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CSIR: 80 साल के इतिहास में पहली बार महिला महानिदेशक

तमिलनाडु की एक बेटी ने विज्ञान की दुनिया में वह मुकाम हासिल किया है, जो अबतक किसी भी भारतीय महिला को नहीं मिला था. यह कहानी है सीएसआइआर की पहली महिला महानिदेशक नल्लाथांबी कलाईसेल्वी की. ऐसे में वह उन बेटियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गयी हैं, जो विज्ञान के क्षेत्र में करियर बनाना चाहती हैं.

लोगों के बीच एक आम धारणा है कि बड़े-बड़े स्कूलों और अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करके ही जीवन में बड़ी कामयाबी हासिल की जा सकती है, लेकिन तमिल माध्यम से स्कूली पढ़ाई कर तमिलनाडु की एक बेटी ने विज्ञान की दुनिया में वह मुकाम हासिल किया है, जो अबतक किसी भी भारतीय महिला को नहीं मिला था. यह कहानी है सीएसआइआर की पहली महिला महानिदेशक नल्लाथांबी कलाईसेल्वी की. ऐसे में वह उन बेटियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गयी हैं, जो विज्ञान के क्षेत्र में करियर बनाना चाहती हैं.

डॉ. नल्लाथांबी कलाईसेल्वी

वै ज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) के 80 साल के इतिहास में बतौर पहली महिला निदेशक के रूप में डॉ नल्लाथांबी कलाईसेल्वी ने शेखर मांडे की जगह ली हैं. वह अप्रैल में सेवानिवृत्त हुए थे. सीएसआइआर के महानिदेशक के रूप में वह दो वर्षों की अवधि के लिए 38 प्रयोगशालाओं और करीब 4,500 वैज्ञानिकों के नेटवर्क का नेतृत्व करेंगी.कलाईसेल्वी तमिलनाडु के कराईकुडी में रासायनिक अनुसंधान संस्थान की निदेशक रह चुकी हैं. एक छोटे से गांव से निकलकर इस मुकाम तक पहुंचना हर किसी के बूते की बात नहीं है, पर अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति, लगन और मेहनत की बदौलत उन्होंने इसे बखूबी साकार किया है. देश में महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में इसे एक मील का पत्थर माना जा सकता है, क्योंकि विज्ञान की दुनिया में अबतक पुरुषों का ही वर्चस्व ज्यादा देखने को मिलता रहा है.

निभायेंगी कई और जिम्मेवारियां

सीएसआइआर की महानिदेशक रहते हुए कलाईसेल्वी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय में विज्ञान और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआइआर) की सचिव का कार्यभार भी संभालेंगी. अब वह उस सूची में शामिल हो गयी हैं, जिसमें अंतरिक्ष संगठन और बायोटेक्नोलॉजी विभाग में अहम भूमिका निभा चुकीं महिला वैज्ञानिक शामिल हैं. अनुसंधान के क्षेत्र में उनकी दिलचस्पी लिथियम और बगैर-लिथियम बैटरी, सुपरकैपेसिटर व वेस्ट-टू-वेल्थ आइडिया से बने इलेक्ट्रोड एवं ऊर्जा भंडारण और इलेक्ट्रोकैटलिटिक ऐप्लिकेशनों के लिए इलेक्ट्रोलाइट्स शामिल हैं.अभी वह सोडियम-आयन/लिथियम-सल्फर बैटरी व सुपरकैपेसिटर के विकास में योगदान दे रही हैं.

बचपन से ही पढ़ने में थी होशियार

तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के अंबा समुद्रम गांव में जन्मी नल्लाथांबी कलाईसेल्वी बचपन से ही पढ़ने में होशियार रही हैं. उनके पिता शिक्षक थे. तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी 55 वर्षीया कलाइसेल्वी कहती हैं-‘मेरे पिता ने मेरी परवरिश बिल्कुल एक बेटे की तरह की. उन्होंने कभी भी मेरे और मेरे भाइयों के बीच भेदभाव नहीं किया.’ 70 के दशक में अंग्रेजी या सीबीएसइ जैसे बोर्ड का चलन नहीं था. लिहाजा, उनकी स्कूली पढ़ाई तमिल में हुई. इसके बाद मैंने चितंबरम में अन्नामलाई विश्वविद्यालय से बीएससी, ऑर्गेनिक केमेस्ट्री में एमएससी और अपनी पीएचडी डिग्री पूरी की. तमिल में स्कूली शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई अंग्रेजी में करने के दौरान आने वाली दिक्कतों के बारे में वे बताती हैं-‘जब मैं वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेती थी, तब अंग्रेजी में पढ़ती थी. मेरे अंग्रेजी के शिक्षक ने इतनी अच्छी तरीके से पढ़ाया था कि जब कॉलेज में गयी,तो मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई.

वर्ष 1997 में बनीं जूनियर वैज्ञानिक

कलाईसेल्वी को बचपन से ही किताबों से काफी लगाव था. वह अक्सर सुनती और पढ़ती थीं कि इसकी खोज हुई, उसकी खोज हुई. इस तरह की रचनात्मकता से उन्हें काफी प्रेरणा मिलती थी. इससे सोचने की आजादी मिली और काम करने की आजादी भी. इसके बाद से ही उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में करियर बनाने की ठान ली. वर्ष 1997 में वह सेंट्रल इलेक्ट्रो केमिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट(सीइसीआरआइ) में जूनियर वैज्ञानिक बनीं. सीइसीआरआइ का हिस्सा बनने से पहले उन्हें इलेक्ट्रो-केमेस्ट्री में अनुभव नहीं था. मगर, सीखने की प्रवृत्ति के कारण ही वह हमेशा अपने सहकर्मियों से आगे रहीं. उन्हें कई बड़ी स्वतंत्र परियोजनाएं मिलीं, जिससे उन्हें अलग पहचान मिली. उन्हें रमन फेलोशिप मिली, जिसके तहत उन्होंने टेक्सास विश्वविद्यालय में जाकर अध्ययन किया. उन्होंने सीएसआइआर में अपनी नौकरी की शुरुआत करते हुए संस्थान में अच्छी-खासी साख बनायी. नतीजतन, और फरवरी 2019 में सीएसआइआर-सीइसीआरआइ का नेतृत्व करने वाली वह पहली महिला बनीं.

प्रस्तुति : देवेंद्र कुमार

जिस विषय को कभी पढ़ा नहीं वही बन गया पसंदीदा डॉ कलाइसेल्वी के बारे में एक खास बात रही है कि वह जिस विषय (इलेक्ट्रो-केमिस्ट्री) की विशेषज्ञ या बड़ी विज्ञानी मानी जाती हैं, उन्होंने उस विषय की पढ़ाई ही नहीं की थी. सीएसआइआर में शामिल होने से पहले इलेक्ट्रो केमेस्ट्री से उनका कोई नाता नहीं था. चिदंबरम में अन्नामलाई विश्वविद्यालय से ऑर्गेनिक केमेस्ट्री में पीएचडी करने के बाद उन्होंने लगभग तीन साल तक एक कॉलेज में यही विषय पढ़ाया. जब सीएसआइआर में उन्होंने लिथियम-आयन बैटरी पर काम करना शुरू किया, तो इलेक्ट्रो-केमिस्ट्री उनका पसंदीदा विषय बन गया. उन्होंने बहुत जल्दी ही इस विषय पर महारत हासिल कर ली. जल्द ही इस विषय पर शोध पत्र प्रकाशित करना शुरू कर दिया.

डॉ. कलाईसेल्वी की उपलब्धियां

डॉ. कलाईसेल्वी शुरू से ही भाषण देने में माहिर रही हैं. चाहे वह तमिल हो या अंग्रेजों, दोनों भाषाओं में उनकी गहरी पकड़ रही है. विज्ञान हो या कोई और विषय, सभी में वह निपुण रही हैं. स्कूल व कॉलेज में जब भी कोई डिबेट या डिस्कशन प्रोग्राम होता था, तो वह सक्रिय रूप से उनमें हिस्सा लेती थीं. दरअसल, तमिलनाडु में सार्वजनिक बहस की परपंरा है, जिसे ‘पट्टीमंदरम’ कहा जाता है. उस वक्त रामायण या महाभारत जैसे महाकाव्यों से कोई टॉपिक चुन लिया जाता था और प्रतिभागियों को उस कालखंड के पक्ष या विपक्ष में कहने के लिए कहा जाता है. स्कूलों और कॉलेजों में यह प्रचलन बेहतर वक्ता बनाने में मददगार साबित होता है. कलाईसेल्वी इसकी सटीक उदाहरण हैं. वह कई बार ऑल इंडिया रेडियो के कार्यक्रम में भी हिस्सा लेती रही हैं.

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को मानती हैं अपना रोल मॉडल

डॉ नल्लाथांबी कलाईसेल्वी वैसे तो अपने माता-पिता को अपना रोल मॉडल मानती हैं. फिर भी वह पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की काफी प्रशंसक हैं. उनकी मानें, तो कलाम सर जितने आसान तरीके से अपनी बात रखते थे और समझाते थे, उनसे बहुत प्रेरणा मिली है.

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