जायका : स्वाद की दुनिया के मिशलिन सितारे

देशी खाने का जायका भारत में रहने वाले एक अरब, चालीस करोड़ हिंदुस्तानी ही तय करेंगे. जिस तरह ढाबे के व्यंजन, चाट और दक्षिण भारतीय टिफिन आभिजात्य होटलों के मेनू पर छा चुके हैं, वैसा ही भविष्य में होता रहेगा.

By पुष्पेश पंत | June 25, 2023 1:17 PM

भारत में होटलों का वर्गीकरण सरकार द्वारा निर्धारित मानकों की कसौटी पर कस कर तारों के अलंकरण से होता है. मेहमाननवाजी की सुविधाओं के आधार पर एक से पांच तक तारे बतौर सनद होटल की पहचान बन जाते हैं. कुछ बेहद महंगे ‘सुपर डीलक्स’ होटल खुद को असाधारण दर्शाने के लिए अनौपचारिक रूप से सात तारों की दावेदारी करने लगे हैं. आम धारणा है कि इन होटलों में स्थित रेस्तरां भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं. ‘दम पुख्त’, ‘बुखारा’, ‘जोडियाक ग्रिल’ ‘राइस बोट’ आदि वेलकम समूह या ताज होटल्स द्वारा अपने होटलों में संचालित विश्वविख्यात रेस्तरां हैं तो इसी आधार पर.

हमारे देश में रेस्तरां या भोजनालयों को अलग से तारों से नहीं नवाजा जाता है, पर दुनिया के और देशों में ‘मिशलिन तारे’ ही ग्राहक का मार्गदर्शन करते हैं कि किस रेस्तरां का खाना सबसे जायकेदार होता है. मिशलिन एक टायर बनाने वाली कंपनी है जिसने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद मोटरकार द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मिशलिन गाइड का प्रकाशन शुरू किया. रास्ते और मंजिल में स्थित खाने की जगहों को एक से तीन सितारे दिये जाते हैं और यह काम गुमनाम निरीक्षक करते हैं. खाने के जायके में रत्ती भर भी कमी रह जाए, तो तारों की संख्या अगले साल घट सकती है या तारे गायब भी हो सकते हैं. मिशलिन तारों का ऐसा हौव्वा है कि एकाधिक शेफ ने तारे घटने पर आत्महत्या तक कर डाली है.

कई भोजन भट ऐसे हैं जिनका मानना है कि हर पुरस्कार-सम्मान की तरह मिशलिन तारों के पीछे भी राजनीति काम करती है और इन रेस्तरां में काम करने वाले शेफ फिल्मी सितारों या खेल के मैदान के किसी सुपरस्टार से कम अहंकारी, तुनकमिजाज नहीं होते. खाने का जायका मिथकीय महिमामंडन के अतिरिक्त कुछ नहीं होता. विदेश में ,पड़ोस या दूर देश में, इन रेस्तरां में खाना चखने के लिए महीनों की वेटिंग लिस्ट रहती है. खाना पेट भरने को नहीं चखने को मिलता है. बहरहाल, मिशलिन के अंतरराष्ट्रीय परीक्षक-निरीक्षक भारत नहीं आते. लंबे समय से उनका यह बहाना रहता था कि वह भारतीय खाने के जायकों की विविधता से अपरिचित हैं और उसकी पारंपरिक गुणवत्ता को परखने में असमर्थ. फिर कैसे वह जायकों की गुणवत्ता या प्रयोग की मौलिकता पर अपनी मुहर लगा सकते हैं?

विडंबना यह है कि आज भारत के बाहर विदेशों में चल रहे रेस्तरां को मिशलिन तारे से नवाजा जाने लगा है और इनके शेफ भी सितारों से कम मशहूर हस्ती नहीं समझे जाते. विनीत भाटिया, अतुल ओबेरोय, विकास खन्ना, श्रीजित तथा गग्गन ऐसे नाम हैं जो एकाधिक मिशलिन तारे वाले एक से अधिक रेस्तरां चला चुके हैं- लंदन, दुबई, सऊदी अरब, न्यूयॉर्क, सैन फ्रांसिस्को जैसे शहरों में. इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि यह सितारे जो नवल प्रयोग करते हैं, उसकी नकल भाई लोग आंख मूंद कर स्वदेश में करते हैं.

बंधुवर वीर सांघवी जैसे रसिक पारखी यह फतवा देने लगे हैं कि भविष्य में भारतीय खाने का जायका ऐसे होनहार शेफ ही तय करेंगे. जनसंपर्क और विज्ञापन के शोर को छोड़िए, हमारा मानना है कि देशी खाने का जायका भारत में रहने वाले एक अरब, चालीस करोड़ हिंदुस्तानी ही तय करेंगे, जिनमें से अधिकांश ने पांच तारा छाप होटलों में कभी कदम ही नहीं रखा है. जिस तरह ढाबे के व्यंजन, चाट और दक्षिण भारतीय टिफिन आभिजात्य होटलों के मेनू पर छा चुके हैं, वैसा ही भविष्य में होता रहेगा. हमारा मानना है कि जायकों की दुनिया में ‘जहां और भी हैं सितारों से आगे!’

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