Parenting Tips: माता- पिता की गोद में पला बच्चा जब अपने कदमों पर चलता है तब लगता है बच्चा बड़ा हो रहा है. फिर वक्त के साथ उम्र का एक पड़ाव ऐसा भी आता है जब बच्चा आपका हाथ पकड़कर नहीं, अपनी मर्जी से दौड़ना चाहता है. अपने मन की करना चाहता है आप मना करें तो उसका विद्रोही व्यवहार, जिद के रूप में सामने दिखने लगता है. यह समय उनपर चिल्लाने और गुस्सा उतारने का नहीं है बल्कि उनकी मन की बात को समझने और उनके साथ रहने का है ताकि हार्मोनल बदलाव के दौर से गुजर रहे बच्चे खुद को अकेला ना समझें.
कई बार बच्चे अपनी बात माता – पिता या परिवार के अन्य सदस्यों से सही तरीके से कह नहीं पाते तो बाहर किसी ऐसे शख्स को तलाशने लगते हैं जो उसकी बातें सुनें. ऐसे में कभी किसी गलत व्यक्ति की संगत से बच्चा भी गलत रास्ते पर भटक सकता है. इसलिए बच्चे की बातों को गौर से सुनें. उसके मन की जिज्ञासाओं का भी समाधान करने की कोशिश करें. घर में किसी भी तरह का कम्यूनिकेशन गैप ना रखें. बच्चे के अंदर इतना साहस भरें कि वो आपसे अपनी हर प्रॉब्लम का समाधान मांग सके.
टीनएज बच्चों के पैरेंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चे के साथ फ्रेंड की तरह व्यवहार करें. उनकी पसंद की फिल्म देखें ,साथ में गेम्स खेलें और कभी – कभी सरप्राइज गिफ्ट ले जाएं .अपनी बिजी लाइफ से टाइम निकालकर उन्हें कहीं घुमाने ले जाएं. ऐसा करने से बच्चे के साथ भावनात्मक बंधन मजबूत होगा.
हर समय डांट- फटकार से बच्चों के मन में हीन भावना घर करने लगती है. वह असुरक्षा का भाव महसूस करने लगता है. इसलिए जब भी आपका बच्चा अपना गुस्सा जाहिर करे तो आप उसपर गुस्सा होने की बजाय उसे शांत रहने और शांति से अपनी बात कहने की प्रेरणा दें. जब कभी मौका मिले अपने बच्चे के अच्छे काम की जरूर प्रशंसा करें. इससे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है. कभी भी किसी दूसरे बच्चे के साथ अपने बच्चे की तुलना ना करें.
किशोरावस्था वह उम्र होती है जब उसका मन काफी चंचल होता है ऐसी हालत में बच्चों को उनके जीवन का लक्ष्य तय करने में मदद करें. उनकी प्रतिभाओं को पहचाने, उनके लिए कौन का क्षेत्र सही रहेगा. उन्हें बेहतर तरीके से समझाएं.
कभी – कभी माता – पिता अपने अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए बच्चों पर दबाव बनाने लगते हैं ऐसा हरगिज ना करें.
आजकल बच्चे घर परिवार से कम बल्कि सोशल मीडिया और इंटरनेट से अधिक प्रभावित हो रहे हैं. टीवी, इंटरनेट और सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया उन्हें यथार्थ से दूर कर देती है. ऐसे में उन्हें सिखाएं कि रील और रियल लाइफ में कितना अंतर होता है.
बच्चों के साथ दुख और नकारात्मक बातें कभी ना करें. पॉजिटिव बातें उनके अंदर सकारात्मक भावना का संचार करेगी. उन्हें कमियों को सुधारने और खुद का एक बेहतर संस्करण बनने में मदद कर सकती है. उन्हें यह भी सिखाएं कि वे भी किसी दूसरे बच्चे को कभी नीचा महसूस ना कराएं. बच्चों के अंदर दूसरों के प्रति करूणा का भाव उत्पन्न हो इसके लिए भी प्रेरित करें. घर में पालतू जानवरों के साथ खेलना, उनकी केयर बिना किसी शर्त प्यार का पाठ सिखाता है
टीन एज बच्चों की एक बड़ी समस्या होती है कि वे बहुत जल्दी ही निराश हो जाते हैं. इसी निराशा में कई अच्छे अवसर गंवा देते हैं. उन्हें समझाएं कि वर्तमान में जीना ही अच्छे भविष्य की तस्वीर बनाता है . कल क्या हुआ ? आने वाले कल में क्या होगा ? इसपर चिंता करने से अच्छा है कि वर्तमान पर फोकस होकर एक विजन के तहत काम करें.
मानसिक स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त नींद की अहमियत समझाएं. बढ़ते बच्चों का सेल्फ केयर के लिए प्रेरित करें. इसका मतलब है कि खुद की देखभाल करने का तरीका सीख लें जिससे आप सोशल लाइफ के साथ मेंटली और फिजिकली फिट रहें. तनाव से परेशान ना होकर इस पर बात करें . बच्चों को संगीत, कला, नृत्य जिसमें रूचि हो उसके लिए प्रेरित करें. अगर बच्चों को बुक्स पढ़ना पसंद है तो उन्हें उनकी पसंद की किताबें और पत्रिकाएं दें जिनसे उनकी बौद्धिकता का विकास हो. बच्चे बड़ों को देखकर ही उनका अनुसरण करते हैं. बच्चों के सामने घर में कलह का वातावरण कभी बनने ना दें . आप भी बड़ों से आदर से बात करें तब ही आपके बच्चे उसी संस्कार को ग्रहण करेंगे.
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