नए साल की शुरूआत पूरी दुनिया में पारंपरिक ग्रिगोरियन कैलेंडर के अनुसार मानी जाती है. नया साल 1 जनवरी को मनाने की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 में हुई थी.
हम नए साल 2023 में प्रवेश करने वाले हैं. सभी की यही चाहत होगी कि नया साल खुशियां लेकर आए. बहुत सारे लोग पुरानी यादों को छोड़कर नए साल (New Year) से काफी उम्मीद लिए स्वागत करने को तैयार हैं. मगर क्या आपने कभी सोचा है कि 1 जनवरी को ही नए साल के रूप में क्यों मनाते हैं? तो आइये जानते हैं इसके पीछे के इतिहास को.
नए साल की शुरूआत पूरी दुनिया में पारंपरिक ग्रिगोरियन कैलेंडर के अनुसार मानी जाती है. नया साल 1 जनवरी को मनाने की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 में हुई थी. इस कैलेंडर की शुरुआत करने वाले लोग ईसाई थे। इससे पहले पूरी दुनिया रूस का जूलियल कैलेंडर को फॉलो करती थी.
इस कैलेंडर में केवल 10 ही महीने थे. बता दें कि इस कैलेंडर में क्रिसमस के दिन ही नए साल की शुरुआत होती थी. इसके बाद अमेरिका केनेपल्स के फिजिशियन एलॉयसिस लिलिअस ने एक बेहद नया कैलेंडर दुनिया के सामने पेश किया. यह ग्रिगोरियन कैलेंडर था. जिसमें साल का पहला दिन 1 जनवरी को मनाया गया. इसके बाद ही पूरी दुनिया में 1 जनवरी को नया साल मनाने की प्रथा चली आ रही है.
आपको जानकारी दे दें कि ऐसा नहीं है कि सदियों से नया साल 1 जनवरी को ही मनाया जाता था. 1 जनवरी को नये साल के रूप में मनाने की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 में हुई थी. पहले ये कभी 25 मार्च तो कभी 25 दिसंबर को मनाया जाता था. सबसे पहले रोम के राजा नूमा पोंपिलस ने रोमन कैलेंडर में बदलाव किया और कैलेंडर में जनवरी को पहला महीना माना. बता दें कि इस बदलाव से पहले तक मार्च को पहला महीना माना जाता था.
वैसे तो भारत में सभी जगह नया साल 1 जनवरी को ही मनाया जाता है, लेकिन हमारे भारत में सभी लोग अपने धर्म के प्रति बहुत आस्था और विश्वास रखते हैं, इसलिए नया साल अलग-अलग जगह स्थानीय रिवाज के हिसाब से भी मनाया जाता है.
जूलियस कैलेंडर में साल में 12 महीने किए गए. जूलियस सीजर ने खगोलविदों से मुलाकात के बाद जाना कि पृथ्वी 365 दिन और छह घंटे में सूर्य की परिक्रमा लगाती है. इसे ध्यान में रखते हुए जूलियन कैलेंडर में साल में 310 की जगह 365 दिन किया गया.