बिहार की मां-बेटे की जोड़ी बांस से बने सामान के जरिये कर रही पर्यावरण बचाने की कोशिश

प्लास्टिक का बढ़ता इस्तेमाल पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदायक है. ऐसे में आज बांस प्लास्टिक का एक बेहतर विकल्प बनने के साथ स्वरोजगार का एक अहम जरिया भी बन गया है. इस उद्यम से जुड़कर पूर्णिया की रहने वाली आशा अनुरागिनी कमाई करने के साथ-साथ पर्यावरण को बचाने के लिए एक मुहिम चला रही हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | November 20, 2022 2:25 PM

बिहार के पूर्णिया की रहने वाली आशा अनुरागिनी को शुरू से ही प्रकृति से विशेष लगाव था. घर के आसपास बिखरीं प्लास्टिक की चीजों को देखकर उनका मन अक्सर खिन्न रहता था. वे अक्सर प्लास्टिक के विकल्प के बारे में सोचा करती थीं कि ऐसा क्या करें, जिससे लोग जागरूक हो और पर्यावरण की रक्षा भी हो सके. इसके बाद उन्होंने प्लास्टिक की जगह बांस से बनी चीजें बनाने का फैसला किया. इस काम में उनका बेटा सत्यम् सुंदरम ने भी काफी मदद की. सत्यम सुंदरम अपनी एमबीए की पढ़ाई एवं नौकरी को छोड़कर मां के साथ बांस के कारोबार में जुटे हुए हैं. आज मां-बेटे ‘मणिपुरी बैम्बू आर्किटेक्चर’नाम से अपना कारोबार चला रहे हैं. वे बांस से करीब 50 से भी ज्यादा चीजें बना रहे हैं. सत्यम बताते हैं, ‘इस कारोबार को शुरू करने में मेरी मां की अहम भूमिका रही है. पर्यावरण और प्रकृति के प्रति उनके प्रेम ने ही हमें इस कारोबार को शुरू करने की प्रेरणा दी.’

महज 10 बांस के जरिये घर से ही शुरू हुआ कारोबार

एक निजी स्कूल में संगीत और क्राफ्ट की टीचर आशा बताती हैं, ‘एक रोज मैं और मेरा बेटा प्लास्टिक के वैकल्पिक प्रोडक्ट्स के बारे में चर्चा कर रहे थे. उसी दौरान हमें पता चला कि बांस से कई तरह के प्रोडक्ट्स बनाए जा सकते हैं. मुझे आर्ट एंड क्राफ्ट की थोड़ी बहुत जानकारी भी थी. इसी सोच के साथ हमने 10 बांस खरीदे और उससे बनीं चीजों का कारोबार शुरू किया.’ वर्तमान में हम सारे बांस मणिपुर से मंगवाते हैं. वे कहती हैं कि हम लोगों ने सबसे पहले एक बोतल बनाया था, लेकिन इसे मार्केट में कैसे उतारा जाए और कैसे ब्रांडिंग की जाए, इसकी जानकारी नहीं थी. इस काम में बेटे सत्यम ने काफी मदद की.’ आशा कहती हैं कि आज मैं अपने बेटे सत्यम के साथ मिलकर बिहार में उद्योग स्थापित करने और कारोबार शुरू करने को लेकर विभिन्न स्कूलों व कॉलेजों में वर्कशॉप में हिस्सा लेती हूं. मेरी टीम में करीब 16 लोग शामिल हैं, जिसमें स्थानीय महिलाओं के साथ दिव्यांग महिलाएं भी कार्य कर रही हैं.’

फिलहाल दिल्ली से लेकर मुंबई तक से मिल रहे हैं ऑर्डर

आशा बताती हैं कि पिछले साल 2021 के जुलाई महीने में ही उन्होंने अपने घर के पास एक छोटा-सा स्टॉल लगाकर अपने कारोबार की शुरुआत की थी. उसके बाद इसकी जानकारी स्थानीय प्रशासन एवं मीडिया के लोगों को मिली और धीरे-धीरे बिक्री एवं ऑर्डर में वृद्धि होनी शुरू हुई. आज उन्हें दिल्ली से लेकर मुंबई तक से ऑर्डर मिल रहे हैं. उन्होंने सारे प्रोडक्ट्स आम आदमी की रोजमर्रा की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए हैं. साथ ही ग्राहकों की मांग के अनुसार कस्टमाइजेशन की भी सुविधा है.

सोशल मीडिया से मिल रही मदद

आशा बताती हैं कि वे बांस से बोतल, स्टैंड आदि चीजें बनाती हैं. इसके अलावा अब बांस से कॉटेज बनाने का भी काम कर रहे हैं. उनके पास बांस के बने प्रोडक्ट्स की कीमत 40 रुपये से लेकर 40,000 तक भी है. साथ ही ‘मणिपुरी बैम्बू आर्किटेक्चर’ नाम से उनका फेसबुक पेज भी है, जिस पर प्रोडक्ट की तस्वीरें साझा करती हैं.

Next Article

Exit mobile version