण होने के बाद वातावरण में गर्मी धीरे-धीरे बढ़ती है. इससे ठंड का प्रभाव आहिस्ता-आहिस्ता खत्म होने लगता है. नदियों व तालाबों में जल वाष्पन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. उत्तरायण हुए सूर्य का ताप ठंड के असर को काम करता है. इस ताप से शीत का प्रभाव जाता रहता है.
इस दिन तिल और गुड़ का सेवन किया जाता है. तिल और गुड़ का सेवन आयुर्वेद के अनुसार स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी माना जाता है. आयुर्वेद में गुड़ के औषधीय गुणों का वर्णन है. इसलिए इस दिन तिल के साथ गुड़ का सेवन करने से हमें शीत ऋतु जनित कई बीमारियों में लाभ मिलता है और हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होता है. इससे हम उन बीमारियों को लड़ने में सक्षम हो पाते हैं.
Also Read: Makar Sankranti 2024 : सूर्य के उत्तरायण से क्या होगा असर ? जानिए मकर संक्रांति के पीछे का विज्ञान
मकर संक्रांति के पर्व को पतंग उड़ाने की परंपरा से भी जोड़ा गया है. इसके पीछे वैज्ञानिक महत्व यह बताया जाता है कि पतंग उड़ाने के दौरान हमारा शरीर एक्टिव रहता है. सूर्य की रोशनी में चार-पांच घंटे हम गुजरते हैं. इससे सूर्य की एनर्जी हासिल होती है. पतंगबाजी के उत्साहपूर्ण माहौल में हमारे शरीर में इस स्फूर्ति और उल्लास का संचार होता है. इससे मानसिक तौर पर भी फायदा मिलता है.
Also Read: Video: मकर संक्राति पर खाने वाले ये हैं फेमस फूड, जानें इनके फायदे और महत्व